परम आत्मीय स्वजन
71वें तरही मुशायरे का संकलन हाज़िर कर रहा हूँ| मिसरों को दो रंगों में चिन्हित किया गया है, लाल अर्थात बहर से खारिज मिसरे और हरे अर्थात ऐसे मिसरे जिनमे कोई न कोई ऐब है|
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Nilesh Shevgaonkar
सारी राहें बंद हैं जिन के लिये
जी रहे हैं जानें किस दिन के लिये.
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क़तरा क़तरा खून में घुलता गया,
ज़ह’र था ग़म, दर्द-ए-बातिन के लिये,
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पार दरिया के उतरना था हमें,
कश्तियों को बेच कर तिनके लिये.
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दिल से पूछा जब सबब बर्बादी का,
दोस्तों के नाम गिन गिन के लिये.
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चल दिए दीवाना कह कर एक दिन,
हम थे दीवाने हुए जिन के लिये?
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वो समझता था कि उस पे मरते हैं,
मर मिटे हम अपने ज़ामिन के लिये.
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वो इधर से गर नहीं गुज़रे तो फिर,
“फूल जंगल में खिले किन के लिये”
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ग़ैर के यूँ साथ फिरना देर तक,
क्या मुनासिब है ये कमसिन के लिये.
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तीरगी के खैरख्वाह हैं लोग सब,
“नूर”!! बेजा तू जला इन के लिये.
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MOHD. RIZWAN (रिज़वान खैराबादी)
वक्फ़ कर दी हमने मोहसिन के लिये
ज़िन्दगी पाई जो दो दिन के लिये
फूल भेजे थे कभी जिनके लिये
वो हुए मेरे न इक दिन के लिये
ग़म की दौलत साथ देगी उम्र भर
हर खुशी होती है कुछ दिन के लिये
सुब्ह होते ही जगा दे नींद से
वो अजां देते है मोमिन के लिये
तुम भी देखो मांग कर देगा ज़रूर
क्या ख़ुदा है सिर्फ मोमिन के लिये
खुशबुओं में आज डूबी है फ़ज़ा
"फूल जंगल में खिले किन के लिये"
घूमते है दर बदर 'रिजवान' जो
कुछ करो एहसान तुम इन के लिये
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Samar kabeer
ज़िन्दगी गुलज़ार थी जिन के लिये
आज हैं मुहताज इक पिन के लिये
है तिरी जन्नत बता किन के लिये
ये निदा आई कि मोमिन के लिये
काम जब तेरे न कोई आएगा
कुछ बचा ले यार उस दिन के लिये
मज़हका देखो उड़ाते हैं वही
हो गये बर्बाद हम जिन के लिये
ग़म की काली रात आजाएगी फिर
चाँदनी है चार ही दिन के लिये
धोका देने में बड़े उस्ताद हैं
काम ये मुश्किल नहीं इन के लिये
ज़िन्दगी ने तोड़ दीं सारी हदें
क्या सज़ा है इस अभागिन के लिये
फूल, ख़ुशबू , ये बहारें, ये चमन
वक़्फ़ हैं इक शौख़ कमसिन के लिये
वक़्त आएगा तो कर देंगे वहीं
जान भी क़ुर्बान मुहसिन के लिये
तितलियों भँवरों से जाकर पूछ लो
"फूल जंगल में खिले किन के लिये"
एक भिश्ती को हुमायूँ ने "समर"
दे दिया था तख़्त इक दिन के लिये
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दिनेश कुमार
जिस्म के बेचैन साकिन के लिए
ये ग़ज़ल है मेरे बातिन के लिए
उनके होंठों पर भी मेरा नाम हो
जी रहा हूँ मैं बस उस दिन के लिए
अहमियत समझी न मैंने वक़्त की
मुझसे बदले वक़्त ने गिन के लिए
सहमी सहमी दिख रही हैं बिजलियाँ
अंदलीब आई है फिर तिनके लिए
सरहदों के मसअले सुलझे कहाँ
जंग जारी है सियाचिन के लिए
मूल से प्यारा मुझे भी सूद है
जान दे सकता हूँ नातिन के लिए
हैं अज़ल से दर ब दर, शम्सो-क़मर
कूचा-ए-राहत कहाँ इन के लिए
वे ही मंज़र क्यों नज़र से दूर हैं
रौशनी आँखों में है जिन के लिए
आओ चल कर देख लेते हैं 'दिनेश'
'फूल जंगल में खिले किन के लिए'
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shree suneel
उड़ रहीं हैं तितलियाँ किनके लिये!
