आदरणीय साथिओ,
Tags:
Replies are closed for this discussion.
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय आसिफ सरजी।
आदरणीय बबीता गुप्ता जी आभार बहुत आभार सादर
सहभागिता के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय आसिफ जैदी जी|
मिलते-जुलते कई नामों के कारण रचना में भटकाव है आदरणीय आसिफ़ ज़ैदी जी. यदि आप इस कथ्य को राजनीति से जोड़कर कहते तो कथा प्रभावशाली हो जाती. मेरी तरफ़ से इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीय आसिफ ज़ैदी जी. सादर.
समाधान--
"अब जब उस कायर देश ने जंग की शुरुआत कर ही दी है तो हमें भी पीछे नहीं हटना है. हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगें", सभागार में माहौल गर्म था, वहां उपस्थित हर आदमी उत्तेजित था.
"जंग अगर अपरिहार्य हो तो होनी ही चाहिए, लेकिन अगर सिर्फ छुद्र तात्कालिक फायदे के लिए जबरदस्ती कराया जा रहा हो तो इसका विरोध किया जाना चाहिए", वहां मौजूद एक वक्ता ने अपनी बात पूरी गंभीरता से रखी.
अभी उस व्यक्ति ने बात ख़त्म भी नहीं की थी कि सभागार में चारो तरफ से शोर उठाने लगा. वहां मौजूद हर शख्स की निगाह में वह व्यक्ति देशद्रोही जैसा लग रहा था. कुछ अति उत्साही लोगों ने उसे गाली देना भी शुरू कर दिया और बाकी लोगों ने उन्हें रोकने की जहमत भी नहीं उठायी.
खैर एक शख्स उस व्यक्ति के समर्थन में आगे आया और उसने लोगों को रोका. चूँकि वह शख्स काफी प्रभावशाली था इसलिए लोग उसकी बात मानने को मजबूर हुए और खामोश हो गए. लेकिन उनकी निगाहें अभी भी उसके लिए नफरत और आग ही बरसा रही थी.
"अच्छा आप अपनी बात को स्पष्ट कीजिये कि आपका मतलब क्या था?, उस शख्स ने पूछा.
उस वक्ता ने आँखों ही आँखों में उस शख्स को धन्यवाद दिया और फिर उसने अपनी बात रखी "मुझे जो लगता है वह मैं कह रहा हूँ. हो सकता है कि आप लोग उससे असहमत हों लेकिन कृपया इसे समझने का प्रयास करें. युद्ध अगर आवश्यक हो तो लड़ना ही है लेकिन अगर युद्ध कराया जा रहा हो तो इसका विरोध किया जाना चाहिए. मुझे नहीं पता कि आप लोगों में से कितनों के घर से लोग फ़ौज में हैं, लेकिन मेरे कुछ रिश्तेदार जरूर हैं. सैनिक लड़ने के लिए ही हैं और वह शहीद भी होंगे, लेकिन उनकी बलि चढ़ाई जाए, यह गलत है. बाकी एक बात और, युद्ध समस्या का समाधान नहीं है, उसके लिए बातचीत ही होनी चाहिए".
अपनी बात रखकर वह व्यक्ति सभागार से निकल गया, पीछे सभागार में मौजूद लोगों का शोर बढ़ता ही जा रहा था.
मौलिक एवम अप्रकाशित
आदरणीय विनय कुमार जी बहुत बहुत बधाई अच्छी लघुकथा हुई सादर
बहुत बहुत आभार आ आसिफ जैदी साहब
वाह वाह वाह. लाजवाब लघुकथा कही है भाई विनय कुमार सिंह जी. यह महज़ सम-सामयिक रचना नही बल्कि एक सार्वभौमिक प्रभाव वाली लघुकथा है. विषय और कहन तो इसके मज़बूत पक्ष हैं ही, इन सबसे ऊपर एक विशेष बात यह है कि इस रचना का किसी भी देश की भाषा में अनुवाद कर लें इसका प्रभाव कम नही होगा. आज ऐसी की सार्वभौमिकता वाली लघुकथाओं की आवश्यकता है. मेरी ढेरों ढेर बधाई स्वीकार करें भाई जी.
इस उत्साह बढ़ाने वाली और विस्तृत टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ योगराज प्रभाकर साहब
आ0विनय जी बहुत ही बेहतरीन लघुकथा लिखी गई है ।हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
इस टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार आ कनक हरलालका जी
जनाब विनय कुमार जी आदाब,प्रदत्त विषय को परिभाषित करती उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |