ओपन बुक्स ऑनलाइन के सभी सदस्यों को प्रणाम, बहुत दिनों से मेरे मन मे एक विचार आ रहा था कि एक ऐसा फोरम भी होना चाहिये जिसमे हम लोग अपने सदस्यों की ख़ुशी और गम को नजदीक से महसूस कर सके, इसी बात को ध्यान मे रखकर यह फोरम प्रारंभ किया जा रहा है, जिसमे सदस्य गण एक दूसरे के सुख और दुःख की बातो को यहाँ लिख सकते है और एक दूसरे के सुख दुःख मे शामिल हो सकते है |
धन्यवाद सहित
आप सब का अपना
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आपका फोटो में न दीखना इस फोटो की कमी है, आदरणीय समर साहब.
जहाँ तक मुझे याद आ रहा है यह तुरत-फुरत में बन गयी योजना थी और जो जहाँ था वहीं से इस ग्रुप में एक-एक कर शामिल होता चला गया. आप संभवतः तब हॉल में कुछ देर के लिए न रहे हों, बाहर गये हों. होना तो यह चाहिए था कि ऐसे ग्रुप फोटो बकायदा तैयारी के साथ लिये जाते. ताकि हरसंभव कोई छूटने न पाता. वैसे बहुत कुछ पर निग़ाह थमी थी, जिसे हम सामुहिक तौर पर कुछ और बेहतर ढंग से सम्पन्न कर सकते थे. खैर, जो हुआ वह सब ’सीखने’ के नाम. यह भी ’सीखने-सिखाने’ की क्रिया है.
सादर
हुज़ूर, आप बाकायदा इस खादिम को बताकर नमाज़ अदा करने चले गए थेI
चलिए आज प्रधान जी ने उलझन सुलझा दी. आपने पूछा था तब से कई बार फ्लेश बेक में जाने पर भी मैं नहीं जान पा रहा था आप कहाँ रह गए थे आदरणीय समर कबीर साहब. सादर नमन.
हनुमान जी की तरह सीना फाड़ कर दिखाऊँ क्या साहिब जी ? हमारे दिल में आप ही आप हैं.
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी को जन्म दिन की ढेरों शुभकामनाएँ
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