वज्द में हूँ मैं भी क्या जिनके लिये!
काम आई है बहुत रख्खे थे जो
यादबूद ए यार इस दिन के लिये.
बाद त़ूफ़ाँ के जो देखा,कम नहीं
कोई ताइर जा रहा तिनके लिये.
दफ़्न रेतों में हैं दो रूह़ें तो फिर
फूल जंगल में खिले किन के लिये!
तर्के निस्बत यूँ कि ह़र्फ़े ख़त को भी
जब मिले,वापिस वो गिन गिन के लिये.
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Mohd Nayab
ईद की खुशियां हैं मोमिन के लिए
मुंतजिर रहते हैं इस दिन के लिए
आशियाने की रखी बुनियादी यूँ
उसने मेरे घर से दो तिनकेे लिए
जो परिंदे आजकल गुमनाम हैं
उनको पालें आप कुछ दिन के लिए
हम से निस्बत भी वो अब रखते नहीं
जान देते थे कभी जिनके लिए
बुग्ज़ो कीना और हसद-ओ-इंतकाम
ये कहाँ होते हैं मोमिन के लिए
वह हमें अपना समझते क्यों नहीं
भूखे प्यासे हम रहे जिनके लिए
तितलियां मंडरा रही हैं शहर में
फूल जंगल में खिले किनके लिए
इश्क कहते हैं जिसे 'नायाब' सुन
ये खुशी होती हैं इक सिन के लिए
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ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi)
जान दे देता है मोहसिन के लिए
काम यह आसां है मोमिन के लिए
इस हकीकत को कोई समझा नहीं
"फूल जंगल में खिले किनके लिए"
दिल में बैठे हैं किसी के और वो
हम तड़पते रह गए जिनके लिए
जा रही हैं बुलबुलें जाने कहां
अपनी मिनक़ारों में कुछ तिनके लिए
तुमको सजना और संवरना है अभी
सादगी होती है इक सिन के लिए
आस्तीं में जिस को पाला मुद्दतों
उसने बदले हमसे गिन गिन के लिए
मेहरबां क्यों आज है उनकी नज़र
ग़म उठाए थे कभी जिनके लिए
काटते हो क्यों शजर गुलशन के तुम
क्या लगाए थे इसी दिन के लिए
अपने "गुलशन" की खिली कलियों को हम
वक़्फ़ कर जाएंगे कमसिन के लिए
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HAFIZ MASOOD MAHMUDABADI
वो भी काम आए न इक दिन के लिए
वक़्फ़ कर दी जिंदगी जिनके लिए
जा के ठहरी हैं निगाहें बर्क पर
हाथ में जब मैंने कुछ तिनके के लिए
मुल्क के गद्दार से हो रस्मो राह
ये कहां ज़ेबा है मोमिन के लिए
वक़्ते रुखसत भी न आए मेरे पास
उम्र भर कोशां रहे जिनके लिए
बाग़ में खिलते मेरे तो बात थी
फूल जंगल में खिले किनके लिए
मिल गई रुसवाइयां उससे हमें
क्या उसे चाहा था इस दिन के लिए
मुस्तकिल मसऊद जब रहना नहीं
फिर बनाते हो मकां किन के लिए
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Manan Kumar singh
खेल चलता है गहन किन के लिये
नापते चलते गगन दिन के लिये।1
माँगते फिरते अमन तुम रात दिन
मौन हैं वो मर रहे जिन के लिये।2
आँधियाँ हरदम उड़ातीं नीड़ को
जा रहे क्यूँ भागते छिन के लिये।3
बह गये आँसू बहुत अबतक यहाँ
हँस रहे तुम रो चुके जिन के लिये।4
मन मसोसा मत करो सोचो जरा
फूल जंगल में खिले किन के लिये।5
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Saurabh Pandey
आँकड़े जो हैं बुलेटिन के लिए
वे नहीं दरकार केबिन के लिए
ये मसल किसने कही किनके लिये -
मित्र हैं उम्मीद शुभ-दिन के लिये ?
