मौन
मौन में शाश्वत सुख है, शब्द में आक्रन्द है
शब्द नहीं अनिवार्य होते दो दिलों की चाह में
सब समझ लेते हैं प्रेमी सिर्फ़ अपनी आह मे
मन से मन का मेल है तो नीरवता भी छंद है
मौन मेंशाश्वत..........
शब्द की तो एक सीमा,अविरत होता मौन है
शब्द के तो बाण होते मौन कितना सौम्य है
मौन में तो सहजता है, शब्द में पाखंड है
मौन में शाश्वत ...........
क्या कहुँ,कितना कहुँ,किसको कदुँ क्योंकर कहुँ
सच्चा कहुँ,मिथ्या कहुँ,मैं ये कहुँ या वो कहुँ…
Posted on August 7, 2018 at 6:12pm — 4 Comments
ये हवा कैसी चली है आजकल
सब यहाँ दिखते दुखी हैं आजकल
दुख किसीको है अकेला क्यों खड़ा
और किसीको भीड का ग़म आजकल
है शिकायत नौजवाँ को बाप से
बाप को लगता वो बिगड़ा आजकल
मायने हर चीज के बदले यहाँ
है नहीं अच्छा बुरा कुछ आजकल
बाँटकर खाने के दिन वो लद गये
लूटलो जितना सको बस आजकल
मुल्क के ख़ातिर गँवाते जान थे
क़त्ल करते मुल्कमें ही आजकल
क़ौल के ख़ातिर गँवायें जान…
ContinuePosted on August 5, 2018 at 9:30pm — 9 Comments
1222,1222, 1222, 1222
चलो ये बोझ भी दिलपर उठाकर देख लेते हैं
किसीको हम ज़रा दिलमें बसाकर देख लेते हैं
जियेगें किस तरह तन्हाँ यहाँ साथी अगर छूटा
यहाँ जो बेवजह रूठा मनाकर देख लेते हैं .....
कहाँतक हार है अपनी ज़रा इसका पता करलें
यहाँ भी ईक नयी बाज़ी लगाकर देख लेते है....
कहो कैसे यक़ीं तुमको दिलायें आशनाई का.
लगेहैं जख्म जो दिल पर दिखाकर देख लेते हैं
जमींपर जो नहीं मिलते वो मिलते आसमानों पर
चलो…
Posted on August 4, 2018 at 5:30pm — 5 Comments
हमें ख़ुशियाँ नहीं क्यों ग़म मिला है
नहीं माँगा वही हरदम मिला है
अधूरी चाहतें लेकर जिये हैं
हमेशा चाहतोंसे कम मिला है
नहीं फ़रियाद बस सजदे किये हैं
कहो जन्नतमें’ क्यों मातम मिला है
सफ़र कांटोभरा क्या कम नहीं था
हमें बेज़ार क्यों मौसम मिला है
मनानेके सभी फ़न बेअसर हैं
बड़ा ही संगदिल हमदम मिला है
१२२२,१२२२,१२२ “अम” मिला है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Posted on August 2, 2018 at 7:12pm — 1 Comment
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