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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" हीरक जयंती अंक-75 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथिओ,

सादर नमन।
.
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" हीरक जयंती अंक-75 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है, यह हमारे परिवार के लिए एक एतिहासिक क्षण ही कि यह गोष्टी 75वें पायदान पर कदम रखने जा रही हैI अत: यह अंक विषयमुक्त रखा गया है अर्थात हमारे रचनाकार अपने मनपसंद विषयों पर अपनी दो मौलिक और अप्रकाशित लघुकथाएँ पोस्ट कर सकते हैंI तो प्रस्तुत है:  
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" हीरक जयंती अंक-75
अवधि : 29-06-2021  से 30-06-2021 
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अति आवश्यक सूचना :-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी दो लघुकथाएँ पोस्ट कर सकते हैं। (एक दिन में केवल एक)
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। गत कई आयोजनों में देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने /लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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लघुकथा
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पछतावा
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पड़ोस में रामदीन के घर से घुटी घुटी सी रोने की आवाज सुनकर खुद को जाने से रोक नहीं पाया।

रामदीन अपने पिता जी के मृत शरीर के पास सिर पर हाथ रखे बैठा था।

मैंने पर्याप्त दूरी रखते हुए पूछा, "रामदीन.. क्या भाई साहब.. कोरोना के कारण...??"

"नहीं अंकल पापा तो तीन चार दिन से घर में समाप्त राशन को देख कर घर का सामान लाने बाहर निकले थे पर पुलिस वालों ने बिना कुछ सुने जो मारा तो एक लाठी सिर पर लग गई... पापा किसी तरह घर तक तो पंहुचे पर पंहुच ही न पाए...."

"तो अब दाह संस्कार...??"

"क्या करूँ अंकल..श्मशानघाट पर तो कोरोना वालों के शवों का ही दाह संस्कार नहीं हो पा रहा है.. लम्बी लाइन लगी हुई है..बिना संबंधियों के उस ढेर में कैसे पापा को छोड़ आता..." कहते हुए आंगन में लगे हुए एक मात्र पेड़ के कटे हुए ठूंठ पर सिर रख कर रोने लगा जिसे उसने कुछ ही दिन पहले नया फोन खरीदने के लिए बेच दिया

था।

मौलिक व अप्रकाशित

सादर नमस्कार। मंच गोष्ठियों की हीरक जयंती का आग़ाज़ करती बढ़िया समसामयिक लघुकथा का हार्दिक स्वागत। हार्दिक बधाई आदरणीया कनक हरलाल्का जी। शब्द 'कोरोना' विज्ञान जगत में पुराना होते हुए भी समसामायिक है लेकिन रचना को सीमित काल में बाँध देता है। संदेश दोहरे हैं,  गुँथे हुए हैं आपस में.. पछतावा भी... माहौल की विसंगतियाँ... विवशता भी। बहुत ही मार्मिक। यह भी एक संयोग है कि हीरक जयंती वर्ष  में हमने अपने बहुत से  साहित्यिक हीरे भी खोये हैं और हमारे दायित्व बढ़ गये हैं।

हार्दिक आभार उस्मानी सर ...।कथा पर आपकी समर्थनात्मक टिप्पणी उत्साहित करती है ।

आदरणीय कनक हरलालका जी, आप की लघुकथा बहुत बढ़िया हुई हैं. आप ने एकसाथ कई विसंगतियों का निर्वहन करते हुए बेहतरीन लघुकथा लिखी है. वास्तव में कोरोनाकाल में ऐसे कई हादसे हुए है जिस से इंसानियत शर्मसार हुई हैं. आप को हार्दिक बधाई इस बेहतरीन लघुकथा के लिए.

हार्दिक आभार सर..कथा पर आपकी प्रोत्साहन दायक टिप्पणी के लिए धन्यवाद..

आ. कनक जी, अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई।

कॉरोना काल में बहुत से लोगों का बहुत कुछ छीन गया।

हार्दिक बधाई कनक जी। बेहतरीन लघुकथा।

सर्वप्रथम इस हीरक जयंती उत्सव का फीता काटने के लिये बधाई आदरणीया कनक जी। रचना सामयिक मुद्दे को उठा रही है। निर्वहन भी आपकी शैली ने शानदार किया है। बधाई

लघुकथा एक साथ कई विन्दुओं पर विमर्श के लिए स्थान छोड़ रही है, अच्छी लघुकथा हुई है, बधाई इस प्रस्तुति पर स्वीकार करें आदरणीया।  

बहुत समसमयिक रचना कनक जी

शुभ प्रभात,कनक हरलालका, लघुकथा के स्वरूप को सही से समझे बिना लघुकथाकार होना , मुझे लगता है, सम्भव नहीं है। और, यह प्रस्तुति उक्त मान्यता को सही सिद्ध करती है।

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