For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-73

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 73 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब अहसान बिन 'दानिश'  साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"हमने देखा नहीं ज़िन्दगी की तरफ"

फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन

212   212    212    212

(बह्र:  मुतदारिक मुसम्‍मन सालिम )
रदीफ़ :- की तरफ
काफिया :- ई (ज़िन्दगी, आदमी, रोशनी, बेबसी आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 जुलाई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 जुलाई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 जुलाई दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 16139

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

’अपनी बगिया लगे बेल फूले-फले’--
सोच देखे पिता लाडली की तरफ़.............वाह ! वाह !

आर्द्र वातावरण व्याप जाये पुनः,
वृत्ति एकाग्र है आरती की तरफ़..............वाह !

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, बहुत खूबसूरत गजल कही है. गजल में हिंदी के शब्दों का प्रयोग मुग्ध कर रहा है. सादर.

आदरणीय अशोक भाई जी, आपकी प्रशंसा से मन उत्साहित है. हार्दिक धन्यवाद.. 

वैसे मेरी ग़ज़ल का जो ये वर्सन जो पोस्ट हुआ है, वह गलत है. सही वर्सन मेरे पास ही रह गया है. वैसे सारे शेर वही हैं, बस एक शेर का सानी अलग है. लेकिन अब जो हो गया सो हो गया. संकलन में हुआ तो सुधार करवा लूँगा. वर्ना यही सही. 

सादर

 

Aadarnie sorabh sir ji aapki gazal padh kr maza aa gaya bahut khoob gazal likhi aapne .Bahut Bahut badhaiyan.

वाह ! आप तो रह-रह कर आप झलक दिखा जाते हैं, भाई अमित जी. आपकी उपस्थिति से प्रसन्नता हुई. शुभेच्छाएँ. 

क़ौम का था वो बन्दा तभी मौत पर 
त्यौरियाँ चढ़ रहीं सर्जरी की तरफ़ 

क्या पता उसने क्या आईने से सुना 
चल दिया एक दिन मुम्बई की तरफ़ 

आं सौरभ सर वैसे तो पूरी ग़ज़ल बाकमाल है, खासतौर से ये अशआर बहुत पसंद आये, दाद ओ मुबारक़बाद हाज़िर है

भाई शिज्जू जी आपको जो ’सर्जरी’ वाला शे’र पसन्द आया है, उसके होने का कारण मेरे शहर के एक नर्सिंग होम में हुई एक घटना थी. एक विशेष जाति-बिरादरी के लोगों ने एक रोगी की मौत पर खूब तोड़-फोड़ मचायी. बाद में ये भी पता चला कि उस बवाल में कई ऐसे लोग शामिल थे, जो उस परिवार को जानते तक नहीं थे. आजकल ऐसा हर दूसरे-तीसरे शहर में होने लगा है. स्थिति विचित्र हो गयी है. 

आपसे मिले उत्साहवर्द्धन से ताकत मिलती है. शुभ-शुभ

सर्जरी वाला शे'र अपने अंदर कई-कई अर्थ लिए हुए है, सर्जरी को प्रतीकात्मक रूप में लिया जाये तो कई दूसरे अर्थ भी सामने आएँगे :-)

वो तो मालूम है शिज्जू भाई. तभी तो उक्त घटना की ओट से मैंने इशारा किया है !

मैंने उक्त शेर की अभिधात्मकता वस्तुस्थिति को स्पष्ट करने के लिए प्रस्तुत की है. क्योंकि आजकल कुछ लोग शेरों को फेस वैल्यू से लेते और तदनुरूप समझते हैं. इसके बावज़ूद जानकार लोग चुप्पी लगाये रहते हैं.

शेर की तह तक पहुँचने और अन्य आयामों की ओर इशारा परख पाने के लिए हार्दिक धन्यवाद. 

आज कोई तो हो निर्भया के लिए.. 
कृष्ण जैसे रहे द्रौपदी की तरफ़ ----वाह्ह्ह  मेरे मन की बात है इस शेर में बहुत बढ़िया 

क्या पता उसने क्या आईने से सुना 
चल दिया एक दिन मुम्बई की तरफ़ ---वाह्ह्ह  ये  आईना ही तो बिगाड़ता है :-)))) बहुत खूब 

वैसे सभी शेर उम्दा हुए बहुत बहुत बधाई  आपको आद० सौरभ जी 

आदरणीया राजेश कुमारी जी, कोई ’निर्भया’ पुकारता है, कोई ’दामिनी’ का नाम देता है. लेकिन उस अभागन का हश्र एक ही है. काश आज मित्रों में कृष्ण-भाव पैदा होता जैसा द्रौपदी के प्रति था. द्रौपदी भी आतताइयों के बीच फँसी थी लेकिन उसकेलिए कृष्ण उपाय और सहयोगी बन कर खड़े थे. द्रौपदी की दुर्दशा होने से बच गयी थी.  आपको इस शेर का कथ्य अच्छा लगा, जान कर संतोष हुआ है. 

वैसे, मेरी इस ग़ज़ल का सही वाला वर्सन पोस्ट नहीं हो पाया है. सब तो सही है, लेकिन एक शेर का सानी वो नहीं है, जो यहाँ उस वाले शेर में है. मैं बदलाव कर चुका था. खैर, संकलन में देखता हूँ सुधार करवा पाया. 

सादर

//’अपनी बगिया लगे बेल फूले-फले’--
सोच देखे पिता लाडली की तरफ़// दिल जीतने वाला शेअर, आह और वाह।   

//क्या पता उसने क्या आईने से सुना
चल दिया एक दिन मुम्बई की तरफ़// बिलकुल नया ख्याल - आफ़रीन।

इस अर्थगर्भित ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आ० सौरभ भाई जी।

उत्साहवर्द्धन केलिए हार्दिक धन्यवाद आ० योगराज भाईजी. 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil is now a member of Open Books Online
38 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"क्या खूब कहा आदरणीय निलेश भाई सादर बधाई,   “जो गुज़रेगा इस रचना से ‘नक्की’…"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"हा हा हा.. कमाल-कमाल कर जवाब दिये हैं आप, आदरणीय नीलेश भाई.  //व्यावहारिक रूप में तो चाँद…"
14 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तमन्नाओं को फिर रोका गया है
"धन्यवाद आ. रवि जी ..बस दो -ढाई साल का विलम्ब रहा आप की टिप्पणी तक आने में .क्षमा सहित..आभार "
20 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका…"
22 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह…"
23 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil shared Admin's page on Facebook
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
Tuesday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service