जान कर फितरत मेरी, क्या पूछना -
"फूल जंगल में खिले किन के लिये" ?
चाहते हैं आप भी मशहूर हों
चीखिये हिन्दू या मोमिन के लिये
अब उसे काबिल कहें या बेवकूफ़
चल पड़ा वो तैरने तिनके लिये
व्यावहारिक है वही इस दौर में -
खुद रखे जो दूध धामिन के लिये
जो बजाता फिर रहा था ’तुरतुरी’
अड़ गया है ’तक-धिनाधिन’ के लिये
खूबसूरत दिख रही तारों सजी
रात ने आँसू मेरे गिन के लिये
आइये जुमला नया हो जाय, फिर
आपके इन भक्त-भक्तिन के लिये
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सतविन्द्र कुमार
हम मरे जाते यहाँ जिन के लिए
भूल हमको वो गए किन के लिए।।
इश्क में बेज़ार हम होते गए
इम्तिहाँ उसने सभी गिन के लिए।।
आब देखो हर जगह है कम हुआ
प्यास है सौगात हर दिन के लिए।।
बाग़ से कलियाँ सभी गुम हो गई
"फूल जंगल में खिले किन के लिए।।
गैर को ही लूटना आदत रही
सोचता है वो भला किन के लिए।।
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Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"
हम न थे तैयार दुर्दिन के लिये।
मृत्यु वाली क्रूर डाइन के लिये।।
पूछती अम्माँ सभी से बस यही।
छोड़ कर "गुड्डी" गयी किन के लिये।।
मृत्यु है शाश्वत नियम लेकिन सुनो।
कौन सी दें सान्त्वना इनके लिये।।
रो रहे बच्चे तुम्हारे देख लो।
माँगती थी तुम ख़ुशी जिनके लिये।।
साज व शृंगार करके तुम गयी।
था जरूरी ये सुहागिन के लिये।।
देखते "जीजा" के नैना शून्य में।
फूल जंगल में खिले किन के लिये।।
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बशर भारतीय
मर रहे हो आज जिस दिन के लिये
नेकियाँ भी रखना उस सिन के लिये
फ़िक्र को वालिद की क्या समझेंगे वो
चाहतें भी हैं सितम जिनके लिये
कैसे साँपों को भनक लग जाती है
पंछी जब भी उड़ते हैं तिनके लिये
हर गली में रिंद मिल जाते हैं फिर
ये कहो मयबंदी है किनके लिये
एक बोतल में उतर जाते हैं ये
खेल है जम्हूरियत इनके लिये
दर्द दिल में छुप के रहता ही नहीं
शक्ल आईना है बातिन के लिये
क्या पता तू ही बता दे ऐ ख़ुदा
'फूल जंगल में खिले किनके लिये'
अब कहाँ इंसाँ 'बशर' इस दुनिया में
लाज़िमी है ख़ौफ़ कमसिन के लिये
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laxman dhami
मुश्किलें हर ओर मोमिन के लिए
रास्ते आसान खाइन के लिए
मौज है घुसपैठियों की देश में
और दुर्दिन खूब साकिन के लिए
भा गई भँवरों को मंडी जिस्म की
"फूल जंगल में खिला किन के लिए"
मूँद कर आखें वो माँ की सिम्त से
नित रहा बेचैन कमसिन के लिए
बन गए बरबादियों का वो सबब
की दुआएँ उम्र भर जिनके लिए
मिल गया वनवास यारो छाँव को
है तपन सौगात हर दिन के लिए
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Tasdiq Ahmed Khan
मुन्तज़िर था हर कोई जिन के लिए ।
हाय वह ठहरे न इक छिन के लिए ।
इक सराए है जहाँ इन के लिए ।
आख़िरत मंज़िल है मोमिन के लिए ।
दिल भला कैसे किसी को सौंप दें
सिर्फ वह धड़के है हमसिन के लिए ।
आज़मा लेना कभी भी दिल है क्या
जान भी दे देंगे मोतिन के लिए ।
फ़ख़्र करना है तो कर किरदार पर
