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नींव--
कैमरों के फ़्लैश लगातार चमक रहे थे , पता नहीं कितने लोग ऑटोग्राफ लेने के लिए धक्का मुक्की कर रहे थे | आख़िर उस जिले से वो पहला व्यक्ति था जिसका चयन टेस्ट टीम में हुआ था | भीड़ में से जगह बनाकर वो स्टेज पर पहुँचा और अपनी निर्धारित कुर्सी पर बैठ गया | मंचासीन अतिथिगण बारी बारी से उसके बारे में और उसको वहां तक पहुंचाने में अपने योगदान के बारे में बोल रहे थे और रह रह कर तालियाँ बज रही थीं |
आखिर में वह बोलने के लिए माइक के पास खड़ा हुआ | मंच पर बैठे और सभा में उपस्थित सबकी निगाह उसकी ओर गड़ी हुई थी | उसने अपने माता पिता से लेकर अपने कोच और सेलेक्टर्स सबका आभार प्रकट किया और फिर उसने एकदम पीछे बैठे बुज़ुर्ग की ओर इशारा किया और उनको मंच पर लाने का आग्रह किया |
" यही हैं मेरे चयन की नींव डालने वाले शख्स जो उस मैदान के ग्राउंड्समैन हैं | पता नहीं कितनी बार मैंने खेल छोड़ने का सोच लिया था लेकिन मेरे साथ हर समय मौजूद और मेरी हर निराशा को आशा में बदलने वाले यही हैं ", ये कहते हुए उसने अपने गले में पड़ा हार उनके गले में पहना दिया और उनके पाँव छू लिए | सभागार में तालियों की आवाज़ देर तक गूंजती रही और उस बुज़ुर्ग के आँखों से बहने वाले आंसू उसका कन्धा भिगोते रहे |
मौलिक एवम अप्रकाशित
आदरणीया कांता रॉय जी , आपके अनुमोदन का आभार..
वाह विनय कुमार जी , पर अपनी बुनियाद को याद करने वाले बिरले ही होते हैं , बधाई सशक्त रचना के लिए
आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी , आपके अनुमोदन का आभार.
अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय विनय जी, दाद कुबूल करें
बहुत बहुत आभार आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी..
आपकी इस लघुकथा ने महान आल राउंडर सर इआन बोथम की याद दिला दी. उनके पिता भी एक ग्राउंडसमेन ही थे जिनकी प्रेरणा से क्रिकेट के बीज इआन में प्रस्फुटित हुए. उनको क्रिकेट की ऐसी घूंटी पिलाई गई कि वे कई दशक तक विश्व क्रिकेट पर छाये रहे. आपकी लघुकथा ने एक नए विषय को भी छुया है और प्रदत्त विषय के साथ पूर्ण न्याय भी किया है, अत: मेरी डबल बधाई स्वीकारें.
बहुत बहुत आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर सर | मैं खुद बहुत बड़ा क्रिकेट प्रेमी हूँ लेकिन मुझे भी ये बात पता नहीं थी , इसी बहाने मेरा ज्ञान वर्धन भी हो गया | और आपसे डबल बधाई मिलना मतलब वन डे में डबल सेंचुरी लगाना , सादर आभार आपका .
वन डे में नहीं टी २० में हुज़ूर.
हा हा , बहुत सही कहा आपने , लेकिन टी २० वाले कुछ और ही लोग हैं सर | मैं तो कल सुबह से सोच रहा था कि क्या लिखूं क्योंकि लगभग सब पहलु लोगों ने लिख ही दिए थे .
आ विनय कुमार जी आप ने वास्तव में नींव की याद दिला दी. इसी नींव पर बुनियाद टिकी होती है . बधाई आप को .
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