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पक्के निश्चय के आगे कोई बाधा ज्यादा नहीं टिकती ,सुन्दर कथानाक ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया नीता जी
लघुकथा – आकांक्षा
“ अरे भाई ! मैं ने जब तुम्हारा पता पूछा तो लोग कह रहे थे कि आप उस गूंगेबहरे के यहाँ जाना चाहते हो जो ३० साल से न जाने क्या कर रहा है ?” यह कहते हुए दोनों हंस दिए. मगर उस ने इशारे में बताना जारी रखा.
यह तेल के प्लास्टिक से बना डीजल टैंक है. यह इंजन कबाड़ी से ख़रीदा. ये एंगल मैं ने स्वयम वेल्ड किए है. सीट झूले की है. आगे यह प्लास्टिक का कांच है. यानि कुल मिला कर सब सामान मैंने ही इजाद किया है.
“ अब इसे चालू करो,” आदेश पाते ही उस ने इंजन चालू कर दिया. साथ खड़े व्यक्ति ने बारीकी से निरिक्षण किया. विंग काम कर रहा है. डेने व्यवस्थित है. पंखे उसे पीछे धकेल रहे है. बिलकुल कम्प्लीट. उस ने दोनों हाथों को ऊँचा कर अंगूठे से इशारा किया.
वह अपने सब से सस्ते टू सीटर हवाईजहाज को आकाश में ले कर उड़ चला. उस की गूंगी मुस्कान चीखचीख कर कह रही थी, “ मेरी आकांक्षा आज पूरी ही गई.”
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मौलिक व अप्रकाशित
शुक्रिया आदरणीय सतविंदर जी . आप को लघुकथा सुन्दर लगी
आदरनीय शेख उस्मानी जी आप ने लघुकथा पर अपनी उपस्थिति दर्ज की. शुक्रिया आप का.
आदरणीय नीता कसार दीदीजी शुक्रिया आप का .
कथा अतिनाटकीयता से बाधित हुई है . सादर .
आदरणीय गोपाल नारायण जी आप का कथन सही है. मगर यह एक वास्तविक लघुकथा है. हाल ही मैं थामस जी ने एक हवाई जहाज बनाया है. यह उसी पर आधारित है. जो जन्म से मूकबधिर है. सादर.
.जनाब ओमप्रकाश जी , दिल को छू लेने वाली अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई
आदरणीय तस्दीक जी शुक्रिया आप का .
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