आदरणीय साथिओ,
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कथा के जरिये आपने बेहद गूढ बात की ओर इशारा किया है।जो लोग बच्चे का दुनिया में आना अपनी तरक़्क़ी के लिये बाधक समझते है उनकी सोच को उजागर करती है कथा ।बधाई कथा के लिये आद० कनक हरलालका जी ।
हार्दिक आभार आ. नीता कसार जी ।
बहुत ही बढ़िया लघुकथा आदरणीय कनक जी ,बधाई इस भावपूर्ण रचना के लिए ,सादर
हार्दिक आभार आ. बरखा शुक्ला जी ।
आयोजन की बेहतरीन रचनाओं में कहा जा सकता है रचना को, आजकल के माहोल में आमतौर पर कन्या भ्रूण के गर्भपात से जुडी कथाओं के बीच में ये रचना एक अलग मुद्दे को सामने रखती है, जहां एक पिता अपनी पत्नी का गर्भपात इसलिए करवाना चाहता है क्यूंकि वह बच्चा उस विशेष समय में उच्च आकान्शाओं को पूरा करने में बाधक बन सकता हैं.... रचना अपने प्र्स्तुतिक्र्ण के लिहाज से भी बढ़िया बनी है... मेरी ओर से इस कथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करे कनक हरलालका जी, सादर
आदरणीय वीर जी ,कथा पर इतनी सुन्दर एंव प्रोत्साहित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार ।
जनाब कनक जी आदाब,प्रदत विषय को सार्थक करती अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
कथा पर समय देने के लिए और पसंद कर प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार आदरणीय।
दृष्टि को आपने जिस अंदाज़ में रखा वो सराहनीय है. अच्छी लघुकथा.
किन्तु दोनों की तुलना में एक साम्य नहीं बना/ तल्खी भरी भाषा-----भला बेटे ने माँ से तल्ख़ लहजे में क्यों बात की
आजकल
सड़क पर लहरा कर इतरा कर चलने की काली की आदत से गंगा परेशान थी।आज वो ही हुआ जिसका गंगा को हमेशा डर लगा रहता था।एक मोटरसाइकिल वाला काली को पीछे से टक्कर मार गया। चोट ज्यादा नहीं थी पर काली वहीं धप्प से बैठ गई।
"रुक जा अम्मा, अब नहीं चल पाऊँगी।"काली कराहने लगी।
" कहती थी ना संभल कर चल। रो मत अभी चाट कर ठीक कर दूँगी।" गंगा पूँछ हिलाते बेटी के पास आ गई।
"उई माँ । क्या! क्या हुआ रुक क्यो गई?"गंगा को ठिठका खड़ा देख काली और कराहने लगी।
" चल चल उठ यहाँ से, आगे कहीं जाकर बैठेंगे । गंगा की आवाज में घबराहट थी।
" क्यों? क्या हुआ? अच्छी सूखी जगह है माँ। मक्खियाँ भी नहीं हैं।"काली उठने को तैयार नहीं थी।
" सामने करीम का घर है।तुझे ऐसे देखेगा तो मरहमपट्टी करने आ जायगा।गाड़ी बुलाकर अस्पताल ही नहीं ले जाने लगे कहीं। जानती हूँ उसे मैं।"गंगा की आवाज की घबराहट बढ़ गई थी।
"तो क्या हुआ?" जमीन पर और पसरती हुई काली सामने घर की तरफ देखने लगी।
"तू वो नहीं देख पायगी जो मैं देख रही हूँ। चल उठ अभी।"
अपनी दो महिने की बछिया की आँखों में तैर रहे प्रश्नों को अनदेखा कर गंगा ने गुस्से से पूँछ फटकारी और आगे बढ़ गई।
मौलिक व अप्रकाशित
आदरणीया प्रतिभा पांडे जी, प्रदत्त विषय चरितार्थ करती अच्छी लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें।
हार्दिक बधाई आदरणीय प्रतिभा पांडे जी।प्रदत्त विषय दृष्टि पर अच्छी लघुकथा।
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