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ग़ज़ल
देख लेना क्रान्ति अपनी रंग लायेगी ज़रूर
ये महा हड़ताल शासन को झुकायेगी ज़रूर
देखकर गहरा अंधेरा किसलिए मायूस हो
रात कितनी भी हो लम्बी भोर आयेगी ज़रूर
हौसला हालात से लड़ने का होना चाहिए
आयेंगे तूफ़ां तो कश्ती डगमगायेगी ज़रूर
अब बग़ावत पर उतर आओ सुनो पूरी तरह
वर्ना ये सत्ता तुम्हें भी नोंच खायेगी ज़रूर
ये हमारी सारी माँगें मान तो ली जायेंगी
हाँ मगर सरकार हमको…
ContinuePosted on November 21, 2013 at 6:30am — 11 Comments
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जुम्मन ख़ाँ
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अब तो थोड़ा सोचो और विचारो जुम्मन ख़ाँ
मेरी मानो अपना हाल सुधारो जुम्मन ख़ाँ .
सच्चाई को कब तक ओढ़ो और बिछाओगे
ख़ुदग़र्ज़ी से, मक्कारी से आँख चुराओगे
मुँह में रखकर राम बगल में छुरी नहीं रखते
नीयत कभी किसी की ख़ातिर बुरी नहीं रखते
निश्छल चेहरे पर छाया जो ये भोलापन है
सच मानो जुम्मन ख़ाँ सबसे शातिर दुश्मन है
थोड़ा सा तो डूबो धन-दौलत की चाहत में…
Posted on October 13, 2013 at 2:30pm — 12 Comments
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ग़ज़ल
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कैसा भाईचारा जी
रख दो माल हमारा जी .
दिल का क्या कहना मानें
दिल तो है आवारा जी .
शीशा तोड़ा, क्या तोड़ा ?
तोड़ो तम की कारा जी .
माल अकेले गपक गये
तुम सारे का सारा जी .
जाओ, कूद पड़ो रण में
दुश्मन ने ललकारा जी .
पेट भरेगा…
ContinuePosted on October 1, 2013 at 8:00am — 14 Comments
WAAH PHOTO LAG GAI :)))))))))
धन्यवाद आदरणीय अजीत जी !
स्वागत स्वागत हार्दिक स्वागत
आदरणीय अजीत ’आकाश’ भाईजी, आपका इस मंच पर हार्दिक स्वागत है. पूर्ण विश्वास है, इस मंच के साहित्याग्रही आपकी सुखकर रचनाओं का रसास्वादन करेंगे.
शुभ-शुभ
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