आदरणीय साथिओ,
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आ. वीर जी आपने मेरे प्रयास को सराहा इस हेतु धन्यवाद.काल्पनिकता के पुट के साथ ऐतिहासिक विषय पर यह मेरी पहली रचना हैं. आगे भाषा सहज रहे इसका ख्याल रखूँगी. वैसे बडे इत्तफ़ाक की बात है कि मै मृत्युंजय(मराठी) पढ ही रही हूँ और अचानक ओबीओ का विषय भी इससे कोरिलेट कर गया. मराठी वैसे भी संस्कृतनिष्ठ भाषा है. शायद उसी का प्रभाव रचना में भी दिख रहा. सादर धन्यवाद
आ नयना ताई , कथा उलझ गई सी लग रही है | सादर|
कल्पना शायद तुम इसे एकाध बार ओर पढो तो तुम्हे सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा. कभी-कभी जल्दी-जल्दी में रचनाएँ पढने पर ऐसा होता हैं. सस्नेह :)
सूर्यपुत्र कर्ण के मन की पीड़ा को उकेरने का प्रयास किया है आपने ।बोझिल शब्दों के समावेश से कथा की स्पष्टता प्रभावित हो जाती है।कथा के लिये बधाई आद० नयना जी ।
मोहतरमा नयना जी आदाब,प्रदत्त विषय पर लघुकथा का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय नयना जी ।विषयानुसार बहुत सटीक कथा लिखी गई है ।विस्तार अवश्य कुछ ज्यादा है ।
आदरणीया नयना कानिटकर जी
इस सद्प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
ऐतिहासिक तथ्यों पर लिखना जोखिम भरा जरूर होता है पर आपने बहुत अच्छा प्रयास किया ।इसके लिए हार्दिक बधाई आ.नयना जी।
आदरणीय नयना ताई, प्रस्तुत लघुकथा प्रदत्त विषय से पूरी तरह न्याय कर रही है । प्रस्तुत लघुकथा की भाषा के सबंध में एक आवश्यक बात है वाह है स्वभाविकता की रक्षा। यानि जिस काल का कथानक चुना है भाषा उसी के अनुरूप है जैसे शिरच्छेदन, छिद्रित, युद्ध कौशल, आत्मभमानी सहचरों इत्यादि। भाषा संवेदना और अनुभव का स्वरूप होती है। भाव एवं विचारों की सम्प्रेषणीयता तथा जीवन्तता रचनाकार की भाषा पर ही निर्भर करती है। भाव एवं विचार सशक्त होते हुए भी यदि लेखक की भाषा उतनी समर्थ नहीं तो वह अपनी अनुभूतियों को पाठक तक नहीं पहुँचा सकता, क्योंकि भावो का सम्प्रेषण भाषा की समर्थता और सार्थकता पर निर्भर होता है। भाषा की यह शक्ति शब्द चयन और प्रयुक्त शब्दों की अर्थशक्ित पर निर्भर करती है । आपके प्रयुक्त शब्दों की उदाहरण मैं उपर दे चुका हूँ। कथ्यानुरूप शिल्प किसी भी रचना को विलक्ष्ण बनाता है। प्रस्तुत लघुकथा आत्मकथात्मक शैली में लिखी गई है। इसमें कर्ण के जीवन संघर्ष, हर्ष-विषाद और आंतरिक द्वंदों को बहुत प्रभावशाल ढंग से प्रेषित किया गया है। क्योंकि आत्मकथात्मक शैली आत्म-निरीक्षण के लिए बहुत अवसर प्रदान करती है। आत्मचरित होने की वजह से सूक्ष्मता से संवेगों और अनुभवों की अभिव्यक्ति अत्यंत सहजता से हो जाती है। समग्रतय: यह एक गहन व प्रभावशाली लघुकथा है, जिस हेतु मेरी ओर से हार्दिक शुभकामनाएं निवेदित हैं। सादर
आ.रवि दादा, आपकी टिप्पणी ने मेरी हौसला अफ़जाई की हैं दरअसल ऐतिहासिक विषय पर मैनें कल्पनात्मक रुप से पहली बार लिखा हैं. कुछ लोगो को मेरी भाषा क्लिष्ट लगी,लेकिन सच कह रही हूँ इस पर लिखते वक्त यही शब्द मेरे जेहन में उभरे फिर आपने भी कह दिया कि " जिस काल का कथानक चुना है भाषा उसी के अनुरूप है." मेरे अंदर की चल रही अनिश्चितता को विराम लग गया . आपकी अत्यंत आभारी हूँ. सादर
महाभारत के युद्द को लेकर आपने प्रदत्त विषय को परिभाषित करने का प्रयास किया बहुत खूब आपको बहुत बहुत बधाई आद० नयना जी
सादर नमन आदरणीया। बेहतरिन प्रयास रचना का । एक बात पर आपका ध्यान दिलाना चाहूंगा।जहा तक मुझे याद आ रहा घटोतचक अर्जुन का पुत्र था।सादर जी।
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