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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-58

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 58 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह उस्ताद-ए-मोहतरम जनाब फरहत एहसास साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल से लिया गया है|

 

"मेरा इश्क भी कोई इश्क है कि न खुश करे न मलाल दे"

11212 11212 11212 11212

मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन मुतफाइलुन

(बह्र: कामिल मुसम्मन सालिम )
रदीफ़ :- दे
काफिया :- आल (मलाल, ज़वाल, निकाल, उछाल  आदि )

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 अप्रैल  दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 25 अप्रैल दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 24 अप्रैल दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

बहुत शानदार प्रयास है आदरणीय. यदि शब्द के वज़'न को छोड़ दूँ तो आपकी बात पूरी तरह प्रेषित हो रही है और रस भी दे रही है.  
उर पीर   दारुण  शूल सा   तन  बावरा मधु  फूल सा क्या बात ..
बस अब, अह, तब मन हम आदि 11 न होकर 2 हैं और ये बहर इसकी इजाज़त नहीं देती.
हाँ मतले में तरही मिसरा न लें, किसी और शेर में ले लें
इस प्रयास के लिए फिर बधाई  

गिरह का मिसरा मतले में क्यों उपयोग कर लिया आ० डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी?

ग़ज़ल के भाव में कहीं कोई कमी नहीं है बस मात्राएँ सध जाएँ तो आदरणीय बात कुछ और होगी बाकि गुणी जनों ने कह दिया जहाँ लोच है मैं बाहर जाने की तैय्यारी में हूँ वरना आपको शेर दर शेर समझाती अभी व्यस्त हूँ कल सुबह निकलना है .बहरहाल आपको सहभागिता के लिए बधाई 

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर ग़ज़ल के अशआर के भाव बहुत उम्दा है बस बह्र-ए-कामिल(11212) कुछ अशआर में बह्र-ए-रजज़(2212) हो गई है. शेष सुधिजन कह चुके है.

इस प्रस्तुति हेतु बधाई और आपकी लगन को नमन 

बहुत ही अच्छा प्रयास है ... कहन बहुत ही दमदार है ... 

इस मंच पे इतना कुछ है की एक सफल ग़ज़ल कहने में देर नहीं लगेगी ... बधाई इस सराहनीय प्रयास के लिए ... 

आदरणीय गोपाल सर सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई और आ० आपकी लगन को नमन!आपके प्रयास को नमन!जल्द ही आपकी उम्दा गजल देखने को मिलने वाली है,यह निश्चित है.

अच्छा प्रयास है ..कई जगह बह्र चूक रही है..कहन भी उलझा हुआ है.
शिरकत के लिए बधाई  

सुविधा हमारे लिये नहीं, ये वो चाश्नी जो सवाल दे.

तेरे राज भी अब छिपे नहीं, जो कि हौसलो को उछाल दे.

मेरे स्वप्न माल में आईये; तो हुजूर,  नींद की राह से

ये खुले नयन जो डरे-डरे, न कहे हसीन  धमाल दे.

जिसे जानते थे न दोस्ती,  न कि दुश्मनी के लिये सही,

वही जिंदगी संवारता, मेरा हम सफर सा रसाल दे.

तेरे रंग-रूप की चाहते, ये हसी बहार मिसाल है,

मेरा इश्क भी कोई  इश्क है, कि न खुश करे न मलाल दे.

उसे राम नाम की क्या पडी, न खुदा खुदी में बुलंद वो

वो रहीम संत कबीर खुद, जो कि जाति‌-पाति निकाल दे.

कोई शेरेहिंद कमाल का, कोई बाद्शाह असूल का,

किसे सौप दू  ये हसीन पल, जो कि दो जहाँ का गजाल दे.

के0पी0 सत्यम/ मौलिक एवम अप्रकाशित

चलना सुरु किया है तो मार्ग का अध्ययन भी शुरू करें. मंज़िल जल्दी मिलेगी.
सादर  

आदरणीय केवल प्रसाद जी इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

इन मिसरों को देख लीजियेगा -

सुविधा हमारे लिये नहीं,.....................

वही जिंदगी संवारता,....................

सादर 

बहुत खूब केवल जी ... कुछ शेर तो काबिले तारीफ़ है... लाजवाब आर नए भाव लिए ... मज़ा आया इस ग़ज़ल पर ...

बहुत बधाई ... 

जनाब केवल प्रसाद जी,आदाब,तरही मिसरे पर आपने अच्छा प्रयास किया है आपने,बधाई स्वीकार करें |

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