आदरणीय साथिओ,
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बुज़ुर्गों की हालत बयां करती बढ़िया प्रस्तुति। हार्दिक बधाई आदरणीया कनक जी
आदरणीया कनक दी, आपकी इस रचना का विषय मुझे पसंद आया, पर बात स्पष्ट नहीं हो पा रही है| इस सद्प्रयास के लिए हार्दिक बधाई|
अच्छी लघुकथा है आदरणीया कनक हरलालका जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. वैसे डॉट के अनावश्यक प्रयोग से बचा जाना चाहिए था. सादर.
लकीरें
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खुदा ने कुछ लकीरें खींची।आदमी हुए,औरतें हुईं। सृष्टि-क्रम चल निकला।फिर लकीरें खींची जाने लगीं।आदमी खुदा होने लगा।लकीरों की सघनता परस्पर विक्षोभ का सबब हुई।पसरे पैर सिकोड़ने की नौबत आ गई,पर यह असंभव लगा,इज्जत के खिलाफ भी।सिकुड़ी धरती विनय करती,पर कोई सुनता नहीं।दंभी खुदाई का दौर जारी रहा। आदमी आदमी से क्या,खुद दे भी जुदा हो चला।दिल-दिमाग का मेल खत्म होने लगा।फिर पैर से पैर टकराए,अब सिर से सिर टकराते हैं।नर धर हुआ चल रहा है।कहीं भी,कोई भी,किसी से भी टकरा सकता है।ग्रह-तारे गवाह हैं कि जब आपस में टकराए तो लुढ़क गये,उल्का-पिंड बनकर।वे हँस रहे हैं,कि विवेक अपनी टेक भूल गया।हम मिटते हुए भी उजाला बिखेरते गये।आदमी तो प्रकाशित पुंज होते हुए भी अँधेरे गर्त में जा रहा है।हाथ में कलम लिए बैठे लेखक से एक टूटता तारा पूछता है-
-क्या कर रहे हो?
-समाधान ढूँढ़ रहा हूँ।
-कैसा समाधान?
-तेरे नहीं बिखरने का।
-यह नियति है।हम टूटकर धरती पर आते हैं।जितना हो सके, उजाला फैलाते हैं।
-मैं वही रौशनी ढूँढ़ रहा हूँ,जो भटके हुए को रास्ता दिखाये।
-शाबाश!देखो,मैं वह ज्योति-पुंज हूँ।भूले को राह दिखाता हूँ,खुद को मिटाकर,औरों को नहीं।
-मैं भी खुद को अपने शब्दों में मिटा रहा हूँ।रौशनी होगी क्या?
-अवश्य होगी मेरे अदबकार,अवश्य होगी।मन-मस्तिष्क के मेल का खेल जारी रखो।
-जरूर।मैं समाधान मिलने तक इस हेतु अपने शब्द-बीज बोता रहूँगा मेरे भाई!
-आमीन',टूटा तारा बोला और अनंत में विलीन हो गया।
"मौलिक व अप्रकाशित"
आदरणीय Manan Kumar singh ji प्रणाम बधाई सुंदर प्ररस्तुति के लिये सादर
आभार आदरणीय।
वाह। बहुत बढ़िया परिकल्पना के साथ बढ़िया भाषा-शिल्प में उम्दा रचना। हार्दिक बधाई जनाब मनन कुमार सिंह साहिब। लेकिन ऐसा भी लग रहा है कि आपने पोस्ट करने में ज़ल्दबाज़ी भी की है। टंकड़ त्रुटियां तो हैं ही, रचना भी आपकी लेखनी जैसी बेहतरीन नहीं लग रही।
आभार आदरणीय उस्मानीजी।त्रुटियाँ इंगित करते तो जरूर ध्यान जाता।
बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिएगा ,आदरणीय मनन सरजी।
बहुत बहुत आभार आदरणीया।
आदरणीय उस्मानीजी!पता नहीं चल पा रहा है कि आप किस रचना पर टिप्पणी कर रहे हैं।समीक्षा समय और गंभीरता की हकदार होती है,सादर।
विनय सर जी की रचना पर थी। पता नहीं कैसे यहां जम्प कर गई!
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