खुदा के घर से किसी के दिल पर ,
ना हिन्दू ना मुसलमान की छाप लगकर आयी है ,
फिर क्यूँ तुमने हमपर जाती की तोहमत लगाई है ,
खुदा का वास्ता -
अब, ना हिन्दू ना मुसमान ना ईसाई बना हमको ,
इंसानियत हमारी ज़ात हैं ,कुछ और ना बना हमको
दिल जिगर गुर्दे ,तुम भी रखते हो ,हम भी रखते हैं ,
चाहो तो जंग के मैदान में आजमा सकते हो ,
और अगर चाहो तो -
ज़रूरतमंद को दान कर इंसान और इंसानियत ,
दोनों को बचा सकते हो
अप्रकाशित मौलिक
Posted on April 21, 2014 at 4:33pm — 6 Comments
शौख से आशियाँ उजाड़ ,ये इख्तियार है तुझे ,
खानाबदोश हूँ ,ठहरना मेरी फितरत भी नहीं है
मेरे जख्मों पर नमक छिड़क गया ,वो आज ,
उसके ही दिए तोहफों कि याद दिला गया वो आज
उसकी नफरतों के जाम को भी
शांती कि कीमत समझ पिया…
ContinuePosted on March 21, 2014 at 7:22pm — 6 Comments
कुछ तो मजबूरी की हद रही होगी ,
या निर्लज्जता की इंतेहा रही होगी ,
वो सम्भावित प्रधान मंत्री के पिता थे,
उनकी पत्नी ने प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति
बनाये और अपनी उंगलियों पर नचाये होंगे ,
कुछ तो हुआ होगा की 11 साल तक
कई असहाय राष्ट्रपतियों के ज़मीर को…
ContinuePosted on February 21, 2014 at 8:17am — 4 Comments
करवट बदल रहा है कोई
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शर्मसार नहीं हैं हम, हार कर भी ,
हाँ ,सदमे में जरूर हैं , कि-
नींद में करवट, बदल रहा है कोई
जातिवाद का ज़हर
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तुम नीलकंठ कहलाते हो ,
ज़हर कोई, कभी पिया…
ContinuePosted on December 11, 2013 at 2:30pm — 8 Comments
क्षणिकाएँ
आज़ादी का जश्न मना लेने भर से,
देश भक्तों की पहचान नही होती है ,
सिर उठाने की अगर कोशिश भी करे कोई तो ,
रूह कांप जाये ,ये वीर सपूतों की शान होती है.
उपजाऊ भूमी भी बंजर बन जाती है
बुद्दी जब…
ContinuePosted on November 28, 2013 at 9:30pm — 6 Comments
तुम पिंजरे में बंद मुर्दा ज़िन्दगी के सिवा कुछ भी तो नहीं ,
अपने आप को ,आज़ाद पंछी मान बैठे हो ,
तुम्हारी तनी हुई मुट्ठियाँ ,बढ़ते कदम ,
बीवी बच्चों को देख, अपाहिज हो जाते हैं ,
तुम्हारे मस्तक की मांसपेशियां ,
पेट की तरफ देख ,अनाथ हो जाती है ,
तुम्हारी जुबान ,साहब को देख ,…
ContinuePosted on August 4, 2013 at 6:00pm — 4 Comments
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Comment Wall (4 comments)
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आदरणीय दिलीप जी, हम सब साथ-साथ साहित्य की विविध विधाओं की जानकारी प्राप्त करेंगे.
सादर!
सदस्य टीम प्रबंधनSaurabh Pandey said…
भाईजी, अपनी रचनाओं पर आयी सभी प्रतिक्रियाओं का धन्यवाद ज्ञापन वहीं अपनी रचनाओं पर ही किया करें.
सादर
आदरणीय यह कमी तो मुझमें भी थी और अब भी बहुत सी कमियां हैं। हम एक दूसरे से ही सीखकर आगे जा सकते हैं। आपने इतना मान दिया इसके लिए आभार।
सादर!
सदस्य टीम प्रबंधनSaurabh Pandey said…
आपका हार्दिक धन्यवाद.
नववर्ष की अनेकानेक बधाइयाँ, भाई. हम सब समवेत सीखते हैं.. .