हुस्न तो आता है दो दिन के लिए ।
आप ही बतलाइए हंस कर ज़रा
फूल जंगल में खिले किन के लिए ।
देखिये तो महरबानी बर्क़ की
हम हैं मुद्दत से खड़े तिनके लिए ।
साहिबे ईमान खाए बोटियाँ
रोटियां हैं सिर्फ़ खाइन के लिए ।
घर से लौटा दे ज़रूरत मंद को
यह कहाँ मुमकिन है मुहसिन के लिए ।
बाप है रोगी वसीयत मेज़ पर
मुंतज़िर बेटे हैं साइन के लिए ।
ज़ालिमों के संग है तस्दीक़ जो
क्या सज़ा है उस मुआविन के लिए ।
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Ahmad Hasan
आस्तीं उसकी है नागिन के लिए ।
टोकरी मेरी है सांपिन के लिए ।
लोग जो मज़लूम के क़ातिल रहे
उनसे बदले मैं ने गिन गिन के लिए ।
कुछ भी ना मुमकिन नहीं मेरे तईं
मेरी हर कोशिश है मुमकिन के लिए ।
आशियाने को नहीं मिलती है शाख़
फिर रहे हैं चोंच में तिनके लिए ।
हर खंडर जन्नत है दहशत गर्द की
मस्जिदें हैं मर्दे मोमिन के लिए ।
सारे दीवानों को है काँटों से प्यार
फूल जंगल में खिले किन के लिए ।
खूब दौड़े फिर भी वह पीछे रहे
लाए थे उपहार हम जिन के लिए ।
देर तक रहती है गुंचों की बहार
फिर फ़क़त खिलते हैं दो दिन के लिए ।
साथ फेरों में बंधे मासूम वह
हम बचाने को फिरे जिन के लिए ।
वह भी थे फ़हरिस्त में अहमद मगर
नाम नाज़िम ने नहीं इन के लिए।
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जयनित कुमार मेहता
ज़िन्दगी, बस चार ही दिन के लिए
हाय-तौबा फिर भला किन के लिए?
घर मेरे,मुझको भी अपना-सा समझ
कुछ परिंदे आ गए तिनके लिए
होंगे खुश कुर्सी पे बैठे देवता
भेंट तो ले आइये इनके लिए
छोड़ कर वो ही गए वृद्धाश्रम
उम्र सारी काट दी जिनके लिए
'उनको' तो अरबों-करोड़ों माफ़ है
'ये' मरेंगे थोड़े-से ऋण के लिए
खुशबुओं का वां भला क्या काम है
"फूल जंगल में खिले किनके लिए"
कुछ गुनाह अपनी बही में भी थे "जय"
यूँ हिसाब 'उसने' न गिन-गिन के लिए
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Arvind Kumar
सब किया जो तय था मोमिन के लिए,
याँ तलक के, नाम भी गिन के लिए।
थक गया हूँ भाग कर ऐ ज़िन्दगी,
चाहिए बस रात, इक दिन के लिए।
जोड़ता हूँ रोज घर में कुछ न कुछ,
पर है ये असबाब, पल-छिन के लिए।
सामने नज़रों के घर जब से गिरा,
हूँ खड़ा तब से मैं कुछ तिनके लिए।
उनके हाथों में ज़हर की प्यालियाँ,
हाय, माँगी ज़िन्दगी जिनके लिए।
जब कि तय है, कल शहर बन जाएगा,
फूल जंगल में खिले किनके लिए।
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Ravi Shukla
चोंच में दो चार क्या तिनके लिए
टूट कर बिजली गिरी इनके लिए
जो मिले तो शुक्र उसका कर सदा
सब्र कर ले ग़ैर मुमकिन के लिए
रात दिन मांगी ख़ुदा से ये दुआ
दूर उनसे हों न पल छिन के लिए
हो अता सबको बराहिम सा अमल
कुछ फ़रिश्ते थे खड़े जिन के लिए
दे दिया उसकी जवानी को शिताब
हो गए ग़म एक कम सिन के लिए
आपसे कुछ भी न कहते बन रहा
सौ बहाने एक लेकिन के लिए
क्या कयामत का कोई दिन और है
मुन्तजिर है लोग जिस दिन के लिए
हाल क्या है ख़ुल्द का बाद अज़ सफ़ी
हैं सरो सामान अब किन के लिए ?
