आदरणीय साथिओ,
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बहुत बहुत आभार आदरणीय, आपकी टिप्पणी मेरे जैसे नौसिखिये के लिए बहुत ही उत्साहवर्द्धक है|
आप कहानी में इतने सरे पहलू देख पाए ये आपकी महानता है | प्रथम प्रयास था गलतियों के लिए क्षमा चाहता हूँ |
रचना के कथ्य की बात की जाए तो बहुत सुंदर है भाई केशव जी, लेकिन प्रस्तुति पर अभी और मेहनत की जरूरत लग रही है, रचना की अंतिम पंक्ति सहज ही // एक हीं लड़की के साथ बारी बारी से घूमने वाले कई लड़के भी तो
बढ़िया लघुकथा है आदरणीय केशव जी. कृपया आदरणीय वीरेंदर वीर मेहता जी की बातों का संज्ञान लें और आयोजन में सक्रियता दिखाते हुए अन्य लघुकथाओं पर भी अपनी टिप्पणियाँ दें. सादर.
जनाब केशव जी आदाब,लघुकथा का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
गुणीजनों की बातों का संज्ञान लें,और आयोजन में अपनी सक्रियता दिखाएँ ।
दोहरे मापदंडों को केन्द्र मे रखकर लिखि गई अच्छी कथा। हार्दिक बधाई आदरणीय केशव जी
कालेज के वर्तमान हालात पर तीक्ष्ण प्रहार करती है कथा ।पर कपड़ों से चरित्रहीनता का प्रमाण पत्र देना गलत है।फ़िलहाल कथा केलिये बधाई आद०
केशव जी
हकीकत को बयान करती सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई
जनाब केशव साहिब, सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
सभी बातों को परे कर हमें इस बात पर अवश्य ध्यान देना जरूरी हैं कि आज की युवा पीढ़ी किस ओर जा रही हैं और लोग अनायास ही उनका फायदा उठा रहे हैं।पंच पंक्ति वाकई में जबरदस्त पंच लगा रही हैं।हार्दिक बधाई केशव जी आपको
अच्छी लघुकथा के लिए बधाई केशव जी
विचारोत्तेजक रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय केशव सरजी ।
लघुकथा _इंसानियत का रिश्ता
रमजान के मुबारक महीने में सहरी से फारिग होकर खान साहब बैठे ही थे कि
पड़ोसी शर्मा जी के घर से चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी, उन्होंने बीवी से
कहा, "जरा देखो पड़ोस से आवाजें आ रही हैं ?"
बीवी ने जवाब में कहा,"हमें पड़ोस से क्या लेना देना, वह लोग मुसलमानों से त अललुक
नहीँ रखना चाहते "
खान साहब बीवी की बात अनसुनी करके फ़ौरन शर्मा जी घर पहुँच कर उनकी पत्नी
से बोले,"क्या बात है भाभी जी, क्यू रो रहे हैं?"
शर्मा जी की पत्नी ने रोते हुए कहा, "इनके सीने में दर्द हो रहा है, होश में नहीँ हैं "
खान साहब ने सोचा अस्पताल ले जाने में देर हो सकती है, उन्होंने फ़ोन करके अपने करीबी ह्रदय
के डाक्टर सिददीकी को गुजारिश करके बुलवा लिया ।
डाक्टर ने आते ही इनजकशन लगाया और कुछ दवाएं लिखने के बाद कहा ,"अगर कुछ देर
हो जाती तो इन्हे बचाना मुश्किल हो जाता "
कुछ समय बाद शर्मा जी को होश आ गया, सामने खान साहब को देख कर रोते हुए कहने लगे, "माफ
करना खान साहब, इस मुश्किल वक्त में बिरादरी का कोई आदमी नहीं आया, आपको ख़ुदा ने मदद के लिए फरिश्ता बना कर भेज दिया "
खान साहब शर्मा जी को तसल्ली देते हुए कहने लगे, "हिन्दू, मुसलमान तो हमने बनाए हैं, ख़ुदा ने तो
इन्सान बनाकर भेजा है, असली रिश्ता तो इंसानियत का है "
उसी वक्त फजर की अज़ान सुन कर शर्मा जी मुसकराते हुए बोले,"अल्लाह सबसे बड़ा है "
(मौलिक व अप्रकाशित)
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