आदरणीय साथिओ,
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भाई आरिफ जी बेहतरीन कथा के लिए बधाई ।
बहुत-बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ।
बाकमाल लघुकथा हुई है मोहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ जी, अंत तक एलिमेंट ऑफ़ सरप्राइज़ बना रहा जिस हेतु आपको बहुत बहुत बधाई.
लघुकथा के मर्म को अपनी अमूल्य टिप्पणी से सुशोभित करने का बहुत-बहुत आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर जी ।
आदरणीय आरिफ साहब कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक भावों को पिरोया है आपने इस बेहतरीन सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई
बहुत-बहुत आभार आदरणीय छोटे लाल जी ।
‘पिंड दा प्रा’
उस दिन वो सुबह से ही बाऊजी से खुलकर बात करने की हिम्मत जुटा रहा था I रिनी ने रात को उसे बताया था कि सामने वाली स्ट्रीट में गेरेज चलाने वाले एक पाकिस्तानी के पिता के साथ आज कल बाउजी की गहरी छन रही हैI
बाउजी टेबल पर थपकियाँ देते हुए पंजाबी गाना गुनगुना रहे थे I
‘’ आज ये इतना पुराना गाना कैसे याद आ गया आपको? बचपन में माँ सुनाया करती थी I”बातों का सिरा पकड़ते हुए वो डाइनिंग टेबल में उनके पास बैठ गया I
“तुझे याद है!शुक्र है! मुझे तो लग रहा है कि इन दस सालों में तू और रिनी, गोरों से भी दस कदम आगे वाले गोरे बन गए होI’’ बाउजी धीरे से मुस्कुरायेI
“ऐसा नहीं हैI पर यहाँ के तौर तरीके अलग हैं I’’ उसे समझ नहीं आ रहा था बात कैसे उठाये I
“खूब देख लिए तेरे लन्दन के तौर तरीके इस एक महीने मेंI मेरा अगले महीने इंडिया लौटने का टिकट करवा देI घर की याद आ रही है I वैसे मोहम्मद के साथ पार्क में समय अच्छा कटता है आज कलI’’ बाउजी टेबल पर थपकियाँ देकर फिर गुनगुनाने लगेI
“आप उन लोगों के साथ ज्यादा दोस्तियाँ मत बढाओ बाउजीI कई बार इन लोगों के धोखे में हम लोगों पर भी यहाँ के लोगों का गुस्सा निकल जाता है I पिछले सात आठ सालों में माहौल ऐसा बन गया हैI” एक साँस में बोल गया वो बाउजी से आँखें मिलाये बगेरI
“ कौन इन लोग ! क्या कह रहा है पुत्तर ! वो पंजाब का है,हमारे गाँव का I पार्टीशन के समय आठ नौ साल का था I खूब बातें याद हैं उसे पिंड कीI” बाउजी का चेहरा तमतमा गया थाI
बाहों में गड़ती रिनी की उँगलियों से उसका ध्यान टूटा I रिनी उसको कसकर पकड़े हुए थीI सड़क में एक तरफ बुरी तरह घायल मोहम्मद पड़े हुए थे I कुछ अंग्रेज़ मवाली अस्सी साल के इस वृद्ध को पीटकर भाग गए थे I
“डज़ एनी बडी नो हिम ?’’गोरा पुलिस वाला कड़क आवाज़ में पूछ रहा थाI
रिनी धीरे से उसके कान में फुसफुसाई “चलो, चलो यहाँ सेI’’
उस दिन वो बाउजी को बताना चाह रहा था कि उस गाने का मतलब भी याद है उसेI गाने में माँ अपने बेटे से कह रही है कि बुजदिली का काम करके अपना कायर चेहरा लेकर घर लौटा तो मै घर के दरवाज़े बंद कर दूँगी I पर बाउजी के गुस्से के कारण वो आगे कुछ बात नहीं कर पाया था I हफ्ते भर बाद दिल के दौरे से बाउजी चल बसे थे I
“ डज़ एनी बडी नो हिम ?’’ गोरे की आवाज़ इस बार और कड़क थी I
“यस आई डूI” रिनी का हाथ झटककर वो अब गोरे की आँखों में सीधे झाँक रहा थाI
मौलिक व् अप्रकाशित
अच्छी कहानी हुयी है . प्रदत्त विषय टिमटिमाता सा लगता है .
हार्दिक आभार आदरणीय
मुहतर्मा प्रतिभा साहिबा , प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक जी
आदरणीया प्रतिभा पांडे जी आदाब,
बहुत ही सशक्त , विषयानुकूल और घटना का क्रमश: चित्रण करती लघुकथा । कुछ-कुछ सामयिकता का भी पुट लिए है । इस लघुकथा ने सबकुछ बयाँ कर दिया । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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