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आभार आपका कल्पना जी
आदरणीया नयना (आरती) कानिटकरजी, आपका प्रयास सतत एवं दीर्घकालीन हो. सहभागिता हेतु आभार.
वैसे, आपकी लघुकथा अनावश्यक वर्णन का शिकार हो गयी है. लघुकथा में भी वातावरण की बहुत बड़ी भूमिका हुआ करती है लेकिन वातावरण का बनना एक विन्दु के बाद उबाऊ भी होने लगता है.
आप अन्यथा न लें, परन्तु, आपकी प्रस्तुति विन्दुवत होती, सटीक होती तो अवश्य ही श्लाघनीय होती. इस लघुकथा का कथानक वस्तुतः एक भरी-पूरी कथा के कथानक की तरह हो गया है. किन्तु यह भी सही है कि आपकी किस्साग़ोई उम्मीद बँधाती है.
शुभेच्छाएँ
पारिवारिक समारोह मे उलझी होने से आपकी टिप्प्णी बस अभी पढ पाई.मात्र ३-४ माह से इस विधा मे हाथ आजमाई की है.अभी बहूत कुछ सिखकर लंबी दूरी तय करना है.लेकिन जो मन मे आया है उसे जब तलक व्यक्त ना करु या ना लिखू तो कहाँ गलत हू उए समझना मुश्किल होगा.ये सत्य घटना है,लेकिन मै इसे लघुकथा मे ढालने का प्रयास किया जो पूर्ण सार्थकता से नहीं कर पाई.लेकिन मै "किस्साग़ोई" का मतलब विस्तार से समझना चाहती हूँ ताकी आगे की रचनाओ मे सुधार कर सकू.
आदरणीया नयना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है. इस सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई
आ.मिथिलेश सर धन्यवाद आपका.व्यस्तता ने बहूत देर बाद आप की टिप्प्णी तह पहूचाया.
आभार अर्चना जी आप रचना पर आई.मै सदा प्रयत्नशील हूँ आप लोगो से सिखते हुए.
ऐसा करके भी कुछ हद तक बुराईयों पे काबू रखा जा सकता , अच्छी लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें
आभार आपका मोहन बेगोवाल जी
पूरा हिन्दुस्तान ऐसे ही संकल्पों से बेहतर हो पायेगा ..बहुत बहुत बधाई संदेशप्रद रचना के लिय
आभार आपका सविता जी
आदरणीया नयना जी, एक प्रेरक कथा हेतु आपको बधाई प्रेषित करता हूँ, लघुकथा विधा पर इस कथा को और कसने की संभावना अभी शेष है, इस अभिव्यक्ति पर पुनः बधाई.
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