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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-60

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे की पांच वर्ष पूर्ण करने पर आप सबको ढेर सारी बधाईयाँ और भविष्य के लिए शुभकामनाएं|  60 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह हैदराबाद के शायर जनाब अली अहमद जलीली साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"इश्क़ में रहज़न-ओ-रहबर नहीं देखे जाते"

2122    1122     1122    22

फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
(बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ)
रदीफ़ :- नहीं देखे जाते 
काफिया :- अर (रहबर, सागर, तेवर, दिलबर आदि )

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 जून दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 जून दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा|
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी|
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २६ जून दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

जनाब शिज्जु "शकूर" जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आप का तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ।
हुस्न को क्या है संवरने की ज़रूरत,बोलो
चाँद के माथे पे ज़ेवर नहीं देखे जाते
..... कुछ कुछ शेर तो चिंता में डाल गये हमें जनाब समर कबीर साहब और कुछ शेरों को पढकर तो दिल बाग बाग हो गये । वाह क्या गजल कही है आपने । पूरे गजल में कई रंग कई हालातों के जिक्र को बडे़ रूमानियत से पेश किये है आपने । बधाई

    जनाब समर जी, बेहतरीन अश'आर के साथ उस्तादी गज़ल के लिए दाद कबूल करें 

मोहतरमा कांता रॉय जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
जनाब मोहन बेगोवाल जी,आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

२१२२ ११२२ ११२२ २२

फाँसले प्यार में अक्सर नहीं देखे जाते

राह में जीत की पत्थर नहीं देखे जाते

 

डूबना है जिन्हें वो डूब ही जाते  अक्सर

प्यास में प्याले या सागर नहीं देखे जाते

 

काम गर करते हैं तो काम की मिलती कीमत

नौकरी में कभी तेवर नहीं देखे जाते

 

पाक़ खुशबू हुई चन्दन के शज़र से गायब

आज लिपटे हुए अजगर नहीं देखे जाते

 

रोज चौपाल पे इक साथ वो पीना हुक्का

गाँव में आज वो मंजर नहीं देखे जाते

 

आज दुनिया में बराबर नहीं बेटा बेटी

घोंसलों में कभी अंतर नहीं देखे जाते

 

तब घरों में तो चहकते थे हजारो पंछी

अब मकानों में कबूतर नहीं देखे जाते

 

नींद या ख़्वाब न पलकें ही झपकती उनकी

सरहदों पर  कभी बिस्तर नहीं देखे जाते

मौलिक एवं अप्रकाशित

 

बहुत ख़ूब आ. राजेश कुमारी जी.. हमेशा की तरह मुकम्मल ग़ज़ल के लिए बधाई ..

आ० नीलेश जी ,आपका तहे दिल से शुक्रिया |

रोज चौपाल पे इक साथ वो पीना हुक्का

गाँव में आज वो मंजर नहीं देखे जाते

 

आज दुनिया में बराबर नहीं बेटा बेटी

घोंसलों में कभी अंतर नहीं देखे जाते

बहुत ही सुन्दर गज़ल हुयी है आदरणीया!नमन!

// आज दुनिया में बराबर नहीं बेटा बेटी

घोंसलों में कभी अंतर नहीं देखे जाते // , वाह , वाह , बहुत उम्दा ग़ज़ल आदरणीया.

विनय कुमार जी ,बहुत-बहुत शुक्रिया इस होंसलाफ्जाई का |

फ़ासले प्यार में अक्सर नहीं देखे जाते

जीत की राह में  पत्थर नहीं देखे जाते..... बढ़िया मतला 

 

डूबना है जिन्हें वो डूब ही जाते  अक्सर

प्यास में प्याले या सागर नहीं देखे जाते.... बेहतरीन शेर 

 

काम गर करते हैं तो काम की मिलती कीमत

नौकरी में कभी तेवर नहीं देखे जाते....... वाह वाह..... क्या खूब कहा है ......

 

पाक़ खुशबू हुई चन्दन के शज़र से गायब

आज लिपटे हुए अजगर नहीं देखे जाते........... उम्दा शेर 

 

रोज चौपाल पे इक साथ वो पीना हुक्का

गाँव में आज वो मंजर नहीं देखे जाते...... बढ़िया 

 

आज दुनिया में बराबर नहीं बेटा बेटी

घोंसलों में कभी अंतर नहीं देखे जाते........ सच कहा .... बेहतरीन शेर 

 

तब घरों में तो चहकते थे हजारो पंछी

अब मकानों में कबूतर नहीं देखे जाते........ बढ़िया..... बहुत ही उम्दा शेर 

 

नींद या ख़्वाब न पलकें ही झपकती उनकी

सरहदों पर  कभी बिस्तर नहीं देखे जाते...... हासिल ए ग़ज़ल 

आदरणीया राजेश दीदी शानदार ग़ज़ल हुई है ... दिल से दाद कुबूल फरमाएं 

बस एक चूक हो गई.... लगता है गिरह का शेर ग़ज़ल में सम्मिलित नहीं हो पाया .....

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