आदरणीय साथिओ,
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शुक्रिया विनय जी।
कहानी विषय से अलग क़तई नहीं है। हमें किसी के बारे में निंदा करने का क्या अधिकार है। और क्या हमने अपने जीवन साथी को उतना ध्यान दिया है जितने की वो अधिकारी है।
बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणी अजय सरजी।
शुक्रिया बबीता जी
आदाब। सुस्वागतम आदरणीय दण्डपाणि नाहक जी। हार्दिक बधाई। बहुत बढ़िया रचना को अंतिम पंक्ति पूर्ण कर शीर्षक सहित कृपया दोबारा प्रेषित कीजिएगा आदरणीय संपादक महोदय की अनुमति चैट बॉक्स में लेकर।
एक एक सशक्त एक सशक्त लघुकथा हुई है भाई जी। बहुत बहुत बधाई
आदरणीय दण्डपाणि नाहक जी , सच है कि यह प्रश्न सम्पूर्ण विश्व के लिए है। अधिकारों के लिए बहुत संघर्ष हुए , कर्तव्य के लिए नहीं। जबकि वास्तविकता यह है कि हर अधिकार में एक न एक कर्तव्य बोध निहित होता है , मनुष्य उस भाव को भूल जाता है। इस गंभीर प्रस्तुति के लिए बधाई , सादर।
बढ़िया प्रयास विषय पर लिखने का आ दंडपाणि नाहक जी, रचना अधूरी भी है और शीर्षक भी नहीं दिया है आपने. प्रयासरत रहें, शुभकामनायें
हार्दिक बधाई आदरणीय दंडपाणी नाहक जी। विषयांतर्गत बेहतरीन लघुकथा।प्रतीकों के माध्यम से आपने एक सशक्त लघुकथा द्वारा व्यवस्था पर करारा प्रहार किया है। बढ़िया कटाक्ष।
लघुकथा— मौज बनाम अधिकार
पत्नी ने भूख हड़ताल कर दी. तब पति को उस की बात मान कर नौकर के घर जाना पड़ा,'' रामू ! तूझे घर चलना पड़ेगा. तू ऐसे नौकरी नहीं छोड़ सकता है ?''
रामू ने हाथ जोड़ कर कहा, '' नहीं साहब ! मैं आप के यहां नौकरी नहीं कर पाऊंगा ?''
'' क्यों भाई ? किसी ने कुछ कहा है ?''
'' नहीं साहब?'' रामू ने हाथ जोड़ कर कहा, '' सभी भले लोग है. मेरा अच्छे से ख्याला रखते हैं.''
'' फिर, तनख्वाह कम पड़ रही हो तो बढ़ा देता हूं.''
'' जी नहीं साहबजी, '' रामू बोला, '' ऐसी बात नहीं है. मुझे बहुत पैसे मिलते हैं.''
'' अरे ! तब क्या दिक्क्त है '' साहब ने कहा.
मगर, वह नहीं माना. साहब भी कब मानने वाले थे. उस से हर चीज पूछी. मगर, रामू को खाने, पीने से ले कर आनेजाने तक की कोई परेशानी नहीं थी.
'' आखिर बात क्या है ?'' साहब ने परेशान हो कर पूछा,'' कुछ तो बता दें ।''
यह सुन कर रामू की आंख में आंसू आ गए, '' साहबजी ! मैं मजबूर हूं. मौज के लिए आप का और मेरी पत्नी का हक नहीं मार सकता हूं.'' उस ने नीचे गरदन किए हुए धीरे से जवाब दिया.
'' क्या !'' साहब चौंकते हुए बोले और फिर चुपचाप कार में बैठ कर अपने घर चल दिए.
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(मौलिक और अप्रकाशित )
अरे अरे अरे अरे एकदम अप्रत्याशित विशिष्ट लघुकथा बहुत उत्तम बहुत उत्तम बहुत सी बधाइयां स्वीकार करें आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी
अरे वाह ! बहुत शालीन प्रस्तुति , आदरणीय ओम प्रकाश क्षत्रिय जी , बधाई , सादर।
हार्दिक बधाई आदरणीय भाई ओम प्रकाश जी। विषयांतर्गत बेहतरीन लघुकथा। तीन मशहूर हठ होती हैं - राज हठ, बाल हठ, त्रिया हठ।आपने त्रिया हठ को लेकर एक सुंदर लघुकथा प्रस्तुत की।अधिकाँश मामलों में पुरुष त्रिया हठ के आगे परास्त हो जाते हैं।यहाँ तक कि वह भी विवेकहीन हो जाते हैं। यह भी तय नहीं कर पाते कि हठ जायज है कि नहीं।बढ़िया रचना।
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