For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" - अंक 33 (Now Closed with 624 Replies)

परम आत्मीय स्वजन,

 

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 33 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का तरही मिसरा जनाब अकबर इलाहाबादी की गज़ल से लिया गया है | 

 

इसको हँसा  के मारा, उसको रुला के मारा
   २२       २१२२        २२१       २१२२ 
मफईलु / फ़ालातुन /मफईलु / फ़ालातु
 
रदीफ़     : के मारा
काफिया : आ की मात्रा 

अवधि    : 23 मार्च दिन शनिवार से दिनांक 25 मार्च दिन सोमवार तक 

अति आवश्यक सूचना :-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के इस अंक से प्रति सदस्य अधिकतम दो गज़लें ही प्रस्तुत की जा सकेंगीं |
  • एक दिन में केवल एक ही ग़ज़ल प्रस्तुत करें
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिएँ.
  • तरही मिसरा मतले में इस्तेमाल न करें
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी रचनाएँ लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.  
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें.
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये  जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी. 
  • तरही मुशायरे में केवल ग़ज़ल नियमों पर आधारित पोस्ट ही स्वीकार्य होगी ।

 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 मार्चदिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें | 



मंच संचालक 
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य, प्रबंधन समूह) 
ओपन बुक्स ऑनलाइन

Views: 13499

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

हा हा हा हा

आदरणीय सर जी बहुत बेहतरीन मजाहिया ग़ज़ल हुई है

ढेरों दाद क़ुबूल कीजिये

धन्‍यवाद संदीप जी। 

आदरणीय तिलकराज जी सादर, क्या खूब है  गजल ये  मुझको हँसा के मारा, मजा आ गया साहब.भरपूर दाद कुबुलें.

धन्‍यवाद अशोक जी। 

ज़ालिम ने इस अदा से अपना बना के मारा
झाड़ू के टूटने पर, बेलन उठा के मारा।....अब तो मुग्दर ही ला कर देना उचित होगा मंहगाई ने तो बेलन और झाडू के दाम भी बढा दिये हैं..वैसे भी जब छ्ज्जे से कूद कर दो चार को मारने वाली को तो बेलन से क्या फ़र्क पडेगा...हा हा..

दो बूंद भी नहीं हम नीचे उतार पाते
ये जानकर भी उसने खम्बा पिला के मारा।...फ़िर क्या हुआ??????ये क्या ब्रेक के बाद है??? 

उसके बाद क्‍या हुआ ये किसे होश है। जिन्‍होंने देखा वो भाग खड़े हुए कि कहीं थाने में रपट न हो जाये। 

इस तरही मिसरे पर अकबर इलाहाबादी जी की मूल गज़ल सचमुच बेमिसाल है आदरणीय तिलक जी.

आपकी इस मिज़ाहिया गज़ल का भी ज़वाब नहीं 

ज़ालिम ने इस अदा से अपना बना के मारा
झाड़ू के टूटने पर, बेलन उठा के मारा।................इस तरह से तो बिलकुल अपनों को ही मारा जा सकता है... हाहाहा 

मैदान, जब न कोई, पढ़ने में मार पाये 
बेटी रईस घर की, हम ने पटा के मारा।................क्या बात कर रहे हैं, यकीन नहीं हो रहा .... सचमुच :)))))

सबके लिये अलग हैं कातिल अदायें उसकी 
’इसको हँसा के मारा, उसको रुला के मारा।’...........क्या नजाकत से गिरह लगाई है...वाह , बहुत सुन्दर 

मरदूद मनचलों को होली के दिन बुलाकर
छज्जे से कूद उनपर, सबको दबा के मारा।.....हाहाहा हाहाहा हाहाहा हाहाहा... इमेजिन करके ही मज़ा आ गया ..हाहाहा 

गाजर का ढेर देकर बोले हमें कि किस दो 
जब हमने किस दिया तो लुच्चा बता के मारा।.............गज़ब का किस्स्स्स्सा है...हाहाहा हाहाहा 

हार्दिक दाद पेश है, क़ुबूल करें, सादर.

धन्‍यवाद प्राची जी। 

सबके लिये अलग हैं कातिल अदायें उसकी 
’इसको हँसा के मारा, उसको रुला के मारा।’ wah wah wah !!! 

Tilak Raj Kapoor ji...

दोस्तों तरही मुशायरा की महफ़िल में एक ग़ज़ल पेश -ए- खिदमत है ...

