For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 65 में सम्मिलित सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ)

परम आत्मीय स्वजन 65वें तरही मुशायरे का संकलन हाज़िर है| मिसरों को दो रंगों में चिन्हित किया गया है, लाल अर्थात बहर से खारिज मिसरे और हरे अर्थात ऐसे मिसरे जिनमे कोई न कोई ऐब है|

________________________________________________________________________________

मिथिलेश वामनकर


मोह-माया से जनित खेल से हटकर देखो
ज़िन्दगी जा रही किस ओर, बराबर देखो

मित्र जीवन कभी निर्वात नहीं हो सकता
साथ देता है उजालों का भी ईथर देखो

जेठ की तप्त हवा ने भी किवाड़ो से कहा
अपनी यादों के ख़जाने में दिसंबर देखो

अब भरोसा भी सुधा का न रहा बिनती पर
और बिकता हुआ ये आज का चन्दर देखो

एकता का भी तनिक अर्थ समझ लो भाई
देखना हश्र तो इतिहास में बक्सर देखो

यंत्रणा औरों पे होते हुए तो देखी बहुत
आ रहा है या नहीं आपका नम्बर देखो

एक निर्धन की हरो पीर, कि संबल दो उसे
और वरदान लिए आप ऋतम्भर देखो

आज नदियों ने सभी ओर से ऐसे छेड़ा
"पानी पानी हुआ जाता है समन्दर देखो"

_______________________________________________________________________________

Samar kabeer

अपनी आँखों से ये पर्दा तो हटा कर देखो
कुछ भी पोशीदा नहीं सब है उजागर देखो

जब से आया है बशर चाँद पे जाकर, देखो
पाँव पड़ते ही नहीं इसके ज़मीं पर देखो

'मीर'-ओ-ग़ालिब सा यहाँ कोई भी क़ल्लाश नहीं
माल अब ख़ूब बनाते हैं सुख़नवर देखो

आज बाज़ार में बिकने को चला आया है
अपनी तहज़ीब के माथे का ये ज़ेवर देखो

शाइरी क्या है,मियाँ ख़ुद ही समझ जाओगे
मेरे अशआर की तह में तो उतर कर देखो

तुमने तस्वीरों में देखा है,सुने हैं क़िस्से
अपनी आँखों से भी इक बार समन्दर देखो

मेरे आँगन का शजर जबसे समर दार हुवा
सबके हाथों में नज़र आते हैं पत्थर देखो

शर्म आती है इसे ख़ुश्क लबों से मेरे
"पानी पानी हुवा जाता है समन्दर देखो"

था जवानी में जिन्हें शौक़-ए-कबूतर बाज़ी
हाथ फैलाए "समर" फिरते हैं दर दर देखो

________________________________________________________________________________

शिज्जु "शकूर"

इस बदलती हुई दुनिया को बराबर देखो
भावनाओं का उफनता हुआ सागर देखो

रायपुर देखने वालो चलो बस्तर देखो
खून से भीगे हुये फूस के छप्पर देखो

क़त्ल नफ़रत की कहानी है कई बरसों से
क्या नया गुज़रे है अख़बार उठाकर देखो

रात की गहरी ख़मोशी में अकेला है फ़लक
और वो चाँदनी जलने लगी दर-दर देखो

सींचता हूँ जो शजर आँसुओं से मैं दिन-रात
मेरी ग़ज़लों में हैं उसके कई पैकर देखो

हौसला खत्म जहाँ होने लगे राही, तुम
इक अलामत कोई मंज़िल की वहींपर देखो

जब कोई राह बनानी हो तुम्हें आगे की
तो सदा अपनी समस्याओं में अवसर देखो

भावनाओं की मेरी पा न सका थाह ‘शकूर’
“पानी-पानी हुआ जाता है समंदर देखो”

