'मत्त सवैया'
प्रायः ऐसा देखा गया है कि चार चरण से युक्त 'मत्त सवैया' छंद में प्रत्येक पंक्ति में ३२ मात्राएँ होती हैं जहाँ पर १६, १६ मात्राओं पर यति व् अंत गुरु से होता है | पंडित राधेश्याम ने इस लोकछंद पर आधारित राधेश्याम रामायण रची थी तब से इसे 'राधेश्यामी छंद' भी कहा जाने लगा है!
कुल चार चरण गुरु अंतहि है, सब महिमा प्रभु की है गाई.
प्रति चरण जहाँ बत्तिस मात्रा, यति सोलह-सोलह पर भाई.
उपछंद समान सवैया का, पदपादाकुलक चरण जोड़े.
कर नमन सदा परमेश्वर को, क्षण भंगुर जीवन दिन थोड़े..
--अम्बरीष श्रीवास्तव
उदाहरण :
कर भुवन कला कर करे कला, सज मत्त सवैया अलबेला.
सत्संगति कर ले साधुन की, जग चार दिनों का है मेला.
यह मानुष देही दुर्लभ है, क्यों भूलि परा है संसारा.
"सब ठाठ पड़ा रह जाएगा, जब लाद चलेगा बंजारा"
--जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' (छंद प्रभाकर से)
पहले तो नत मस्तक होकर-फल चार चढ़ाए चरणों में।
फिर अर्घ्यरूप में अश्रुचार चुपचाप गिराए चरणों में।।
बोले-‘‘कर चुका विवाह तीन फिर भी फल उसका मिला नहीं।
है चौथापन आने वाला हृत्कमल अभी तक खिला नहीं।।
--पंडित राधेश्याम (राधेश्याम रामायण से)
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बहुत अच्छी जानकारी अम्बरीश जी धन्यवाद
आदरेया सीमाजी के प्रति हार्दिक आभार,
सादर
मत्त सवैया पर लिखी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी इसके नियमों की जानकारी मिली जरूर कुछ लिखने की कोशिश करुँगी बहुत बहुत बधाई आपको अम्बरीश जी
धन्यवाद आदरेया राजेश कुमारी जी |
सभी अंचलों में लोक गीतों की अपनी परंपरा रही है. संप्रेषण को सस्वर था सहज बनाने के लिहाज से अंचल विशेष के विद्वान अपने-अपने ढंग से पदों का निर्माण करते रहे हैं. इन पर चर्चा होती चले. वैसे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इस छंद से सम्बन्धित अभी कुछ और तथ्य जानने आवश्यक होंगे. आपके प्रयास को साधुवाद.
सादर
एक बात, जो नये प्रयासकर्ता इन अनुछंदों पर काम करना चाहते हैं और हमसे पूछते हैं, वे पहले स्थापित छंदों पर सम्यक काम करें.
जी सौरभ जी आपने सही कहा आभार |
धन्यवाद आदरणीय सौरभ जी ! मेरे अल्प ज्ञान के अनुसार मत्त सवैया उत्तर भारत में एक बहु प्रचलित व अति सरल छंद है जिस पर नाटक खेलने से लेकर महाकाव्य तक रच दिए गए हैं | खासतौर पर ग्रामीण अंचल में तो राघेश्यामी छंद के रूप में तो यह बच्चे-बच्चे की जिह्वा पर है ! अतः मेरे विचार में अन्य स्थापित छंदों के साथ-साथ इस पर भी काम करने में कोई खास हर्ज तो नहीं होना चाहिए क्योंकि अपनी सरलता के कारण यह छंद सार छंद या ललित छंद (छन्न पकैया) की तरह नवोदितों को आकर्षित करेगा | इस छंद से सम्बंधित अन्य तथ्यों के बारे में जानकारी प्राप्त होते ही उसे अविलम्ब प्रस्तुत किया जायेगा | सादर
आदरणीय अम्बरीश जी,
हार्दिक धन्यवाद आदरेया डॉ० प्राची जी! सत्य कहा आपने ! यह वाकई में अत्यंत सरल है ! सादर
गुरुवर श्री अम्बरीश श्रीवास्तव जी, इस प्रकार की जानकारी आप इस मंच के माध्यम से उपलब्ध करा रहे हैं इसके लिए तहे दिल से हार्दिक आभार |
स्वागत है आदरणीय लक्ष्मण जी ! हार्दिक आभार आदरणीय !
वाह अम्बरीश भाई जी........बहुत ही अच्छी जानकारी दी आपने 'मत्त सवैया' यानी 'राधेश्यामी छंद' के बारे में.........
बचपन से रामलीलाओं में सूना करता था ये छंद आज यहाँ वो यादें ताज़ा हो गयी...........
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