परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के ३० वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है|इस बार का तरही मिसरा मुशायरों के मशहूर शायर जनाब अज्म शाकिरी साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत गज़ल से लिया गया है| तो लीजिए पेश है मिसरा-ए-तरह .....
"रात अंगारों के बिस्तर पे बसर करती है "
२१२२ ११२२ ११२२ २२
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
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मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
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बहुत बहुत शुक्रिया ..
न समझना कि तुझे देखता नहीं कोई ,
ये हवाएं तेरी हरकत की खबर करती है .
क्या बात है भाई अविनाश जी गजब है
बहुत बहुत शुक्रिया ..
वाह वा
बेहद शानदार ग़ज़ल हुई है
कई कई अशआर ने मुतमईन किया और लुत्फंदोज़ किया
ढेरो ढेर बधाई
वक़्त की आंधियाँ जब भी यूँ कहर करती है,
देखते - देखते वो दर से बदर करती है।
--
कितनी तेजी से ये चलती है हवा फैशन की ,
गावों को चन्द दिनों में ही शहर करती है .
वाआआआआआआआआआआआआआ.....ह
बहुत बहुत शुक्रिया ..वीनस केसरी सर जी
वाह सर वाह दिल खुश कर दिया अपने खास कर ये शे'र तो दिल में घर कर गया दाद ही दाद खासकर सबसे ज्यादा इस शे'र के वास्ते.
न समझना कि तुझे देखता नहीं कोई ,
ये हवाएं तेरी हरकत की खबर करती है .
बहुत बहुत शुक्रिया
बेहतरीन अंदाज साहिब
आदरणीय अविनाश सर जी
इस ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये
न समझना कि तुझे देखता नहीं कोई ,
ये हवाएं तेरी हरकत की खबर करती है .
बहुत बहुत शुक्रिया
कितनी तेजी से ये चलती है हवा फैशन की ,
गावों को चन्द दिनों में ही शहर करती है ......बहुत खूब !
तोड़ कर दम ये "दामिनी" ने कहा है यारों,
नार बस यूँ ही जिंदगी में सफ़र करती है ...........इस शेर के लिए दिल से दाद क़ुबूल करें अविनाश जी
बहुत बहुत शुक्रियाDr.Prachi Singh mam.
तोड़ कर दम ये "दामिनी" ने कहा है यारों,
नार बस यूँ ही जिंदगी में सफ़र करती है |
नि:शब्द.............
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