For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-62

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 62 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह मशहूर शायर जनाब  "शाद अज़ीमाबादी"  की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"मेरी तलाश में मिल जाए तू, तो तू ही नहीं।"

1212 1122 1212 112

मुफाइलुन फइलातुन मुफाइलुन फइलुन

(बह्रे मुज्‍तस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर)
रदीफ़ :- ही नहीं 
काफिया :- ऊ (तू, लहू, गुफ्तगू, जुस्तजू, अदू आदि)

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 21 अगस्त दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 22 अगस्त दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 21 अगस्त दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 11076

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

बहुत बहुत आभार आ. कान्ताजी आपकी दाद के लिए।

आदरणीया नीरज जी , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , ये दोनो आध्यात्मिक भाव के अशआर  खूब पसन्द आये ।

जहां में मोह व माया सा तो अदू ही नहीं।

इसीलिए तो खुदा होता रूबरू ही नहीं।  -- सत्य वचन !

न मिल सकेगा खुदा लाख चाहने पर भी

करो सफा दिलों को भी , फक़त वज़ू ही नहीं   -- ऊपरी सफाई  , बनावटी श्रद्धा भाव के कुछ हासिल नही हो सकता , सही कहा आपने ।

आपको गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ।

तहेदिल से शुक्रिया आ. गिरिराज जी रचना पसंद करने के लिए।

जहां में मोह व माया सा तो अदू ही नहीं।

इसीलिए तो खुदा होता रूबरू ही नहीं।-----बहुत खूब कहा वाह्ह 

जहां के कोने कोने में तुझे तलाश किया---इसमें बह्र थोड़ी भटकी हुई लगी ----कोने के न को गिरा सकते हैं को को नहीं ---दुसरे कोने को कुने पढ़ा जा रहा है 

बची हो कोई जो दुनिया में, कू-ब-कू ही नहीं।(कू-ब-कू  गली-गली)

न मिल सकेगा खुदा लाख चाहने पर भी

करो सफा दिलों को भी , फक़त वज़ू ही नहीं।( वज़ू--नमाज़ से पहले हाथ मुंह धोना)बेहतरीन शेर 

करो दिलों को जरा साफ़ फ़कत वजू ही नहीं --ऐसा करके देखें 

करो निसार जान-औ`-तन वतन की राहों में---यहाँ बह्र गड़बड़ा गई है जान के जा को नहीं गिरा सकते 

करो निसार सदा जाँ वतन की खातिर तुम ---ये कर सकती हो ----राहों में ठीक नहीं राह होता है  

वतन के वास्ते खौले न जो लहू ही नहीं।

 

मिटी हूं जिसके लिए मैं वफ़ा की राहों में

उसे तो पर कभी थी मेरी आरज़ू ही नहीं।----बहुत खूब 

समझ न आए किया क्या ये तूने सेहर है (सेहर-- जादू-टोना)

मेरी तलाश में मिल जाए तू तो तू ही नहीं।-----ठीक 

बड़े अकीदे से दी थी जो तूने रब मुझको  ( अकीदा--विश्वास)

मैं रख सकी वो चदरिया भी मू-ब-मू ही नहीं।(मू-ब-मू -- ज्यों की त्यों) चदरिया के साथ मू ब मू ....जमा नहीं 

कुल मिलाकर आपने बहुत बढ़िया प्रयास किया है थोड़े से सुधार से ग़ज़ल चमक उठेगी ऐसा मेरा विश्वास है ...बहुत बढ़िया प्रयासरत रहें ..हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें डॉ० नीरज जी  

तहेदिल से शुक्रिया आ. राजेश कुमारी जी। इंगित संकेतों का भान हुआ, ध्यान दूंगी।

करो दिलों को जरा साफ़ फ़कत वजू ही न--- साफ़ व फ़कत एक साथ नहीं आ सकते-- लय बिगड़ रही है।

 आदरणीया नीरजजी,सभी अश'आर बा -कमाल हुए , कई उर्दू भाषा के नए अलफाज सीखने को मिले 

बहुत सुंदर अशआर हुए हैं..ढेर सारी बधाई पेश है 

समझ न आए किया क्या ये तूने सेहर है (सेहर-- जादू-टोना)

मेरी तलाश में मिल जाए तू तो तू ही नहीं।

बड़े अकीदे से दी थी जो तूने रब मुझको  ( अकीदा--विश्वास)

मैं रख सकी वो चदरिया भी मू-ब-मू ही नहीं।(मू-ब-मू -- ज्यों की त्यों)

इन दोनों अलग तासीर के अशआर पर तो ख़ास बधाई आ० नीरज शर्मा जी 

न जाने कब से हमारी तो गुफ्तगू ही नहीं

हमें भी मिलने की अब तुमसे आरज़ू ही नहीं

 

तमाम उम्र की कोशिश, मगर मना न सके

हमीं पे फिर भी है तोहमत के आरज़ू ही नहीं

 

 