_______________________________________________________________________________

नादिर ख़ान

मेरी आँखों से कभी आँख मिलाकर देखो
अपनी यादों का उमड़ता हुआ सागर देखो

दर्द अपना कभी आँखों से न बहने देना
डूब जाते हैं सुनामी में कई घर देखो

हम उगाते हैं मगर देखते रह जाते हैं
अब गरीबों की नहीं, थाली में अरहर देखो

सिर्फ मुझमें है बुराई, ये नहीं हो सकता
तुम कभी अपने गिरेबाँ के भी अन्दर देखो

मौत अयलान की सैलाब ले के आई है
पानी पानी हुआ जाता है समुन्दर देखो

है ये दुनिया भी उसी की, हैं उसी के हम सब
अपनी नज़रों से सभी को तो बराबर देखो

कितना मुश्किल है यहाँ, खुदको बचाऊँ कैसे
सबने रक्खा है निशाने पे मेरा सर देखो

जाने किस गम ने उसे घेर रखा है नादिर
अपनी लहरों में सिमटता हुआ सागर देखो

_______________________________________________________________________________

जयनित कुमार मेहता

लाख तीरथ करो,या पूज के पत्थर देखो..
न मिलेगा रब, अगर दिल के न भीतर देखो..

रंग लाती है दुआ क्या,ये पता भी तो चले,
कभी आशीष बुज़ुर्गों के तो लेकर देखो..

आग बदले की धधक कर के बताती है मुझे,
सूख जाता है यूँ ही नेह का सागर देखो..

बात जब हद से ज़ियादा बढ़े,दिल मेरा करे,
आप घर देखूँ,कहूँ बीवी से दफ़्तर देखो..

मेरे अश्कों ने भी क्या खूब सितम ढाया है,
पानी-पानी हुआ जाता है समन्दर देखो..

हो के बेख़ौफ़ उड़ो दूर गगन में 'जय' पर,
हों ज़मीं पर ही तिरे पाँव,ये अक्सर देखो..

________________________________________________________________________________

rajesh kumari


सिर्फ इंसान है इंसान यहाँ पर देखो
कोई छोटा न बड़ा सबको बराबर देखो

नींद पलकों पे खुदी आएगी चलकर देखो
एक मजदूर से बिस्तर को बदल कर देखो

भूख लगती है बराबर सभी खाते रोटी
हर किसी का है लहू लाल न अंतर देखो

तीरगी में ये भटकता हुआ जुगनू आया
झोंपड़ी हो गई उससे ही मुनव्वर देखो

मुक्त आज़ाद परिंदे की तरह उड़ता था
फँस गया आज सियासत में सुखनवर देखो

छू लिया झुक के घटाओं ने बदन हौले से
पानी पानी हुआ जाता है समंदर देखो

इक तरफ ऊँचे मकानों में ख़ामोशी छाई
कहकहों से हुआ गुलज़ार कहीं घर देखो

देखना है जो तुम्हें आज का असली भारत
कँपकपाता हुआ हर रात सड़क पर देखो

खूब करते रहो खिलवाड़ अभी कुदरत से
क्यूँ न गलती का फिर अंजाम भयंकर देखो

______________________________________________________________________________

Manoj kumar Ahsaas

बूंद में कैसे छिपा रहता है सागर देखो
अपने अहसास के दरिया में उतरकर देखो

रोती फिरती है वफ़ा इश्क़ में दर दर देखो
कितने ज्यादा है ज़माने में सितमगर देखो

कैसे आया है मेरे सर पे ये छप्पर देखो
मेरे पापा की हथेली को भी पढ़कर देखो

सर पे मालिक के नए कपड़े की चादर देखो
सारी दुनिया को बनाकर उसे बेघर देखो

सख्त कोशिश थी मेरी तुम रहो दिल में मेरे
कैसे बिखरा है तेरे गम में मेरा घर देखो

तेरी दुनिया में सभी एक बराबर लेकिन
रौशनी सबको नहीं मिलती बराबर देखो

मैं तेरे इश्क में बेबात फ़ना हो बैठा
काम आया न तेरे दर के मेरा सर देखो

भावना कौनसी थी उसको मैं समझा ही नहीं
शाइरी चूमती है सत्ता की ठोकर देखो

देखकर मेरी निगाहो की तलब को यारो
पानी पानी हुआ जाता है समंदर देखो

मुझसे होता तो नहीं तेरा बयां इश्क़ कभी
लोग कहने न लगे मुझको सुखनवर देखो

सारी दुनिया से फरेबो से अदाकारी से
जल न जाये कहीं"अहसास"का मंज़र देखो

_______________________________________________________________________________

इमरान खान

खस्ता दीवारों से गिरता है पलस्तर देखो,
कितनी सीलन से भरा है ये दिली घर देखो.

