परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 66 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह उर्दू अदब के एक महत्वपूर्ण शायर जनाब राजेंद्र मनचंदा 'बानी' साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"तमाशा ख़त्म हुआ डूबने उभरने का "
1212 1122 1212 22*
मुफाइलुन फइलातुन मुफाइलुन फेलुन
*अंतिम रुक्न फेलुन को फइलुन अर्थात २२ को ११२ भी किया जा सकता है |
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 दिसंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 26 दिसंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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जो आशय निकल रहा है वो बयान किया है .... आगे हरि इच्छा
//गली-गली में मिलेंगे यहाँ पे दुस्साशन
मिले न कृष्ण सज़ा दे जो चीर हरने का //
भाई जी सबक सिखाने के ध्वन्यार्थ ही ऐसे है... इसलिए इसी सज़ा कहना अधिक बेहतर होगा
बदमाश को सबक सीखना और प्यार का सबक सिखाना .... सबक के मायने बदल गए इन दोनों बातों में
जनाब सचिन देव साहब ,....... कामयाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें
आ. तस्दीक अहमद खां जी , आपका हार्दिक धन्यवाद !
आदरणीय सचिन भाई , लाजवाब गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ आपको ।
आ. गिरिराज भंडारी जी , आपका हार्दिक धन्यवाद !
खुला हुआ है यहाँ आसमां बराबर से
किसी को हक़ नही पर और के कुतरने का-------वाह ! वाह !! वाह !!! ......क्या बात कही है ! बधाई आपको ! ग़ज़ल , शानदार पेश की है आपने आदरणीय सचिन जी ।
आदरणीया कान्ता जी सदा की तरह हौसला अफजाई के लिए हार्दिक आभार आपका !
किसी को हक़ नही पर और के कुतरने का -लाजवाब मिसरा .... अच्छी ग़ज़ल हेतु बधाई !!!
आपका हार्दिक आभार आ. अजीत शर्मा जी......... !
सचिन जी इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें / सादर बधाई के साथ
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