नमस्कार साथियो !
चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता’ अंक-20 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है |
इस बार भी इस आयोजन के लिए कुछ अलग अंदाज़ का चित्र प्रस्तुत किया जा रहा है यह चित्र आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर प्रधान सम्पादक ओबीओ द्वारा मेरे पास प्रेषित किया गया है, अब आप सभी को इसका काव्यात्मक मर्म चित्रित करना है !
दोहन अंधाधुंध है, फिर भी सोये लोक.
भूजल नीचे जा रहा, रोक सके तो रोक..
तो आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, यह आयोजन सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगा, कृपया इस आयोजन में दी गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों से पूर्व सम्बंधित छंद के नाम व प्रकार का उल्लेख अवश्य करें | ऐसा न होने की दशा में वह प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार की जा सकती है |
नोट :-
(1) १७ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १८ से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट हेतु खुला रहेगा |
(2) जो साहित्यकार अपनी रचना को प्रतियोगिता से अलग रहते हुए पोस्ट करना चाहे उनका भी स्वागत है, अपनी रचना को "प्रतियोगिता से अलग" टिप्पणी के साथ पोस्ट करने की कृपा करें |
सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना मात्र भारतीय छंदों की किसी भी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक कृतियां ही स्वीकार किये जायेगें |
विशेष :-यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें|
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक-२० , दिनांक १८ नवंबर से २० नवंबर की मध्य रात्रि १२ बजे तक तीन दिनों तक चलेगी, जिसके अंतर्गत आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन पोस्ट अर्थात प्रति दिन एक पोस्ट दी जा सकेंगी साथ ही पूर्व के अनुभवों के आधार पर यह तय किया गया है कि नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
मंच संचालक: अम्बरीष श्रीवास्तव
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स्वागतम्
(प्रतियोगिता से अलग)
'विष्णुपद' छंद
(चार चरण प्रति चरण सोलह, दस
मात्राओं पर यति, चरणान्त में गुरु)
चार चरण का छंद 'विष्णुपद', स्वामी हरि जग़ के|
सोलह दस पर यति है शोभित, अन्तहिं गुरु सबके||
नीर बहे जब भक्ति भाव में, दर्शन मन तरसे|
शीश झुका तब दिखे विष्णु पद, नयन सुधा बरसे||
--अम्बरीष श्रीवास्तव
अहा ! आयोजन का प्रारंभ ही सुन्दर छंद ज्ञान से !!!
विष्णुपद छंद तो अति सुन्दर छंद प्रतीत होता है भाईजी.. . सादर धन्यवाद.
हार्दिक आभार आदरणीय सौरभ जी !
नित नित मिलता है मुझे, यहाँ छंद का ज्ञान,
लगे विष्णुपद छंद भी, मुझको सुधा समान/
आदरणीय अम्बरीश जी बहुत सुन्दर छंद से शुरुआत.सादर सुप्रभात.
नमस्कार है आपको, करें सुधा रस पान.
स्वागत मित्र अशोक जी, दिया ज्ञान को मान..
सादर.
द्वि-चरणों के चिन्ह, पादोदक, भक्त हटे पा के ।
प्रतियोगिता भिन्न, मनमोहक, चित्र छापा ला के ।
आदरणीय नमन, महोत्सव, कहाँ छुपे जा के ।
आभारी रविकर, विष्णुपद, सिखा गए आ के ।।
चरण चिन्ह यह परमेश्वर के, यदि विश्वास करें|
नमन उन्हीं के श्री चरणों में, जल में वास करें|
पानी सा व्यवहार जगत में, जिससे दुष्ट डरें|
नहीं खेलते लुका-छुपी वे, सबके क्लेश हरें||
स्वागत है मित्र रविकर जी ! प्रतिक्रिया में छंद विष्णुपद पर प्रयास करने के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें ! निरंतर अभ्यास से छंद स्वतः ही सिद्ध होता जाएगा !
वाह ! अम्बरीश जी.
सादर
बहुत सुन्दर छंद आदरणीय अम्बरीश जी.
नीर बहे जब भक्ति भाव में, दर्शन मन तरसे|
शीश झुका तब दिखे विष्णु पद, नयन सुधा बरसे||..........बहुत सुन्दर रचना नए छंद के ज्ञान के साथ साथ चित्र को भी परिभाषित किया है आपने..हार्दिक बधाई
स्वागतम् डॉ० प्राची जी, छंद की सराहना के लिये हार्दिक आभार !
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