घौंसले जल गए कल रात मगर भागे नहीं,
हौसलामंद परिंदों के जले पर देखो.

रोती आंखों में वो धारे कि ज़मीं डूब गई,
‘पानी पानी हुआ जाता है समंदर देखो’.

रोज़े अव्वल से मुझे खानाबदोशी ही मिली,
इसलिए ही तो मुझे रास नहीं घर देखो.

मुझको बस एक ही खदशा था जुदाई न मिले,
वो गया दूर तो निकला ये मेरा डर देखो.

मैंने ‘इमरान’ कभी हार नहीं मानी मगर,
कर ली इस बार मुहब्बत, ये झुका सर देखो.

______________________________________________________________________________

मोहन बेगोवाल

वो दिखाए जो तुझे फूल न मंजर देखो |
साथ जो लाए छिपा हाथ में खंजर देखो|

ये हवा , नीर व् असमान वही है तो फिर,
घर डरा जाए वो अख़बार छपा ड़र देखो |

जो बताया था मुझे वो ही सुनाया सब को,
इस जमाने में नई बात सुना कर देखो |

इन पहाड़ों से जो दरियाओं ने आ के मिलना,
पानी पानी हुआ जाता है समंदर देखा |

मेरे घर की कभी तस्वीर लगाओ अपने ,
तब सवालों को जवाबों के बराबर देखो |

______________________________________________________________________________

laxman dhami

जब अँधेरे में कोई दीप जलाकर देखो
खीझ सूरज के मुखौटे की बराबर देखो /1

प्यास अपनी है कहाँ तक न मयस्सर देखो
फिर किसी रेत के दरिया में उतरकर देखो /2

जिंदगी रोज तो मौका न सभी को देगी
हाथ फैले हों तो जेबों को उलटकर देखो /3

कौन सी बात कही कान में शबनम तूने
"पानी पानी हुआ जाता है समन्दर देखो "/4

दौड़ना यार जमाने में जरूरी लेकिन
गिर गए राह में उनको भी उठाकर देखो /5

लिख गई जिन के मुकद्दर में गरीबी यारब
रच रहे खूब वो औरों का मुकद्दर देखो /6

कल तलक राह की अड़चन ही हुआ करते थे
हो गए आज यहाँ देव वो पत्थर देखो /7

बात आगाज की सब लोग बहुत करते हैं
बात तो तब है कि अंजाम का मंजर देखो /8

________________________________________________________________________________

गिरिराज भंडारी

हौसला हो न , सड़क पर न ठहर कर देखो
खिड़कियों से भी जो झाँको, बचा के सर देखो

दुनिया कैसी है , कहाँ है , तुम्हें हो क्यूँ मतलब
जन्म दिन तुम भी मनाओ, सजा के घर देखो

तुम ये देखो कि तुम्हें मंज़िलों की ताब रहे
तुम चले थे कहाँ से ये न पलट कर देखो

वाकिया जिसकी मज़म्मत ही किया है सबने
फिर भी हो जाता है, क्यूँ कर वही अक्सर देखो

बर ख़िलाफ़ आये थे, को भीड़ के उकसाने से
अब अकेले में सताता है उन्हें डर देखो

आसमानों में धुवाँ है, ये दिखाने वालों
तुम उड़ानों के लिये ख़ुद के अभी पर देखो

खूब रू शक़्ल को यूँ ढाँक के चलना फिरना
किसको मंज़ूर है, ये पूछ परख कर देखो

दोष अपनों का कहाँ , किसको नज़र आता है
ग़ैर समझो कभी, तुम दूर से , हट कर देखो

बेकराँ झील सी आँखों का तेरी यूँ बहना
"पानी पानी हुआ जाता है समन्दर देखो"

