आदरणीय साथिओ,
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आद0 वीरेंद्र वीर मेहता जी सादर अभिवादन। आपको लघुकथा पसन्द आयी, लेखन सार्थक हुआ। सादर आभार आपका।
भाई सुरेंद्र जी, सुंदर कथा हुई है । हर्दिक बधाई ।
आद0 लक्ष्मण जी सादर अभिवादन। रचना पर आपकी उपस्थिति और सराहना का आभार
वक़्त और गाँव के माध्यम से बढ़िया लघुकथा कही है आपने आ. सुरेन्द्र जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. कुछ चीजें हैं, देख लीजिएगा.
1. //उन दिनों के यादों में खोया हूँ//; //छुट्टा पशुयों// = "छुट्टा पशुओं" आदि.
2. एक वाक्य में (अरे गाँव भाई! आप उदास लग रहे हो।) वक़्त गाँव को "आप" से सम्बोधित करता है दूसरे में (फिर तुझे विकास से ऐतराज क्यों है गाँव भाई?) "तुझे" से. मुझे नहीं लगता कि यह ठीक है.
3. यदि आप अन्त में वक़्त से सहमति का संवाद न कहलवाते तो मुझे लगता है कि यह कथा और भी सशक्त हो जाती.
सादर.
आद0 महेंद्र जी सादर अभिवादन। बेहतरीन प्रतिक्रिया से उत्साह बढ़ाने के लिए आभार। संसोधन कर लूंगा
// शाम के समय तो पंछी भी अपने नीड़ की ओर रुख कर देते हैं। पर यह इंसान! यह तो ऊँची उड़ान के चक्कर मे वास्तविक रास्ता ही भटक गया है।"// बहुत खूब प्रदत्त विषय पर सशक्त सोच वाली बेहतरीन रचना , प्रतीकों का सफल निर्वहन ...हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र जी
आद0 प्रतिभा पांडेय जी प्रणाम। रचना पर उत्साहवर्धन् के लिए सादर आभार
भाई सुरेन्द्र जी रचना की गहराई बता रही है आप में कला कौशल है,पात्रों की प्रस्तुति का ये नयापन अनोखा अंदाज आपने जिस ढंग से प्रस्तुत किया है काबिलेतारीफ है,एक अन्वेषक की भांति सुंदर सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई
हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेंद्र नाथ जी। प्रतीकों के माध्यम से एक बेहतरीन लघुकथा द्वारा आज के समाज की कड़वी सच्चाई को उजागर किया है आपने।अति प्रशंसनीय प्रस्तुति।
आद0 तेजवीर जी प्रणाम। रचना पर उत्साहवर्धन् के लिए सादर आभार
आद0 डॉ भैया प्रणाम। रचना पर उत्साहवर्धन् के लिए सादर आभार
विकास,वक्त,परिवर्तन को आधार बना आपने सुंदर कथा लिखी है।आद० योगराज प्रभाकर जी के विचारों को संज्ञान में लें कथा के लिये बधाई आद० सुरेंद्र नाथ जी ।
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