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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-38 (विषय: "डर")

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-38 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. गत तीन वर्ष में गोष्ठी के पिछले 37 अंकों में हमारे साथी रचनाकारों ने जिस उत्साह से इसमें हिस्सा लिया और इसे सफल बनाया, यह वास्तव में हर्ष का विषय हैI कठिन विषयों पर भी हमारे लघुकथाकारों ने अपनी उच्च-स्तरीय रचनाएँ प्रस्तुत कींI विद्वान् साथिओं ने रचनाओं के साथ साथ उन पर सार्थक चर्चा भी की जिससे रचनाकारों का भरपूर मार्गदर्शन हुआI इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है:
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-38
विषय: "डर" 
अवधि : 30-05-2018  से 31-05-2018 
.
अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक हिंदी लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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"पप्पीज़" से गप्पी चालबाज़ तक के समसामयिक डर को उभारती और सजग करती सामाजिक सरोकार की.बढ़िया रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा जी।

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी लघु कथा पर आपकी प्रतिक्रिया मेरे उत्साहवर्धन का सबब है  मेरी लघुकथ में दिलचस्पी आपकी लगातार प्रकाशित होती रचनाओं को पढ़कर हुयी है और मैं आप सब को पढ़कर धीरे धीरे सीख रहा हूँ आपकी प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर 

हार्दिक आभार जनाब डॉ. आशुतोष मिश्रा जी।

बहुत अच्छी लघुकथा आदरणीय आशुतोष जी ,बधाई आपको ,सादर 

  1. आदरणीया बरखा जी रचना को आपका अनुमोदन मिला ह्रदय से आभारी हूँ सादर

डर को सामयिक परिपेक्ष्य में परिभाषित करती  बढ़िया कथा  हार्दिक बधाई आदरणीय आशुतोष जी 

आदरणीया प्रतिभा जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया जे लिए हार्दिक धन्यवाद सादर

 आ. आशुतोष मिश्र जी , कथा में उल्लेखित डर आज सभी के दिलों में पैर जमा चुका हैं।समसामयिक विषय पर बढिया प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।

आदरणीया अर्चना जी उत्साहवर्धन के लिए ह्रदय से आभारी  हूँ सादर

जनाब डॉक्टर आशुतोष साहिब , प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं |

बेटी के प्रति माँ के मन में बैठे डर को कुत्ते के बच्चे को प्रतीक बनाकर बख़ूबी परिभाषित करने का प्रयास किया है ।बधाई आ० आशुतोष मिश्रा जी ।

यह डर आज पूरे समाज में व्याप्त है. प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा हुई है डॉ आशुतोष मिश्रा जी. हार्दिक बधाई स्वीकार करें. 

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