आदरणीय साथिओ,
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आद0 आली जनाब समर साहब सादर प्रणाम। आपकी प्रतिक्रिया का मुझे बेसब्री से इंतिजार रहता है। आपकी उत्साह बढ़ती प्रतिक्रिया के लिए हृदय तल से आभार
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय सुरेन्द्र जी ,बधाई आपको ,सादर
आद0 बरखा शुक्ल जी सादर आभार आपका
प्रदत्त विषय पर प्रभावशाली रचना हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह जी
अच्छी सन्देशपरक लघुकथा है आदरणीय सुरेन्द्र कुमार सिंह जी. वैसे इसे थोड़ा और छोटा किया जा सकता है. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
हार्दिक बधाई आदरणीय सुरेन्द्र कुमार सिंह जी. जी।बेहतरीन प्रस्तुति ।
विजेता
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मतदान हो चुका था। मतगणना चल रही थी। मणि शांत बैठी पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम को अपने मस्तिष्क में दोबारा घटते हुए देख रही थी।
शहर की प्रतिष्ठित सामाजिक संस्था के अध्यक्ष पद के चुनाव का नोटिफिकेशन केंद्रीय समिति भेज चुकी थी। मणिकर्णिका जिसे सब मणि बुलाते थे, काफी समय से इस संस्था की सक्रीय सदस्य थी। अपने अनुभव, सदस्यों के आग्रह, रचनाशीलता और आगे बढ़ने के जुझारू व्यक्तित्व के चलते उसने नामांकन भी भर दिया।
"मतगणना का नतीजा आने वाला है।" उसके पास बैठे शर्मा जी ने कहा। मणि ने अनसुना सा किया और फिर पिछली यादों में खो गई।
एक खेमे को इसमें अपनी शक्ति और प्रतिष्ठा दांव पर नज़र आ रही थी। पुराने अधिकारियों और अध्यक्षों ने सर्वसम्मति बनाने का प्रयास किया। किन्तु मणि अपना नाम प्रस्तावित करने वालों के मान के लिए अड़ी थी, अड़ी रही।
अंततः बेनतीजा रही सभाओं के बाद मतदान का निर्णय हुआ। आज सुबह मतदान से पूर्व दोनों उम्मीदवारों को अपनी बात कहने का अवसर मिला। दोनों ने अपने-अपने अनुभव, कार्यक्षमता, उपलब्धियों तथा योजनाओं का प्रारूप दिया। किन्तु अपने प्रतिद्वंदी माणक जी के अंतिम शब्द उसे खास तौर पर याद आ रहे थे― "क्या हमारे कस्बे के रहवासी इस मानसिक स्तर पर हैं कि हम एक महिला के पीछे-पीछे चलें और वो हमारा उपहास न करें।"
अचानक चुनाव पर्यवेक्षक की आवाज़ आई, "मतगणना का नतीजा आ चुका है। माणक की 72 मत प्राप्त करके मणिकर्णिका जी से 62 मत से विजयी रहे हैं।"
मणि ने पूरी सभा पर एक दृष्टि डाली और सबका आभार करती हुई मुस्कुराकर सभागार से निकल गई। अन्य सदस्य उसके "पीछे-पीछे" सभागार से निकलने लगे।
**मौलिक एवम अप्रकाशित
बहुत ही सुंदर लघुकथा है भाई अजय कुमार अजेय जी. केवल महिला होने की वजह से योद्धा होने के बावजूद उसे पराजय का सामना करना पड़ा, बहुत खूब. इस उत्तम लघुकथा हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
आपका एक एक शब्द असीमित उत्साह और ऊर्जा प्रदान करता है। बहुत बहुत आभार योगराज जी।
आज के दौर में जब महिला को विशेषतौर से आगे लाया जा रहा है, ऐसे में महिला होने की वजह से उसे पराजय का सामना करते दिखाना बहुत ही दिलचस्प बना है अजय भाई जी, बहुत खूब. इस सुन्दर लघुकथा के लिए मेरी ओर से हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
बढ़िया कथा कही है आपने आदरणीय अजय गुप्ता जी| हार्दिक बधाई|
शुक्रिया कल्पना जी
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