हो तुम्हें अफ़सोस शायद नस्ल पर
ख़ुल्द को छोड़ा था क्या इन के लिए
काग़ज़ी है गुल चलन में आजकल
फूल जंगल में खिले किन के लिए
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गिरिराज भंडारी
रात रोशन ख़ुद ही है जिन के लिये
वो सहर चाहें भी तो किन के लिये
जो फ़क़ीराना तबीयत पाये हैं
वो जियेंगे सिर्फ बातिन के लिये
तोप-तलवारों की ख़ातिर सब मरे
कोई मरता है कहाँ पिन के लिये
रोशनी से डर , किये शब की दुआ
रात वो ही रोये हैं दिन के लिये
वक़्त ने जो भी दिया रो-रो दिया
और जब हमसे लिये, गिन के लिये
कश्तियाँ डरने लगीं तूफ़ाँ से जब
हम सहारे के लिये तिनके लिये
वो खिले सबके लिये, पूछो नहीं
"फूल जंगल में खिले किन के लिये"
जब मिला धोखा तो ये दिल ने कहा
ये वही हैं , तू मरा जिनके लिये
पाप तो दिन-रात करते आये, पर
हम गिनाये पाप बस दिन के लिये
कल झुका जो सर ख़ुदा के द्वार पर
आज झुकता है वो मोहसिन के लिये
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मोहन बेगोवाल
जिंदगी कब है रही इन के लिए
रात जिन को थी मिली दिन के लिए
टूट कर अब तो बिखर जायेगा वो
तन जो जंगल को है चिंतन के लिए
बात बातों से बनाते हो अभी
देखते रहती है ये पल छिन के लिए
वो दिखाते और देते भी नहीं
“फूल जंगल में खिले किन के लिए”
माँग कोई हो सदा अब उनसे क्यूँ
क्यूँ नहीं हक देते कमसिन के लिए
कौन आएगा सहारा तेरा बन
रख उमीदें साथ तुम तिनके लिए
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Anuj
आये थे वो बाद में तिनके लिए
डूबे थे दरिया में हम जिनके लिए
देखने थे ये भी दिन जब एक दिन
दिन गिने जाते थे किस दिन के लिए
वक्त से खेला किये थे हम कभी
वक्त ने भी बदले फिर गिनके लिए
कर गए बरबाद मेरी ज़िन्दगी
ज़िन्दगी बरबाद की जिनके लिए
कुछ भी बेमकसद नहीं तो क्यों सवाल
फूल जंगल में खिले किन के लिए
तितलियाँ हैं, फूल हैं, भौंरे भी हैं
फूल जंगल में खिले जिनके लिए
रोज मसला, रौंदा जाता है उन्हें
फूल खिलते हैं यहाँ किन के लिए
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Sheikh Shahzad Usmani
दुनिया भूला तीस रोज़ों के लिये,
अल्ला ही अल्ला है मोमिन के लिये।
काश दौलत मुफ़लिसों में बंटती,
फूल जंगल में खिले किनके लिये।
बेटी को ससुराल करते ही विदा,
नोट गिनता बाप दुर्दिन के लिये।
पालकर करता कभी तरु तू बड़ा,
पेड़ गिनता पास के किनके लिये।
ग़ैर-मुमकिन को करे मुमकिन मुआ
फेसबुक है इश्क़ हर सिन के लिये।
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डॉ पवन मिश्र
मुक़्तदिर वो थे बने जिन के लिये।
आज कहते कुछ नहीं इन के लिये।।
दे गए वो अश्क़ खुशियों की जगह।
आँख थी ये मुंतज़िर जिन के लिये।।
जानते थे जी नहीं पाओगे तुम।
लौट आये एक लेकिन के लिये।।
कौन लेकर आ गया रानाइयां।
फूल जंगल में खिले किन के लिये।।
छोड़ कर तक़दीर का दामन ज़रा।
हौसला कर गैरमुम्किन के लिये।।
आँधियों का काम था वो कर गयीं।
