आदरणीय साथिओ,
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भय के मनोवैज्ञानिक पक्ष को जेहन में रखकर बढिया कथा लिखी हैं आपने।हार्दिक बधाई आपको आ. आशीष श्रीवास्तव जी
धन्यवाद सम्मानीय लेखिका अर्चना जी, आपकी प्रतिक्रिया ने एक बहुत बड़ी कमी पूरी कर दी है, आप सभी अनुभवी हैं और वर्षों से लिखते आ रहे हैं आपका साहित्य जगत में खासा योगदान है इसलिए आपके विचार मेरे लिये संजीवनी का काम करते हैं। आप सभी का आशीर्वाद बना रहे बस यही कामना। हम क्षमाप्रार्थी हैं किसी लघुकथा पर फिलहाल कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं, लेकिन आपके द्वारा अपना कीमती समय देना, लघुकथा को पढ़ना, समझना और अपने विचार रखना सचमुच मेरे लिये बहुत महत्वपूर्ण है। आपके लिए सिर्फ धन्यवाद कह कर बात समाप्त कर देना बहुत छोटा शब्द जान पड़ रहा है। आशीर्वाद और शुभकामनाओं का सदैव आकांक्षी
आ. मित्र ,ना ही मैं बहुत बड़ी लेखिका हूँ ना ही मेरा कोई विशेष योगदान हैं साहित्य के क्षेत्र में ।आपने इतना अधिक सम्मान दिया कि मैं अभिभूत हो गई।आपका हार्दिक धन्यवाद ।सदैव लिखते रहिये। हमे अपनी कथा पर आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी लेकिन आपकी स्वस्थता के पश्चात।सादर
डर एक मानसिक स्थिति है भूत प्रेतों के मामलों में मन का डर ही मूर्त रूप में सामने खड़ा दीखता है कथा के भाव सुन्दर हैं हार्दिक बधाई आदरणीय आशीष श्रीवास्तव जी
सम्मानीय लेखिका प्रतिभा जी, बहुत-बहुत धन्यवाद. पहली बार प्रतिष्ठित आॅनलाइन मंच अपनी लघु कथा प्रेषित की है, उस पर आप जैसे अनुभवी कथाकारों की प्रतिक्रिया मिलना निश्चित ही मन को हर्षित करने वाला है। आपने प्रतिक्रिया व्यक्त करने का बहुमूल्य समय प्रदान किया इसके लिए हार्दिक आभार। भविष्य में भी आपका सहयोग, मार्गदर्शन और सुझाव प्राप्त होते रहेंगे ऐसी कामना है। कम लिखे को ही बहुत समझियेगा। हृदय की गहराईयों से आभार !
बेहतरीन और लाजवाब लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय आशीष श्रीवास्तव जी ।
आदरणीय जनाब आरिफ सा. ये हमारा सौभाग्य है कि आपने हमें इतने खूबसूरत शब्दों से सराहा है, आपकी ये प्रतिक्रिया इसलिए अधिक महत्व रखती है क्योंकि आपको हमने हर विधा में लिखते देखा और पढ़ा है, प्रतिष्ठापूर्ण आॅनलाइन मंच पर आपकी सक्रियता/प्रतिक्रिया को सादर नमन
अच्छी लघुकथा है आ० आशीष श्रीवासत्व जी. प्रदत्त विषy डर को परिभाषित करने का सद्प्रयास हुआ है जिस हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें. कुछ सुझाव हैं:
शांभवी : (संवाद)
संभव : (संवाद)
शांभवी : (संवाद)
यह शैली एकांकी नाटक की है, लघुकथा की नहीं. इसकी बजाय यदि संवाद के बाद पात्र का विवरण दिया जाए तो रचना का प्रभाव बढेगा. विशेषकर इस संवाद के बाद तो यह और भी अटपटा लग रही है:
//मुस्कुराते हुए संभव ने चुनौती दे दी कि, “नगर के खंडहर पड़े किले में, दिन में ही जाकर बता दो तो मान जाऊंगा। “//
(वैसे संवाद लिखने का यह ढंग कहीं बेहतर है)
ओ हो, परमआदरणीय परमसम्मानीय मंच संचालक एवं प्रधान संपादक महोदय जी, आपने मेरे छोटे-से प्रयास को सफल कर दिया, ऐसा लगा। लघुकथा लेखन में हम आपके सुझाव का सदैव ध्यान रखेंगे। आपके बहुमूल्य सुझाव हमारे लिये लोहे को बेजंग फौलाद जैसा चमकीला बना देने वाले हैं। हम तहेदिल से आपके आभारी है जो आपने आज के दौर में सुधि पाठकों और नवलेखकों को अनुभवी लेखकों के साथ जोड़ने और प्रतिष्ठित मंच उपलब्ध कराने का गौरवपूर्ण, प्रेरणास्पद कार्य किया है। ऐसे सद्प्रयास का तो राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान होना चाहिए। हम आपके प्रति पूरे सम्मानभाव से आभार प्रकट करते हैं और धन्यवाद भी देते हैं। ईश्वर आपको इतनी शक्ति प्रदान करे कि आप साहित्य जगत में ऐसे ही नवप्रयोग करते हुए हमारा मार्गदर्शन करते रहें। मेरी शुभकामनाएं सदैव आपके साथ हैं। धन्यवाद सर!
हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी
महिलाओं के लिए जितने ख़तरे बाहर हैं उतने ही ख़तरे अन्दर भी हैं. इस भाव को केंद्र में रखकर शानदार लघुकथा कही है आपने आदरणीया प्रतिभा जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
हार्दिक आभार आदरणीय महेन्द्र जी
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