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आपकी सद्शायता का तह-ए-दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ आ० मदनलाल श्रीमाली जी I
वर्ण व्यवस्था पर चोट करती लघु कहानी के ये वाक्य अहम है "होना क्या है ठाकुर साहिब ! घोर कलयुग आ गया है, वर्ण व्यवस्था की धज्जियाँ उडाई जा रहीं हैं ।" सुंदर लघुकथा के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय
दिल से शुक्रिया आ० लडीवाला जी I
रचना की सराहना हेतु हार्दिक आभार आ० ज्योत्स्ना कपिल जी
आदरणीय योगराज जी हार्दिक बधाई,आपकी लघुकथा पर टिप्पणी करना, सूर्य को दीपक दिखाने जैसा कार्य है!चाह कर भी हिम्मत नहीं होती कुछ लिखने की पर दिल है कि मानता ही नहीं!सचमुच आप लघुकथा लेखन के सूर्य हो!बहुत बहुत बधाई इस खूबसूरत लघुकथा के लिये!
यह आपका स्नेह और बड़प्पन है आ० तेजवीर सिंह जी, रचना आपको पसंद आई इस हेतु दिल से आभारी हूँ I
उच्चवर्ग कैसे सहन कर सकता है कि एक धोबी और मेहतर मिलकर उस काम को करें जो आज तक उच्चवर्ग की बपौती रही है, वह भी एक पंडित के बेटे को बचाने के लिए।
वर्ण व्यवस्था का खाका जो सांख्यशास्त्र में वर्णित है, वह कर्म पर ही आधारित है, न कि जन्म पर। किन्तु समय के साथ साथ समाज ने इसे जन्म आधारित बना दिया।
आज जिसे दबा कुचला समाज समझा जाता है, वो जागरूक हो रहा है व समानता के सिध्धांत पर चल पड़ा है, पर उच्च वर्ग के लिए हज़म करना मुश्किल हो रहा है। वर्ण की परिभाषा को आपने बहुत सुन्दर तरीके से व्यक्त किया है इस लघुकथा में, व वर्णव्यवस्था पर तीक्ष्ण कटाक्ष भी। दिल से बधाई स्वीकार करें आ. योगराज जी।
क्या सुन्दर और सटीक विश्लेषण किया है आपने डॉ नीरज शर्मा जी, बस यही बात उभारने का प्रयास किया है मैने इस लघुकथा में I आपने रचना के मर्म को समझा जिस हेतु हार्दिक आभार
आ० अर्चना त्रिपाठी जी, कुछ फर्क तो पड़ा है लेकिन आज भी जाति और वर्ण व्यवस्था की जड़ें कहीं बहुत गहरे मौजूद हैं हमारे समाज और सोच में I लघुकथा पसंद करने के लिए दिलसे शुक्रिया .
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