For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 65 की समस्त रचनाएँ चिह्नित

No Description

Views: 3551

Replies to This Discussion

मोहतरम जनाब सौरभ साहिब , ओ बी ओ चित्र से काव्य छंदोत्सव अंक -65 के कामयाब संचालन और त्वरित संकलन के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---


मेरे दोहा छंद में निम्न संशोधन करने की ज़हमत करें -

नंबर 1 ( पहला मिसरा )-----अक्षर भी हैं सामने ,कुछ हिंदी के यार

नंबर -4 ( दूसरा मिसरा )-----चले उठाकर सर सदा , पढ़ा लिखा इंसान

नंबर -5 (पहला मिसरा )-----हिंदी के अक्षर पढ़ो , रटो लिखो तुम आज

नंबर -7 ( पहला मिसरा ) -----रहें न अनपढ़ बेटियां , मानो मेरी बात

शुक्रिया ----सादर

ऊंचा को ऊँचा और बेटियां को बेटियाँ लिखने की आदत डालें, आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी. इसी कारण वे पद (पंक्तियाँ) हरे रंंग में थे.  चन्द्र विन्दु और अनुस्वार में बहुत अंतर है. इस विन्दु पर आयोजनों में कई बार चर्चा हो चुकी है. 

बाकी संशोधन के अनुसार ठीक हो गया है.  

मोहतरम जनाब सौरभ साहिब , जानकारी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ----आगे इस बात का ध्यान रखूँगा 

श्रद्धेय श्री सौरभ पांडेय जी, सादर नमन! ओ बी ओ चित्र से काव्य छंदोत्सव - 65 के सफल आयोजन एवं त्वरित संकलन प्रस्तुति के लिए सादर आभार एवं बधाई।
आदरणीय, ताटंक छन्द आधारित रचना में परिष्कृत करने का प्रयास किया है।आपसे विनम्र निवेदन है कि मेरी ताटंक छन्द रचना में निम्न प्रकार से प्रतिस्थापित कर कृतार्थ करें :-
द्वितीय बंद में,
काले-काले अच्छर क्या हैं,कैसे निकलें आवाजें ।
के स्थान पर:-
काले-काले अक्षर क्या हैं, कैसे निकलें आवाजें ।

तीसरे बंद में,
क ख ग घ की क्या सूरत होती,कौन मुझे बतलाएगा ।
त थ द ध की मूरत मेले में, कौन मुझे दिखलाएगा । के स्थान पर:-
क ख ग घ की सूरत क्या होती, कौन मुझे बतलाएगा ।
त थ द ध की मेले में मूरत, कौन मुझे दिखलाएगा ।

पांचवें बंद में,
पच्छम पूर्व व उत्तर दक्खन, बात निराली हिंदी की।
सारे जग में चमक रही हैं, विधा हजारों हिंदी की।
के स्थान पर:-
उत्तर दक्षिण व पूर्व पश्चिम, बात निराली हिंदी की।
सारे जग में चमक रही हैं, विधा हमारी हिंदी की।

छठे बंद में,
तुलसी के मानस को पढ़कर, दुनिया हुई विज्ञानी है ।
के स्थान पर:-
तुलसी के मानस को पढ़कर, जगत हुआ विज्ञानी है ।

इसी प्रकार दोहा छन्द में भी प्रतिस्थापित करने का अनुरोध है :-
प्रथम दोहे में,
चंद वर्ण हैं लिखे जो, हैं भाषा के मूल ।
के स्थान पर:-
लिखे वर्ण जो चंद हैं, हैं भाषा के मूल ।

चतुर्थ दोहे में,
तख्ती सलेट खो गई, गया ज्ञान आधार ।
के स्थान पर:-
तख्ती सलेट खो गई, चला गया आधार।

सातवें दोहे में,
निज भाषा मुंह मोड़कर, पर का करते गान ।
के स्थान पर:-
निज भाषा मुंह मोड़कर, करते पर का गान।
आदरणीय आशा करता हूँ कि आप इसे यथासंभव प्रतिस्थापित करने की कृपा करेंगे।सादर आभार ।

क ख ग घ की सूरत क्या होती, कौन मुझे बतलाएगा ।
त थ द ध की मेले में मूरत, कौन मुझे दिखलाएगा । 

इन पंक्तियों के क ख ग घ,  या  त थ द ध  को सही ढंग से नहीं निभाया जा सका है. ध्यान से देखिये, और उच्चारण कीजिये, ये सभी वर्ण दीर्घ स्वर में उच्चारित हो रहे हैं. तो फिर आप लघु के अनुसार उच्चाररित कर अपनी पंक्ति को मात्रा के हिसाब से गलत ही तो कर रहे हैं.

तख्ती सलेट खो गई, चला गया आधार  की जगह तख़्ती-सलेट खो गये, चला गया आधार  होना चाहिए. आखिरी संज्ञा  सलेट पुल्लिंग है. और दो संज्ञाएँ होने से क्रिया बहुवचन की होगी .. 

मुंह को मुँह लिखा कीजिये.  अनुस्वाराउर चन्द्र विन्दु में बहुत अंतर है न ? इस विन्दु पर हर आयोजन में चर्चा होती है. सुधार के क्रम में कई सदस्यों की पंक्तियाँ दुरुस्त हुई हैं. आप सभी अपनी रचनाओं और उन पर आयी टिप्पणियों भर से वास्ता रखेंगे तो यह हम जैसे लोगों पर भारी बोझ नहीं होगा ? एक ही बार क्या सभी को बताना कठिन नहीं होगा , आदरणीय ?

उपर्युक्त विन्दुओं पर पुनः ध्यान दें .

