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"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 28  में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.

 

प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से साभार लिया गया है.

 

 

यह चित्र वाकई बहुत कुछ कहता है.

 

तो आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण ! हाँ.. आपको पुनः स्मरण करा दें कि  छंदोत्सव का आयोजन मात्र भारतीय छंदों में लिखी गयी काव्य-रचनाओं पर ही आधारित होगा.  इस छंदोत्सव में पोस्ट की गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों के साथ कृपया सम्बंधित छंद का नाम व उस छंद की विधा का संक्षिप्त विवरण अवश्य लिखें.  ऐसा न होने की दशा में आपकी प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार कर दी जायेगी.
 

नोट :-
(1) 18 जुलाई 2013 तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा,  19 जुलाई 2013 दिन शुक्रवार से 21 जुलाई 2013 दिन रविवार तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो. रचना भारतीय छंदों की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है. यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे और केवल अप्रकाशित एवं मौलिक सनातनी छंद की रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

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अति आवश्यक सूचना :

आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन रचनाएँ अर्थात प्रति दिन एक रचना के हिसाब से स्वीकार की जायेंगीं.  ध्यान रहे प्रति दिन एक रचना  न कि एक ही दिन में तीन रचनाएँ.  नियम विरुद्ध या निम्न स्तरीय प्रस्तुतियाँ बिना कोई कारण बताये या बिना कोई पूर्व सूचना के प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दी जायेंगी, जिसके सम्बन्ध में किसी किस्म की सुनवाई नहीं होगी, न ही रचनाकारों से कोई प्रश्नोत्तर होगा.

 

 

मंच संचालक

 

सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

 

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Replies to This Discussion

आभार आदरणीय सत्यनारायण जी...............

आदरणीय अरुण निगम जी,

बहुत सुन्दर तथ्य साँझा करता कथ्य है दोहों का... वाह !

कई दोहे बहुत पसंद आये, पर खास तौर से इन तीन दोहों ने तो बस कथ्य से बाँध लिया.

करती है ओजोन की, परत कवच का काम
उसको खंडित कर रहा, सोच जरा परिणाम ||....इस तथ्य को चेतावनी के तरह दोहे में बांधा है , बहुत सुन्दर 


बाँझ  मृदा होने लगी , हुई प्रदूषित वायु
जल जहरीला हो रहा , कौन होय दीर्घायु ||.....जल थल वायु तीनो ही प्रदूषित..इस दोहे की कथ्य सांद्रता पर बधाई 


अनगिन ग्रह नक्षत्र में ,  वसुन्धरा ही एक
जिसमें जीवन - तत्व हैं, इसको माथा टेक ||....वाह 

हार्दिक बधाई आदरणीय 

सादर.

आदरणीया प्राची जी, एक विदूषी का अनुमोदन मेरे लिये अनमोल है, आभार.............

आदरणीय अरुण निगम साहब सादर, बहुत सुन्दर दोहे रचे हैं.बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

 

वसुधा है माता सदृश,आँचल इसका थाम……………….. माता पूजन को सकल, देश चला है साथ |

माँ  की  पूजा  में  बसे , सारे  तीरथ-धाम ||………………. वसुधा नदिया गौ किसे, पूजे पर श्री नाथ ||

 

हाथ सृजन करने मिले,करता किंतु विनाश……………… सृजन हाथ से कर रहे, पाप कर्म के नाग |

शेष नाग ‘कर’ को बना , थाम धरा आकाश ||…………..  डँसते वसुधा को सभी, कैसे जागे भाग ||

 

बलशाली है बुलबुला,यह हास्यास्पद बात………………… शबनम की बूंदे कभी, नहीं बुझाती प्यास |

कुदरत से लड़ने चला , देख जरा औकात ||………………संग्रह का उल्लास पर, देता मन को आस ||

 


काट - काट कर बाँटता, निशदिन देता पीर………………. छल छल के इंसान के, कर्मो से हर बार |

कब तक आखिर बावरे , धरती धरती धीर ||…………….. धारित्री पर नित्य ही, करता अत्याचार ||

 


करती है ओजोन की, परत कवच का काम………………. नित्य बढे ओजोन की, सघन परत का छेद |

उसको खंडित कर रहा, सोच जरा परिणाम ||……………  पराबैंगनी मौत का, दूर नहीं है भेद ||

 


बाँझ  मृदा होने लगी , हुई प्रदूषित वायु……………………हर थाली में जहर रख, खाए अब इंसान |

जल जहरीला हो रहा , कौन होय दीर्घायु ||……………… लोभी कितना हो गया, धरती का भगवान ||

 

 

अनगिन ग्रह नक्षत्र में ,  वसुन्धरा ही एक………………. लाख टके की बात है, धरती बहुत महान |

जिसमें जीवन - तत्व हैं, इसको माथा टेक ||…………… मारुत पानी धूप से, जीवित सभी इन्सान ||

 

मन को भाई भा गया, छंदकर्म अनुराग 

दोनों संयत संतुलित, दायाँ-बायाँ भाग .. .

जय जय

जी...सादर आभार.

दायें-बाँये भाग पर,दिया अतुल अनुराग

जबलपूर-उज्जैन के,आज खिले हैं भाग ||

आभार आदरणीय सौरभ भाई जी....

आदरणीय रक्ताले जी, आपकी काव्य-प्रतिभा ने नि:शब्द कर दिया, आभार हृदय से...............

आ0 अरून निगम सर जी, लाजवाब अप्रतिम दोहावली।  सर जी, हार्दिक बधाई स्वीकारे।  सादर

आभार प्रिय केवल प्रसाद जी..........

aआदरणीय अरुण निगम जी हार्दिक अभिनन्दन ,सुंदर दोहावली केलिए 

आभार आदरणीया सरिता भाटिया जी...........

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