कल तुम्हें भी यही एहसास सतायेगा ज़रूर
मेरी राहों से अगर तुम भी गुज़र कर देखो

शांत सागर भी क्यूँ तूफान हुआ जाता है
जानना चाहो तो मौजों से लिपटकर देखो

________________________________________________________________________________

डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव

देखना है गर उसकी हर मेहर देखो
दूसरे का घर छोडो अपना घर देखो

मानते हैं उनकी ताकत का लोहा सब
और तुम दर्द नहीं बस अपना डर देखो

आँख से आज बही जो अश्रु धारा मेरी
पानी-पानी हुआ जाता है समन्दर देखो

बाहरी साज लुभाता सबको है अक्सर
देखना गर सच है तो अभि-अंतर देखो

चाहते हो चुप तालाब करे सरगोशी
फेंक कर एक बड़ा सा तुम कंकर देखो

चाँद तारों तक ऊंचा उठने की जिद हो
तो नहीं नीचे धरा पर बस अम्बर देखो

कौन जाने उस राधा पर क्या-क्या बीती
आप तो बस इठलाते मुरलीधर देखो

________________________________________________________________________________

दिनेश कुमार


कैसे जीते हैं ग़रीबी में ये बेघर देखो
ग़ैर के दर्द में भी अश्क बहा कर देखो

बेबसी पाँव पसारे हुए बैठी है यहाँ
तुमको फ़ुर्सत जो मिले आके मेरा घर देखो

जिसकी लाठी है वही, भैंस भी ले जायेगा
झूट के सामने, सच का है झुका सर देखो

हाथ पर हाथ रखे बैठे रहोगे कब तक
भूल कर हार पुरानी, नए अवसर देखो

अर्दली हो के भी समझे है ये खुद को अफ़सर
ये मेरा जिस्म, मेरी रूह का पैकर देखो

तुम नए दौर की हर रस्म को अपनाओ मगर
हाथ से छूटे न तहज़ीब का ज़ेवर देखो

चश्मे-पुरनम के मुक़ाबिल ये कहाँ तक टिकता
"पानी पानी हुआ जाता है समन्दर देखो"

अपनी आँखों का तो शहतीर निकालो पहले
तुम "दिनेश" औरों की आँखों का न कन्कर देखो

_____________________________________________________________________________

Tasdiq Ahmed Khan

दिल लगाने के लिए गोर से दिलबर देखो
इश्क़ की राह में मिलते हैं सितम्गर देखो

अंजुमन में कहीं उठ जाए न महशर देखो
मेरे महबूब मेरी सिम्त न हंस कर देखो

वो यूही तो न मेहेरबान हुए हैं मुझ पर
मेरी उलफत का असर हो गया उन पर देखो

दर ज़माने का ख़यालों से निकालो पहले
बे ख़तर आँखों से फिर प्यार के मंज़र देखो

बज़म में ज़िकरे वफ़ा छेड़ दिया है किसने
उनके तब्दील हुए जाते हैं तेवर देखो

कारवाँ दिन में ही महफूज़ नहीं है यारो
रहनूमाई के लिए दूसरा रहबर देखो

देख के अर्ज़ पे बे दर्द सूनामी का क़हेर
पानी पानी हुआ जाता है समुंदर देखो

मेरी बर्बादी पे अफ़सोस उन्हे हो या न हो
उनकी आँखें मगर आती हैं नज़रतर देखो

यकबयक उनके ही आने से करिश्मा ये हुआ
लग रहा है मेरा वीरान मकान घर देखो

ठोक्रों में तुम्हें आएगा नज़र दीवाना
गोर से आप कभी कुचे के पत्थर देखो

तुम भी तस्दीक़ ना उम्मीद दीवानों की तरह
आज़माकर दर ए दिलबर पे मुक़द्दर देखो

________________________________________________________________________________

NAFEES SITAPURI

इत्तेफ़ाकन कभी गुज़र था वो छूकर देखो
अब भी तूफान बपा है मेरे अंदर देखो

कितना चाहा है तुम्हें टूट के दिलबर देखो
पांव चादर से निकल आए हैं बाहर देखो

पूजने से मेरे बन जाता है भगवान मगर
छोड़ दूं इस को तो हो जाएगा पत्थर देखो

होश जाता हैं तो जाएं मुझे परवाह नहीं
बे सबब ही सही इक बार तो मुड़कर देखो

जिसका होने पे ज़माना है मुख़ालिफ़ मेरा
वो ही मेरा न हुआ मेरा मुकद्दर देखो

भीड़ में सब मेरे अपने थे कोई ग़ैर न था
जाने किस सिम्त से आने लगे पत्थर देखो

आज भी सोने की चिड़िया है मेरा मुल्क मगर
एक मुन्सिफ़ की तरह सब को बराबर देखो

आज तक वो मेरी चाहत को समझ ही न सका
खूब झुठलाता है मुझको वो सरासर देखो

इससे साबित है कि नश्शा है मेरी आंखों में
मैंने खुद तोड़ दिया मीना ओ साग़र देखो

देख कर आज मेरी फिक्र की गहराई को
"पानी पानी हुआ जाता है समंदर देखो"