शुभेच्छाएँ 

मेरी रचना में संशोधन के प्रयास किये है आदरणीय सौरभ भाई जी, कहाँ तक सफल हुआ ? इसमें भूतकाल और वर्तमानकाल की विद्यालयी प्रवेश व्यवस्था के तुल्नाम्क्त अध्ययन के हिसाब से परिक्षण कर कोई सुझाव हो तो अवश्य सुझाए आदरणीय सादर - 

दीपक लेकर ढूंढते- गीत रचना 
=====================
मुखड़ा एवं पूरक पंक्तिया (13-11 मात्राए)
अंतरा सभी ताटक छंद (16-14= 30 मात्राएँ अंत 222 से)
मुखड़ा -
शिक्षा तो अनमोल है, बने तभी विद्वान
दीपक लेकर ढूंढते, मिले कहाँ इंसान |

माँ बापू से शब्द सीखकर, घर का मान बढ़ातें हैं,
पहली सीढी कहे उसे ही, माँ बापू सिखलाते हैं |
पाँच वर्ष का हो जाता है, तभी दाखिला हो पाता,
जोशी शिक्षक होते थे जब, स्लेट पकड़ शाळा जाता |
नहीं रहा पर इन दिनों, नालंदा सा मान,
दीपक लेकर - - - - - - - -

तीन वर्ष का शिशु होता जब, पहली कक्षा हो के. जी
परिपाटी अब बदल गई है, बच्चे पढ़ते अंग्रेजी |
भर्ती होना हुआ कठिन अब, इंटरव्यू देती माता 
खर्चा करना पड़े अधिक ही, तब भर्ती वह हो पाता |
बने हंस भी इन दिनों, बगुलों के उपमान,
दीप लेकर - - - - - - - - - - - - - -

बोझा ढोतें शिशु बस्तों का, कर न सके अब कोताही,
होम-वर्क देते जो शिक्षक, पूर्ण कराती माता ही |
पढ़े आठवीं तक जो बच्चा, कोई फेल नहीं होता 
घर में कोई पढ़ा न पाए, पढ़ना टयूशन से होता |
शिक्षा को व्यवसाय बना, बेच रहे ईमान,
दीपक लेकर - - - - - - - - - - -

शिक्षा पद्धति बदल गई है, शिक्षक अब व्यवसायी है 
कोचिंग करते शिक्षक सारे, असली यही कमायी है |
कैट, गेट, ने'ट नाम से ही, भाग्य सभी अजमाते हैं
व्यावसायिक कोर्स करे बिना, नहीं नौकरी पाते हैं |
शिक्षा का मकसद हुआ, केवल अर्थ प्रधान,
दीपक लेकर - - - - - - -

निम्नलिखित बन्द की तुकान्तता को  पुनः दुरुस्त करना होगा आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी. 

यहाँ समान्त शब्द सही नहीं हैं. 

बोझा ढोतें शिशु बस्तों का, कर न सके अब कोताही,
होम-वर्क देते जो शिक्षक, पूर्ण कराती माता ही |.................इन दो पंक्ति में  समान्तता को और मा हो रही है. 
पढ़े आठवीं तक जो बच्चा, कोई फेल नहीं होता 
घर में कोई पढ़ा न पाए, पढ़ना टयूशन से होता |.............. इन दो पंक्तियों में समान्तता हीं और से हो रही है. 

कैट, गेट, ने'ट नाम से ही, भाग्य सभी अजमाते हैं  .. इस पंक्ति में सही शब्द अजमाते नहीं, आजमाते होना चाहिए.  इसी कारण यह पंक्ति रंगीन हुई है. 

सादर

जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब,सबसे पहले तो आयोजन की सफलता की बधाई स्वीकार करें ।
निवेदन है कि मेरे पहले दोहे की दूसरी पंक्ति को कृपया इस तरह कर दें:-
"जग में ताकि रहे अमर, सदा हमारा नाम"
दूसरे दोहे को इस तरह करने की जहमत फरमाएं:-
"'ख'से खुले हैं द्वार सब,रहा न कोई भेद
लाभ न कोई ले रहा,इसका मुझ को खेद"
और तीसरे दोहे को कृपा कर इस तरह कर दें:-
"'ग'दे सभी को ये सबक़,ये दुनिया है गोल
उसकी क़ुदरत देखिये,कहीं न आया झोल"
बाक़ी शुभ शुभ

यथा निवेदित तथा संशोधित .. 

एक भूल हो गई,एक दोहे में और संशोधन करना था पर
दिमाग़ से निकल गया,क्षमा कीजियेगा ।
पांचवे दोहे में "बेचैन"और "रैन" इस तरह कर दीजिये,दोबारा कष्ट देने की मुआफ़ी के साथ ।
श्रद्धेय सौरभ सर सादर वन्दे।छंदोत्सव के सफल संचालन के लिए बहुत बहुत बधाई।संकलन प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार।सभी प्रतिभागियों को भी तहे दिल बधाई।नेटवर्क की समस्या के कारण उत्सव में अपनी प्रयासों पर पुनः उपस्थित नहीं हो पाया। मेरे प्रयासों पर अपनी राय,टिप्पणी देकर हौंसलाफ़ज़ाई एवं मार्गदर्शन करने के लिए सभी आदरणीय सुधिजनों का भी कोटि कोटि धन्यवाद।
श्राद्धेय सर मेरे प्रथम प्रयास के प्रथम अन्तरे का अंतिम चरण विधान अनुरूप नहीं बन पाया है।इसमें 15 मात्राएँ हो गई हैं।इसके संशोधन के लिए निम्न शब्द निवेदित हैं,कृपया विस्थापित कर कृतार्थ करें

हृदय तमस हरते जाओ

सहयोग के लिए हर्दिक धन्यवाद आदरणीय सतविन्द्रजी.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service