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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-71

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 71 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह क्लासिकल शायरी के महत्वपूर्ण शायर जनाब अमीर मीनाई साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"फूल जंगल में खिले किन के लिये"

2122   2122      212

फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन

(बह्र: रमल मुसद्दस् महजूफ  )
रदीफ़ :- के लिये
काफिया :- इन (किन, दिन, इन आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 मई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 मई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 मई दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया आ० वन्दना जी सदर
बढ़िया ग़ज़ल हुई है आदरणीय रिज़वान जी. हार्दिक बधाई आपको इस प्रस्तुति पर. सादर
हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया आ० सुनील जी सदर

जनाब रिज़वान  साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है ,  शेर दर शेर मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं,           

 

 

हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया जनाब तसदीक़ जी

अच्छी ग़ज़ल भाई रिज़वान जी.... वाह वाह !!!

जनाब अजीत साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये बहुत बहुत शुक्रिया ।


वक्फ़ कर दी हमने मोहसिन के लिये
ज़िन्दगी पाई जो दो दिन के लिये
ग़म की दौलत साथ देगी उम्र भर
हर खुशी होती है कुछ दिन के लिये
इस बेहतरीन गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आ0 रिजवान भाई...

शुक्रिया जनाब लक्ष्मन साहब
ज़िन्दगी गुलज़ार थी जिन के लिये
आज हैं मुहताज इक पिन के लिये

है तिरी जन्नत बता किन के लिये
ये निदा आई कि मोमिन के लिये

काम जब तेरे न कोई आएगा
कुछ बचा ले यार उस दिन के लिये

मज़हका देखो उड़ाते हैं वही
हो गये बर्बाद हम जिन के लिये

ग़म की काली रात आजाएगी फिर
चाँदनी है चार ही दिन के लिये

धोका देने में बड़े उस्ताद हैं
काम ये मुश्किल नहीं इन के लिये

ज़िन्दगी ने तोड़ दीं सारी हदें
क्या सज़ा है इस अभागिन के लिये

फूल, ख़ुशबू , ये बहारें, ये चमन
वक़्फ़ हैं इक शौख़ कमसिन के लिये

वक़्त आएगा तो कर देंगे वहीं
जान भी क़ुर्बान मुहसिन के लिये

तितलियों भँवरों से जाकर पूछ लो
"फूल जंगल में खिले किन के लिये"

एक भिश्ती को हुमायूँ ने "समर"
दे दिया था तख़्त इक दिन के लिये

मौलिक/अप्रकाशित
है तिरी जन्नत बता किन के लिये
ये निदा आई कि मोमिन के लिये.....वाह्ह्ह्ह्ब माशाअल्लाह

बहुत खुबसूरत ग़ज़ल हुई है जनाब समर साहब मुबारकबाद।
जनाब रिज़वान साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये बहुत बहुत शुक्रिया ।

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