कौन जीतेगा अभी ये नहीं कह सकता 'नफीस'
अब मेरे सब्र की है ज़ुल्म से टक्कर देखो

____________________________________________________________________________

अजीत शर्मा 'आकाश'

हर कोई ख़ुद को समझता है सिकन्दर देखो ।
रोज़ उठता है नया एक बवण्डर देखो ।

लीक पर चलते ही जाने से नहीं कुछ होगा
लीक से हटके ज़रा तुम कभी चलकर देखो ।

कोई दुश्मन न कभी तुमको नज़र आयेगा
धुन्ध आँखों पे जो छायी है हटाकर देखो ।

सारी दुनिया तुम्हें पूजेगी यक़ीनन लेकिन
चाँद-सूरज तो ज़रा ख़ुद को बनाकर देखो ।

नष्ट गंगा को प्रदूषण न कभी कर पाये
देश की ये तो है अनमोल धरोहर देखो ।

एकजुट इनके मुख़ालिफ़ हमें होना होगा
ज़ुल्म मासूमों पे ढाते हैं सितमगर देखो ।

अपनी ये धरती ही जन्नत से हसीं हो जाए
प्रेम सद्भाव बढ़ाकर तो परस्पर देखो ।

शर्मगीं कितना है अन्दाज़ा इसी से कर लो
[[ पानी पानी हुआ जाता है समन्दर देखो ]]

________________________________________________________________________________

Majaz Sultanpuri

सतहे गिरदाब पे उभरा है शनावर देखो
इसकी मुट्ठी में दबे हैं कई गौहर देखो

हुस्ने यकता की हक़ीक़त का तख़य्युल करना
जब ज़माने में कहीं हुस्न का पैकर देखो

उसके रुख़सार पे ठहरे हुए क़तरों की क़सम
तुम तसव्वुर में मेरी तरह गुलेतर देखो

क्या पता उसके भी दिल में हो तुम्हारी चाहत
उससे रुदादे मोहब्बत कभी कह कर देखो

ख्वाहिशें ख़त्म नहीं होती ये सच है लेकिन
पांव फैलाने से पहले ज़रा चादर देखो

मानते हो कि हैं सब एक ही आदम से तो फिर
कोई छोटा न बड़ा सबको बराबर देखो

कल्कि अवतार उन्हें या की मोहम्मद कह लो
अब ना आएगा कोई और पयम्बर देखो

कूज़ए फिक्र की जब थाह न ले पाया तो
"पानी पानी हुआ जाता है समंदर देखो"

