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न्याय की देवी पर सचमुच विश्वास उठता जा रहा है लोगों का प्रभाव शाली लोगों के हाथ की कठपुतली बन गई है ये न्याय की देवी बहुत जबरदस्त कटाक्ष ...बेहतरीन प्रस्तुति बहुत- बहुत बधाई चंद्रेश कुमार जी.
लघुकथा का यह प्रयास आपको ठीक लगा और आपने अपनी टिप्पणी द्वारा मेरा मनोबल बढाया, इस हेतु सादर आभारी हूँ आदरणीया राजेश कुमारी जी |
आज की न्याय व्यवस्था पर प्रभाव ही हावी हो गया है , बहुत बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर | काश न्याय की देवी महसूस भी कर सके तो सच्चे अर्थों में न्याय हो पाये | बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए आपको
वाह चंद्रेश जी... कमाल की कथा हुई है..अंधे कानून की आँखे खोलने की गुहार...
//जिससे न्याय की यह देवी अपने आँखों पर लगी पट्टी काट सके| अब इसे आवाज़ और आँसूंओं के स्पर्श की सच्चाई समझ में नहीं आती और तराज़ू के पलड़े भारी क्यों है वो भी इसे पता नहीं चल रहा|" //
इस एक बात ने हमारे समाज में व्याप्त तमाम अव्यवस्थाओं को उघाड़कर रख दिया... बधाई जी बहुत बहुत बधाई... यूँ ही नहीं आप सर के इतने फेवरिट स्टूडेंट हैं...
देश में पिछले दिनों हुए कुछ फैसलों से तो लगता है कि ये पट्टी और भी कस गई है , आपकी कथा का शिल्प बहुत प्रभावशाली है बधाई स्वीकर करें आदरणीय चंद्रेश जी
'गुलाबी तौलिया'
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"तू इतना रोता क्यों है नहाने में ?"गुलाबी तौलिये में लिपटी हुई ने सफ़ेद तौलिये में लिपटे हुए से कहाI
"अरे ,अभी दो तीन दिन ही तो हुए हैं हमें इस दुनिया में आये Iक्यों तंग करती हैं ये नर्सें I और तू क्या इतना खुश रहती है हरदम ?"तुझे डर नहीं लगता ?"
"नहीं ,मै तो पुलिस हूँ "I
"क्या ?वो क्या होता है ?"
"पता नहीं ,पर मम्मा कहती है ,वो मुझे पुलिस बनाएगी जो किसी से नहीं डरे ,कभी भी I और मुझे लेकर मम्मा खूब दूर दूर घूमेगी ,सारी दुनिया बिना किसी से डरे I जब ये कहती है तो मम्मा की आँखें इतना चमकती हैं कि क्या बताऊँ "I
"तेरी मम्मा तुझसे बातें करती है "?
"हाँ ,दिन भर ,रात भर I"
"मेरी मम्मा तो बस दादी नानी और दूसरे लोगों से घिरी रहती है ,कभी मुझसे बात भी नहीं करती " सफ़ेद तौलिये के अन्दर रूआंसापन था I"और तेरे पापा? वो भी करते हैं तुझसे बात ?"
"मेरे पापा नहीं आते हैं Iमम्मा कहती है पापा को हमारी ज़रुरत नहीं है ,I" पल भर को गुलाबी तौलिये के अन्दर चुप्पी छा गई I"तेरी मम्मा ने तेरा कोई नाम रखा ?" चहक वापस लौट आई थी I
"नहीं , वो भी नहीं रखा "I
",मेरी मम्मा ने तो रख दिया ,हमेशा वो ही नाम लेकर बुलाती है "I
"क्या नाम रखा "?
"आकांक्षा " नर्स की गोद में गुलाबी तौलिये में लिपटी वो आवाज़ अब आगे निकल गई थी I
सफ़ेद तौलिये के अन्दर इतनी देर से रोकी रुलाई फूट पड़ी बुक्क से I
मौलिक व् अप्रकाशित
हार्दिक आभार आपका आदरणीय सतविंदर जी ,नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएँ आपको
आपका हार्दिक आभार व् नववर्ष की ढेरों शुभकामनाएँ
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लघुकथा का यह प्रयास आपको ठीक लगा और आपने अपनी टिप्पणी द्वारा आपके आशीर्वाद हेतु सादर आभारी हूँ आदरणीय तेजवीर सिंह जी सर|