जूझना है फिर मुझे तिनके लिये।।
खौफ़ आँखों में कयामत का नहीं।
मुन्कसिर हाज़िर है उस दिन के लिये।।
मुत्मइन वो ही नहीं जब ऐ पवन।
मुंतशिर हम क्यों रहें इन के लिये।।
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munish tanha
ली फकीरी हम ने बातिन के लिए
छोड़ तू अब फ़िक्र साकिन के लिए
.
बन गया रिश्ता उन्हीं से देख लो
था जिन्हें इंकार जामिन के लिए
.
जुल्म बेटों ने किया साहिब बड़ा
क्यूँ रहा जिंदा मैं इस दिन के लिए
.
कर यकीं दिल मेरे रब की बात पर
है करे तू पाप किन किन के लिए
.
आई सावन में बेटी ससुराल से
संग झूली माँ भी नातिन के लिए
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देव नेता सब हुए नकली यहाँ
फूल जंगल में खिले किन के लिए
.
नाचने दुनिया लगी धुन पे देखो
थी बजाई बीन नागिन के लिए
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NAFEES SITAPURI
जान देदी डूब कर जिनके लिए
बाद में वो आए कुछ तिनके लिए
प्यार करना सीख ले तेरा भी दिल
छोड़ मेरे पास कुछ दिन के लिए
मेरे दिल से सीख ले दिल तोड़ना
तजरुबा लाजिम है कमसिन के लिए
जो अयाँ है वो कहाँ काम आएगा
फिक्र तो करनी है बातिन के लिए
इक से बढ़कर एक रुखसत हो गए
हम अगर रोएँ तो किन-किन के लिए
जिसपे आते थे नज़र काफ़िर कभी
आज वो सूली है मोमिन के लिए
इनकी किस्मत में न सेहरा है न कब्र
फूल जंगल में खिले किनके लिए
आपको धोखे से उसने डस लिया
अब बहुत ख़तरा है नागिन के लिए
कोहसारों का खुदा 'शैलेश' है
ये लक़ब है मेरे मोहसिन के लिए
सब खिलौने लाए, लाया दिल 'नफीस'
एक नया तोहफा है इस सिन के लिए
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Sushil Sarna
जी रहे थे आज तक जिन के लिए
छोड़ वो हम को गए किन के लिए
गीत जिसके गा रही तन्हाईयाँ
वो ख़फ़ा हमसे हैं कुछ दिन के लिए
कब तलक रूठी रहेंगी चाहतें
"फूल जंगल में खिले किन के लिये"
बात दिल की हम न उनसे कह सके
रात भर जगते रहे जिन के लिए
बुझ गए हैं चाँद सब अब रात के
धड़कनें बेताब हैं किन के लिए
आ गए लेने हमें रुखसत करो
अब रुकें हम राह में किन के लिए
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kanta roy
जिंदगी इक ख्वाब था जिनके लिए
रस्म है अब जिंदगी इनके लिए
आदमी में आदमीयत खो गई
पी गये है शर्म वो किनके लिये
नफ़रतों में डूब इंसा मिट गये
ये दरो- दीवार अब किनके लिये
जिंदगी से इस कदर डरने लगा
हाँ ,पता था मौत है इनके लिए
दो कदम भी साथ वे ना चल सके
साथ के वादे किये किनके लिये
पीठ पर खंजर उतारे यार ने
ये नया अंदाज़ है इनके लिये
बेल बूटे ये गुलाबी डालियाँ
फूल जंगल में खिले किनके लिये
याद आते हैं सजनवा दिन ढले
रस्म है अब तो यही इनके लिए
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मिथिलेश वामनकर
साथ जुगनू सिर्फ पलछिन के लिए
रात क्यों बर्बाद की दिन के लिए
कलयुगी रावण सफल अब मान लो
क्या हो सीता जो खड़ी तिनके लिए ?
