आदरणीय साथियो,
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वाह .. भावुक करती सुन्दर लघुकथा। बधाई आदरणीया
एक भावुक कर देने वाली लघुकथा। पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
आदाब। विषय को परिभाषित करती बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीया अनिता रश्मि जी।
लघुकथा- दूसरी शादी
"मैं दूसरी शादी करके रहूंगी," यह सुनते हैं घर में सन्नाटा पसर गया। ससुर सम्मान पिता ने कहा, "बेटी! अभी तेरे शहीद पति की चिता भी ठंडी नहीं हुई और तूने यह फैसला कर लिया।"
"हां पिताजी, मैं नहीं चाहती हूं मैं अपने इरादे से डिग जाऊं।"
"इस बारे में एक बार और सोच लेती बेटी," पिता बोले, "माना कि अभी शादी को एक बसंत भी नहीं बीता है मगर इस बच्चे के बारे में कुछ तो सोच लेती।"
"हां बेटी," कब से चुप बैठी सासु ने कहा, "शादी के फैसले थोड़े दिनों के लिए टाल दो बेटी?"
"नहीं सासु मां, अब मैं इसे नहीं टाल सकती हूं। मैं तो शादी करने जा रही हूं," कहते हुए शहीद की विधवा ने एक पत्र आगे बढ़ा दिया, "यह रहा मेरा विवाह का अनुबंध पत्र।"
उस अनुबंध पत्र को पढ़कर ससुर का हाथ आशीर्वाद के लिए उठ गया। वह अनुबंध पत्र नहीं फौज में विधवा की नियुक्ति का पत्र था।
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मौलिक और अप्रकाशित
हार्दिक बधाई आदरणीय। बेहतरीन लघुकथा।
बहुत अच्छी लघुकथा। हार्दिक बधाई आदरणीय
सादर नमस्कार। दूसरी शादी को सकारात्मक प्रतीक देती बहुत भावपूर्ण भक्ति पूर्ण लघुकथा। हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' जी।
आ. भाई ओमप्रकाश जी, बेहतरीन लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।
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