आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय प्रतिभा पांडे जी आदाब बहुत बढ़िया लघुकथा कथा के लिये बधाई स्वीकारें सादर
कटाक्ष करती बेहतरीन रचना के लिए बधाई, स्वीकार कीजिएगा आदरणीया प्रतिभा दी।
बहुत ही प्यारी लघुकथा के लिए बधाई हो,प्रतिभा जी
यादें 
“माँ आप हमारे साथ दिल्ली चल रही है न ?”मोहन ने रेवती से पूछा ।
“बेटा इस घर को छोड़ कर जाने का मेरा मन नहीं होता ।”रेवती बोली ।
“माँ जब तक पिता जी थे ,मुझे कोई चिंता नहीं थी ,पर आप यहाँ अकेली हो तो मुझे फ़िक्र होती है ।”मोहन ने कहा ।
“बेटा इस घर से मेरी कितनी यादें जुड़ी है ।”रेवती बोली ।
“माँ यादें तो दिल में भी बसी होती है ।”मोहन ने कहा ।
तभी पोते की रोने की आवाज़ सुन रेवती बहू से बोली ,“बहू मुन्ना क्यों रो रहा है ?”
बहू बेटे को ले कर आयी और बोली “देखिए न माँ जी ,चुप ही नहीं हो रहा है ।”
रेवती की गोद में आते ही उसने रोना बंद कर उसे टुकुर-टुकुर देखना शुरू कर दिया ।
बहू अपने पति मोहन से बोली ,”देखा शैतान को ,दो तीन दिन में ही माँ जी से कितना हिल गया है ।”
“हाँ बहू इस ने तो मुझे मोह में बाँध लिया है , इस के मोह के आगे इस घर का मोह कम लगता है ।अब तो मुझे तुम लोगों के साथ चलना ही पड़ेगा ।”रेवती बोली ।
“सच माँ आप चल रही है ।”बहू बोली ।
हाँ बहू ,मोहन सही तो कह रहा है ,यादें तो दिल में बसी होती है ,उन्हें मैं दिल्ली के घर में बिखेर दूँगी ।”रेवती बोली ।
“ये हुई न बात माँ ।”मोहन ख़ुश हो कर बोला ।
“अरे भई ,मेरे पोते के पास भी तो उसकी दादी की कुछ यादें होनी चाहिए ।”रेवती पोते को प्यार से निहारते हुए बोली ।
मौलिक व अप्रकाशित
संतान का मोह और अपने खून की कशिश किसी भी आकर्षण से बढ़कर होती है. आपकी लघुकथा इसी बात की पुष्टि कर रही है आ० बरखा शुक्ला जी. लघुकथा कि बुनावट एकदम कसावट वाली है, भाषा में सादगी है और रचना में निहित सन्देश बिलकुल साफ़ और शफ्फाक है. सबसे बढाकर यह लघुकथा प्रदत्त विषय से भी पूर्ण न्याय कर रही है, अत: मेरी ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करें.
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय योगराज सर जी ,आगे भी आपका मार्गदर्शन मिलता रहे ,आभार ,सादर
वाह, बहुत खूबसूरत और भावपूर्ण रचना प्रदत्त विषय पर, बहुत बहुत बधाई आ बरखा शुक्ल जी
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय विनय सर जी ,आभार ,सादर
आदाब। वाह। बहुत बढ़िया। आदरणीय योगराज सर जी ने सब कुछ कह दिया है। हार्दिक बधाई आदरणीया बरखा शुक्ल साहिबा।
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय उस्मानी जी ,आभार ,सादर
प्रदत्त विषय पर उम्दा लघुकथा हुई है आदरणीया बरखा जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
बहुत -बहुत धन्यवाद आदरणीय महेंद्र जी ,आभार ,सादर
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