हाशिये पर है गरीबी, भुखमरी
लड़ रहे हैं लोग लेनिन के लिए
लॉग आउट जो मरासिम से सदा
वेब पर आतुर वो लॉग-इन के लिए
पाहुना परदेश का निष्ठुर बड़ा
हर घड़ी मुश्किल वियोगिन के लिए
लालची मुंह ठूसकर भर जाए बस
जिंदगी इतनी ही दुलहिन के लिए
वाम चलते देख कर कुछ लोगों को
चल पड़ा इक पंथ दक्खिन के लिए
बाँसुरी थामे फिरे वह बावरी
सांवरा विश्वास जोगिन के लिए
मैं प्रतीक्षित हूँ नगर में फिर भला
“फूल जंगल में खिले किन के लिए”
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Amit Kumar "Amit"
कोसता हूँ मैं तो उस दिन के लिऐ I
क्यों पिलाया दूध नागिन के लिऐ I I
.
खुश बहुत थी वो मिली इस जीत पर I
बदले दुश्वन से जो गिन-गिन के लिऐ I I
.
कट गए पेड़ अब किधर बने घोंसले I
सोचता है एक पंछी तिनके लिऐ I I
.
उनसे मिलकर उनमे ही खो जाएंगे I
चल पड़ी फिर से कलम जिन के लिऐ I I
.
अब अमित जान कर ये करोगे भी क्या I
फूल जंगल मैं खिले किस के लिऐ I I
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Kalipad Prasad Mandal
सारी सारी रात गत जिन के लिए
पूछते वे जागरण किन के लिए |1|
चाँद तारों तो झुले हैं रात में
एक सूरज को रखा दिन के लिए |२|
आसान नहीं भूलना यूँ भूत को
आज तक तो मोह है इन के लिए |३|
रात भर आँसू कभी थमती नहीं
अश्रु जल यूँ लुडकते किन के लिए|४ |
वो सुखी हैं या दुखी किन को पता
फुल जंगल में खिले किन के लिए |५|
जानते थे हम जुदा होंगे कभी
क्या जतन करते कभी इन के लिए |६|
अब इन्हें संसार में आना नहीं
कौन रोये इस जहाँ इन के लिए |७|
वो कभी पीड़ा समझना चाहती
क्लेश हम पीते गए जिनके लिए |८|
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अजीत शर्मा 'आकाश'
चीज़ एहसां कुछ नहीं इनके लिये ।
वक़्फ़ कर दी ज़िन्दगी किनके लिये ।
हाथ से मौक़ा नहीं जाने दिया
दोस्तों ने बदले गिन गिन के लिये ।
पेश आते हैं तो दुश्मन की तरह
जां लुटा बैठे थे हम जिनके लिये ।
धन-पिशाचों के लिये सब माफ़ है
आयी आज़ादी भी तो किनके लिये ।
क़र्ज़ भरना है हमें ता-ज़िन्दगी
जो नशेमन के लिये तिनके लिये ।
सामने फिर से अँधेरी रात है
चाँदनी थी चार ही दिन के लिये ।
उम्र भर खटता रहा है आदमी
चैन के दो चार पल-छिन के लिये ।
सोचकर हैरान हैं हम भी बहुत
[[फूल जंगल में खिले किन के लिये]]
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harkirat heer
क्यूँ मिला न चैन दो दिन के लिए
अब नहीं चाहत मसाकिन के लिए
उम्र भर का दे गये ग़म वो हमें
प्यार के नगमे लिखे जिन के लिए
मुस्कुराने ताड़ है देखो लगा
जब से आई है बया तिनके लिए
छोड़ गैरों संग वो हैं चल दिये
माँगते हम थे दुआ किन के लिये ?