बहुत मिला है खुदा से बस एक तेरे सिवा

खुदा का शुक्र करूँ कैसे जब के तू ही नहीं

 

पहुँच गया हूँ मै मंजिल के आस पास मगर

मेरी तलाश में मिल जाए तू तो तू ही नहीं

 

 

खुदी को कर लिया ज़ख्मी, खुदी तबाह हुये

हमी हैं ख़ुद के, कोई और अब अदू ही नहीं 

 

दिया है आस से ज्यादा मुझे खुदा ने मगर

मुझे तलाश है तेरी के एक तू ही नहीं

 

भटक रहा हूँ मै कब से बस एक तेरे लिए

है एक तू के जिसे मेरी जुस्तजू ही नहीं

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

नादिर भाईजी, आपकी उपस्थिति से आयोजन का आयाम और बढ़ गया. 

भटक रहा हूँ मै कब से बस एक तेरे लिए

है एक तू के जिसे मेरी जुस्तजू ही नहीं

इस शेर के हवाले से आपकी ग़ज़ल पर दाद कह रहा हूँ.  

ग़िरह का शेर बहुत ही बढ़िया हुआ है. इसके लिए अलग से दाद लीजिये. किसी खास की अपनी ज़िन्दग़ी में कितना महत्त्व होता है, उसका सुन्दर नमूना है आपका उक्त शेर.

काफ़िया के हिसाब से कहा जाय तो आप भी थोड़ा परेशान दिख रहे हैं.  लेकिन आपकी कोशिशों पर मन प्रसन्न है. 

शुभ-शुभ

अदरणीय सौरभ सर हमारी कोशिश को आपने सराहा बहुत शुक्रिया आपका ...

आदरणीय नादिर खान सर, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल हुई है, शेर दर शेर दाद हाज़िर है-

न जाने कब से हमारी तो गुफ्तगू ही नहीं

हमें भी मिलने की अब तुमसे आरज़ू ही नहीं...........  बहुत अच्छा मतला हुआ है.

 

तमाम उम्र की कोशिश, मगर मना न सके

हमीं पे फिर भी है तोहमत के आरज़ू ही नहीं......... बहुत खूब 

 

 

बहुत मिला है खुदा से बस एक तेरे सिवा

खुदा का शुक्र करूँ कैसे जब के तू ही नहीं....... बढ़िया शेर 

 

पहुँच गया हूँ मै मंजिल के आस पास मगर

मेरी तलाश में मिल जाए तू तो तू ही नहीं............ शानदार गिरह लगाईं है 

 

 

खुदी को कर लिया ज़ख्मी, खुदी तबाह हुये

हमी हैं ख़ुद के, कोई और अब अदू ही नहीं ............ बहुत ही बेहतरीन शेर हुआ है.

 

दिया है आस से ज्यादा मुझे खुदा ने मगर

मुझे तलाश है तेरी के एक तू ही नहीं............... बहुत अच्छा शेर है. 

 

भटक रहा हूँ मै कब से बस एक तेरे लिए

है एक तू के जिसे मेरी जुस्तजू ही नहीं........... कमाल का शेर .... हासिल-ए-ग़ज़ल 

इस शानदार ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कुबूल फरमाएं.

 

हौसला अफजाई का बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश जी ... दोपहर 2 बजे से लगे थे साढ़े 6 बजे गज़ल कंप्लीट हुयी अब लगता है मेहनत व्यर्थ नहीं गई कोशिश  सार्थक हुयी ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' posted a blog post

गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा

सार छंद 16,12 पे यति, अंत में गागाअर्थ प्रेम का है इस जग मेंआँसू और जुदाईआह बुरा हो कृष्ण…See More
Thursday
Deepak Kumar Goyal is now a member of Open Books Online
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. बृजेश जी "
Wednesday
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"अपने शब्दों से हौसला बढ़ाने के लिए आभार आदरणीय बृजेश जी           …"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहे
"ज़िन्दगी की रह-गुज़र दुश्वार भी करते रहेदुश्मनी हम से हमारे यार भी करते रहे....वाह वाह आदरणीय नीलेश…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आदरणीय अजय जी किसानों के संघर्ष को चित्रित करती एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी एक और खूबसूरत ग़ज़ल से रूबरू करवाने के लिए आपका आभार।    हरेक शेर…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय भंडारी जी बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है सादर बधाई। दूसरे शेर के ऊला को ऐसे कहें तो "समय की धार…"
Wednesday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय रवि शुक्ला जी रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन और आभार। लॉगिन पासवर्ड भूल जाने के कारण इतनी…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"जी, ऐसा ही होता है हर प्रतिभागी के साथ। अच्छा अनुभव रहा आज की गोष्ठी का भी।"
May 31
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"अनेक-अनेक आभार आदरणीय शेख़ उस्मानी जी। आप सब के सान्निध्य में रहते हुए आप सब से जब ऐसे उत्साहवर्धक…"
May 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service