परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 78 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब रज़ी तिर्मिज़ी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
" तुम याद आये और तुम्हारे साथ ज़माने याद आये "
फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फा
22 22 22 22 22 22 22 2
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 दिसंबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक २4 दिसंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आ० सतविंदर जी , बहुत उम्दा , बधाई .
अच्छा कहा है भाई !!!
राणा जिनको भूल गया था दुनियादारी में पड़कर
इक बच्चे के मुख से सुनकर आज तराने याद आए।........वाह ! ये मक्ता भी खूब हुआ है.
आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी सादर. बहुत खूबसूरत गजल कही है सभी अशआर बढ़िया बन पड़े हैं. दिली मुबारकबाद कुबूलें. सादर.
मिहनत सेे अपनी लिक्खे जो सब अफ़साने याद आए..ऐसा करने से शायद गेयता बढ़ जायेगी और भाव भी नहीं बदलेगा ..
ग़ज़ल के लिए बधाई
मुहतरम जनाब सतविंदर कुमार साहिब ,अच्छी ग़ज़ल हुई है , दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं
शेर 2 ,5 का पहला मिसरा दिए गए मिसरे के हिसाब से लय में नहीं लग रहा है , देख लीजियेगा --
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