क्या खता थी ? क्यूँ ख़ुदाया ये बता ?
जो यूँ बदले मुझसे गिन- गिन के लिए
कौन वीराने में आया बन बहार
फूल जंगल में खिले किन के लिये
ज़ख्म इक दिन भर ही जायेंगे तिरे
हीर' ग़म रखना न उस दिन के लिए
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vandana
नव सुहागिन या वियोगिन के लिए
तारे टाँके रात ने किन के लिए
नीतियों के संग होंगी रीतियाँ
मैं चली हूँ आस के तिनके लिए
बात आसां थी समझ आई मगर
हम अड़े हैं किन्तु-लेकिन के लिए
माँ दुआएँ बाँधती ताबीज में
कीलती है काल निसदिन के लिए
साधनारत हैं स्वयं ये और क्या
“फूल जंगल में खिले किन के लिए”
बाग़ चौपालों बिना बैठें कहाँ
हो कहाँ संवाद पलछिन के लिए
विष पियाला या पिटारी साँप की
क्या परीक्षा शेष भक्तिन के लिए
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डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
मैं हुआ बर्बाद नागिन के लिए
उसने भी प्रतिशोध गिन-गिन के लिए
था नही मैं जानता तुझको सुमन
भटकता था एक पुरइन के लिए
बरसना अब बंद आँखों ने किया
है अभी जल शेष दुर्दिन के लिए
वह दुबारा लौट कर आये नहीं
थे बिछाए पांवड़े जिनके लिए
पूंछ लूं मै इन हवाओं से ज़रा
फूल जंगल में खिले किन के लिए
किन्नरी से व्याह बेटे ने किया
मन तरसता आज समधिन के लिए
क्या करूं मैं प्यार की बाते अभी
गीत है दर पेश कमसिन के लिए
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मिसरों को चिन्हित करने में कोई गलती हुई हो अथवा किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो तो अविलम्ब सूचित करें|
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आदरणीय राणा प्रताप भाई , तमाम व्यस्तताओं के बीच आपने संकलन प्रस्तुत किया ,इसके लिये आपका बहुत आभार । सफल मुशाइरे के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय , मेरी ग़ज़ल मे एक मिसरा हरा हुआ है , मै कारण अनही समझ पा रहा हूँ , बतलाने की कृपा परें , ताकि सुधार सकूँ , मिसरा नीचे दे रहा हूँ -- तोप-तलवारों की ख़ातिर सब मरे -- सादर निवेदन
आ. मिथिलेश भाई , आपने सही कहा , यही गलती है । मुझसे भाषागत गलती भी हो जाती है , इसी लिए पूछ भी लिया हूँ ।
अनुमोदन हेतु आभार
इस बार के आयोजन में वाकई बहुत सधी हुई ग़ज़लें प्रस्तुत हुई हैं.
बहुत खूब !
आदरणीय राणा सर जी, संकलन हेतु हार्दिक आभार
आदरणीय राणा प्रताप भाई , मेरी गज़ल के इस् शेर को--
तोप-तलवारों की ख़ातिर सब मरे
कोई मरता है कहाँ पिन के लिये -- निम्ना नुसार संशोधित करने की कृपा करे -- ( अगर गलती ताकाबुले रदीक की है तो )
तोप तलवारों की खातिर तू मरा
तू नहीं मरता कभी पिन के लिये ---- सादर निवेदित ।
मोहतरम जनाब राणा साहिब ,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा अंक 71 की कामयाब निज़ामत के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
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