आदरणीय साथिओ,
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प्रदत्त विषय पर प्रभावशाली लघुकथा हुई है आदरणीय तेज वीर सिंह जी. जानवरों के माध्यम से आपने काफी कुछ कह दिया. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र कुमार जी।
मुहतरम जनाब तेजवीर साहिब ,प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी ।
मनुष्यों से अच्छे व्यवहार की उम्मीद एक दिवास्वप्न ही है , प्रदत्त विषय को प्रभावशाली ढंग से परिभाषित करती इस कथा के लिए हर्दिक बधाई स्वीकार कीजिये आदरणीय तेजवीर सिंह जी
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा जी।
मानव- प्रवृत्तियों और पशु-पक्षियों की नियति के बीच बेज़ुबां मुर्ग़ी और भैंस/गाय के दिवास्वप्नों को शाब्दिक करती बढ़िया विचारोत्तेजक प्रतीकात्मक रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।
मूक पशु प्राणी को प्रतीक बनाकर बहुत उम्दा कथा लिखी है।कथा के लिये बधाई आद० तेजवीर सिंह जी ।
आदरणीय तेजवीर भाई जी, हालांकि लघुकथा के अंत में कुछ मिसिंग लगा पर आपकी कल्पनाशीलता प्रशंसनीय है । आपके इस प्रयास को दिल से सेल्यूट । सादर
अच्छी कथा कही है आपने आदरणीय तेज वीर सिंह जी | हार्दिक बधाई|
दिए गए विषय दिवा स्वप्न पर लघुकथा
‘झूठा सच ‘
.
बाज़ार से लौटी नीरा अपनी माँ से बोली “, माँ आपकी दवाईयाँ व फल ले आयी हूँ ।”
“बेटा क्यों इतना ख़र्चा करती हो ,एक तो बेटी के घर रह कर वैसे ही पाप की भागी बन रही हूँ ।”माँ बोली ।
“ऐसा क्यों बोल रही हो माँ ।आजकल बेटा बेटी दोनो बराबर है ।”नीरा बोली ।
“बेटे के घर में माँ के लिए जगह ही नहीं है ,और बेटी दामाद है कि माँ से रुपए ही नहीं लेते है ।तुम्हारे पिताजी की पेंशन की रक़म भी बैंक में मेरे नाम से जमा कर रहे हो ।”माँ बोली
“अब माँ भैया आपका ख़र्चा भेजते तो है ।”नीरा बोली ।
“बेटा तेरी माँ ने धूप में बाल सफ़ेद नहीं किए है , जो बेटा अपनी माँ को अपने पास रख नहीं सकता ,वो क्या रुपए भेजेगा ।”माँ बोली ।
“वो भाभी के स्वभाव की वजह से आपको पास नहीं रखते ।नहीं तो भैया आपको अपने घर पर ही रखना चाहते है ।”नीरा बोली ।
“बेटे के पास रहने के दिवा स्वप्न मैं नहीं देखती , पर तू उसकी झूठी तरफ़दारी मत ले ।”माँ बोली ।
अरे माँ , नीरा ने कुछ कहना चाहा ,तो माँ उसे बीच में रोक कर बोली ,”पिछले जन्म में ज़रूर कुछ अच्छे कर्म किए होगे जो ऐसा दामाद मिला है , कम से कम बुढ़ापा सर उठा के जी तो रहा है ।”माँ भरे गले से बोली ।
नीरा ने माँ की हथेली थाम ली।
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