खुश हो गई तो बेगम ने गुदगुदा के मारा 
गुस्से में आ गई तो मुझ को गिरा के मारा 

झपटी वो मेरे ऊपर खूंखार शेरनी सी 
कूल्हे में दांत काटे पिंडली चबा के मारा 

टकले में जख्म के हैं अब भी निशान बाकी 
सर मेरा उस्तरे से उसने मुंडा के मारा 

सीधा न हो सकूं मैं औंधा भी हो न पाऊं
चित भी लेटा के मारा पट भी लेटा के मारा 

सूरत बिगाड़ कर वो दिखलाना चाहती थी
आँखें ही हैं सलामत यूँ भौं बचा के मारा  

दो पहले आशिकों की फोटो दिखा के बोली 
"इस को हँसा के मारा उस को रुला के मारा"

सास और नन्द भी क्यों जलती नहीं किचन में 
ज़ाहिर है के बहू का कसदन जला के मारा 

ऐसी भी हैं मिसालें एनकाउंटर की यारों 
मुल्ज़िम को घर से पकड़ा जंगल में ला के मारा 

इक तीर दो निशाने की यूँ हुई सियासत 
परधान और जिया उल हक को फंसा के मारा 

फरमूद मैं तो समझा कुत्ता ये बा वफ़ा है
ज़ालिम ने दुम हिलाई पंजा घुमा के मारा  


फ़रमूद भाईजी, आपका इस मंच पर हृदय से स्वागत है. हास्य ग़ज़ल का आप जैसा सिद्धहस्त ग़ज़लकार इस मंच की शान है. 

क्या बीवी-पुरान साझा किया है ! .. हा हा हा..............

खुश हो गई तो बेगम ने गुदगुदा के मारा 
गुस्से में आ गई तो मुझ को गिरा के मारा .. ...   ग़ज़ब मरखौनी से पाला पड़ा, भाईजी.. हा हा हा ..

झपटी वो मेरे ऊपर खूंखार शेरनी सी 
कूल्हे में दांत काटे पिंडली चबा के मारा .. . .   ... अरे बाप रे बाप .. रेबीज का टीका लगवा लेना, भाई .. .

टकले में जख्म के हैं अब भी निशान बाकी 
सर मेरा उस्तरे से उसने मुंडा के मारा .. ... .... . ओह्होह.. इस बेदर्दी का आलम ही जुदा है. उस्तरा से टकला. फिर मारा .. अह्हाह !!

सीधा न हो सकूं मैं औंधा भी हो न पाऊं
चित भी लेटा के मारा पट भी लेटा के मारा .. ... इस रदीफ़ ने तो आपके ग़ज़लकार की कचूमर ही निकाल दी, भाई.. दया आ रही है.

सूरत बिगाड़ कर वो दिखलाना चाहती थी
आँखें ही हैं सलामत यूँ भौं बचा के मारा  ....... क्या उदारता है, क्या विशाल-हृद्दयता है ! हा हा हा हा.. ग़ज़ब ग़ज़ब !

दो पहले आशिकों की फोटो दिखा के बोली 
"इस को हँसा के मारा उस को रुला के मारा".. ..सुन्दर और तर्कपूर्ण गिरह .. बहुत बहुत बधाई,भाईजी.. .

सास और नन्द भी क्यों जलती नहीं किचन में 
ज़ाहिर है के बहू का कसदन जला के मारा ........ .. यह् बात तो सोचने वाली है. मज़ाक मज़ाक में गंभीर बात. यही आपकी खुसूसियत है, फ़रमूद भाई.

ऐसी भी हैं मिसालें एनकाउंटर की यारों 
मुल्ज़िम को घर से पकड़ा जंगल में ला के मारा .. ...हम्म. क्या कहा जाये.

इक तीर दो निशाने की यूँ हुई सियासत 
परधान और जिया उल हक को फंसा के मारा ......  .. हालिया घटनाओं को किस महीनी से सी दिया इस मजाहिया ग़ज़ल में !?

फरमूद मैं तो समझा कुत्ता ये बावफ़ा है
ज़ालिम ने दुम हिलाई पंजा घुमा के मारा ...... ..  जरूर ये कुत्ता सिविल लाइन्स का होगा, साहब. ऐसे कटखने ’पामेरियन’ वहीं के होते हैं ... .  :-))))  

मजाहिया और तंज ग़ज़ल की सुन्दर बानगी है यह !  आपकी इस ग़ज़ल के लिए आपको बार-बार बधाई, फ़रमद भाई.

हा हा हा मज़ा आ गया ..मुझे ग़ज़ल लिखना नहीं आता लेकिन पड़ता हू...
आपने मुझे हंसा हंसा के मारा वाह वाह भाई जी बहोत खूब.............

खुश हो गई तो बेगम ने गुदगुदा के मारा 
गुस्से में आ गई तो मुझ को गिरा के मारा 

झपटी वो मेरे ऊपर खूंखार शेरनी सी 
कूल्हे में दांत काटे पिंडली चबा के मारा 

टकले में जख्म के हैं अब भी निशान बाकी 
सर मेरा उस्तरे से उसने मुंडा के मारा 

सीधा न हो सकूं मैं औंधा भी हो न पाऊं 
चित भी लेटा के मारा पट भी लेटा के मारा ................

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service