क्यों परेशान हो दौलत के लिए तुम भी "मजाज़"
खाली हाथों गया दुनिया से सिकंदर देखो

_____________________________________________________________________________

Ahmad Hasan

लोग कहते हैं क़ि आबाद हुआ घर देखो
आओ आओ मेरी बर्बादी का मंज़र देखो

इस में दम है ही नहीं प्यास बुझा पाने का
पानी पानी हुआ जाता है समुंदर देखो

माना ऋषियों का गुफाओ में कठिन है जीवन
हैं तो मोहताज मगर हैं वो क़लंदर देखो

शक्ल क्या क्या है बने नभ मैं बता पाओगे
देखो आकाश मैं नच्छत्र निरंतर देखो

योजनाओ में सभी माल हड़पने वाले
हैं लुटेरे इसी भारत के सिकंदर देखो

मक्र,छल ,ढोंग नहीं जिनमे तनिक भी लोगों
उनमें मासूम फरिश्ते हैं अधिकतर देखो

जिनके आमाल हैं संतों के अमल में डूबे
उनके क़दमों में झुके वक़्त के हैं सर देखो

खूब अहमद ने सजाए हैं तरो ताज़ा गुलाब
मेरे जुड़े में खिले हैं ये गुले तर देखो

_______________________________________________________________________________

Ravi Shukla

अपने जल्वों की नज़ाक़त को ठहर कर देखो
इश्क हो जाएगा खुद से सही है पर देखो

बन के खुशबू वो फ़िज़ाओं में बिखर जाता है
फूल के हाल पे चल जाते है नश्तर देखो

बहरे इमकां में जो ढूँढा तो नही थे उनमे
भारी भारी मेरे अहसास के पत्थर देखो

तुम मुझे प्यार से आवाज लगाया न करो
चीर जाये न ये आवाज का ख़ंज़र देखो

इश्क की बात करो तो नही सुनता कोई
अब ये नफ़रत ही न हो जाये मुक़द्दर देखो

ख्वाब जन्नत के दिखा कर जहाँ पे हैं लाये
कू ब कू सिर्फ है दोज़ख का ही मंज़र देखो

ये निदामत में बहे अश्क है शायद सैलाब
पानी पानी हुआ जाता है समंदर देखो

_______________________________________________________________________________

अरुण कुमार निगम

उस्तरा हाथ धरे हैं यहाँ बन्दर देखो
शह्र के बीच सरेआम ये मंजर देखो |

सब्जियाँ आज उबाली गईं हैं पानी में
आज तुम प्याज मसाले ना ही अरहर देखो |

अच्छे दिन आ गये आ ही गये आ जायेंगे
तब तलक यार उबलते हुये पत्थर देखो |

शर्म जब डूब मरी आँख के दो प्यालों में
"पानी पानी हुआ जाता है समन्दर देखो" |

नाम होता है हुआ जाता है हो जाएगा
कुछ इनामों को अरुण आज लुटा कर देखो |

_______________________________________________________________________________

Ganga Dhar Sharma 'Hindustan'

चाहे तो पीर -पयंबर-कि कलंदर देखो
मौत से छूट सके ना, कि सिकंदर देखो

ये कातिल नर्म बाहें हैं हमारे यार की
सिमट के इनमें खुद ही न जाए मर देखो.

दीखता है अँधेरा ही अँधेरा हर तरफ
जुल्फ-ए- यार लगता गई बिखर देखो

कोई ताकत यकीन से बढ़कर नहीं होती
है यकीं तो फिर तैरा कर पत्थर देखो
.
अजमेर तो है मरकज कढ़ी-कचौरी का
खाई नहीं कभी तो अब खा कर देखो
.
राम को राह नहीं देकर के क्या मिला
पानी पानी हुआ जाता है समंदर देखो
.
'हिन्दुस्तान' का लिक्खा तारीख ही समझो
लिख के नहीं मिटाता कभी अक्षर देखो

_____________________________________________________________________________

मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|

Views: 1319

Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीय राणा सर, आयोजन की सफलता हेतु हार्दिक बधाई एवं संकलन हेतु हार्दिक आभार. 

मेरी ग़ज़ल के मतले में निम्नानुसार संशोधन निवेदित है-

"मोह-माया के  रचित खेल से हटकर देखो

ज़िन्दगी जा रही किस ओर, बराबर देखो"

सादर 

आदरणीय राणा सर, इस मिसरे की त्रुटी पकड़ नहीं पा रहा हूँ. मार्गदर्शन निवेदित है-

आ रहा है या नहीं आपका नम्बर देखो

 

आदरणीय राणा साहब नाउम्मीद को न उम्मीद लिखना और 1221 के वज्न में बाँधना और मेहरबान को 1221 के वज्न में बाँधना क्या सही है?

आदरणीय राण भाई , ये दो मिसरे बह्र से ख़ारिज़ हैं . ऐसा लाल होने से पता चला , पर मै अपनी गलती समझ नही पा रहा हूँ  , कृपया गलतियाँ सुझाने की कृपा करें , ताकि मै सुधारने का प्रयास कर पाऊँ --  सादर निवेदन ।

खिड़कियों से भी जो झाँको, बचा के सर देखो

जन्म दिन तुम भी मनाओ, सजा के घर देखो

 

आदरणीय राणा साहिब , सफल आयोजन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।  मेरा एक मिसरा। .... अंजुमन में कहीं उठ जाये न महशर देखो। .... लाल रंग और मिसरा। ... गौर से आप कभी कूचे के पत्थर देखो। .. हरे रंग में है /   मेहरबानी करके क्या कमी है बताने की ज़हमत कीजिये। ... शुक्रिया

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
4 hours ago
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
4 hours ago
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"आ. भाई सालिक जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सतरंगी दोहेः विमर्श रत विद्वान हैं, खूंटों बँधे सियार । पाल रहे वो नक्सली, गाँव, शहर लाचार…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service