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जुम्मन ख़ाँ
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अब तो थोड़ा सोचो और विचारो जुम्मन ख़ाँ
मेरी मानो अपना हाल सुधारो जुम्मन ख़ाँ .
सच्चाई को कब तक ओढ़ो और बिछाओगे
ख़ुदग़र्ज़ी से, मक्कारी से आँख चुराओगे
मुँह में रखकर राम बगल में छुरी नहीं रखते
नीयत कभी किसी की ख़ातिर बुरी नहीं रखते
निश्छल चेहरे पर छाया जो ये भोलापन है
सच मानो जुम्मन ख़ाँ सबसे शातिर दुश्मन है
थोड़ा सा तो डूबो धन-दौलत की चाहत में
सच मानो कुछ नहीं रखा है भलमनसाहत में
.
भलमनसाहत को अब गोली मारो जुम्मन ख़ाँ
मेरी मानो अपना हाल सुधारो जुम्मन ख़ाँ .
झूठ-मूठ की शान दिखाओ, नकलीपन ओढ़ो
छल-बल सीखो, बे-ईमानी से रिश्ता जोड़ो
टाँग खिंचाई कैसे करते हैं, ये फ़न सीखो
कहाँ उठानी कहाँ झुकानी है गर्दन, सीखो
आस्तीन के साँपों को उस्ताद बना डालो
घोर काइयांपन के साँचे में ख़ुद को ढालो
फिर देखो हर ओर तुम्हारी ही जय जय होगी
वर्ना रह जाओगे बनकर बस वेतन भोगी
अपनी बिगड़ी क़िस्मत आप संवारो जुम्मन ख़ाँ
मेरी मानो अपना हाल सुधारो जुम्मन ख़ाँ .
सत्य -वत्य, ईमान -धरम में कब तक उलझोगे
ना जाने कब आँख खुलेगी कब तुम समझोगे
नौजवान बेटे को सर्विस में लगवाना है
बिटिया की शादी करनी है, घर बनवाना है
पत्नी के कपड़ों-गहनों का शौक़ अधूरा है
तुम कहते हो अपना तो हर मक़सद पूरा है
दुनियादारी सीखो वर्ना क्या कर पाओगे
अब तक रोते आये, रोते ही रह जाओगे
डर छोड़ो, इस दुनिया को ललकारो जुम्मन ख़ाँ
मेरी मानो अपना हाल सुधारो जुम्मन ख़ाँ .
देखो जुम्मन ख़ाँ, अब का ये दौर निराला है
कपड़े तो उजले हैं, मन का क्या है ? काला है
हर दिन हर पल भ्रष्टाचार फूलता फलता है
भारतवर्ष हमारा रामभरोसे चलता है
किस दुनिया में रहते हो क्या बातें करते हो
अंधे युग में भी ऊपरवाले से डरते हो
सुख क्या जानो तुमने तो बस दुख ही दुख भोगे
मेरे कहने का आशय तुम समझ गये होगे
मौक़ा ढूँढो, तड़ से पलटी मारो जुम्मन ख़ाँ
मेरी मानो अपना हाल सुधारो जुम्मन ख़ाँ .
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[मौलिक / अप्रकाशित]
Comment
आ० प्राची जी, आपके शब्दों ने हौसला अफज़ाई की, हार्दिक आभार आपका ..... वीनस भाई शुक्रिया .... आ० सौरभ जी आभार आभार .....
आदरणीय अजीत जी
बहुत शानदार रचना है.... बहुत दिनों बाद इतना बढ़िया व्यंग पढ़ा है कि पाठक मन तृप्त हो गया... बहुत बहुत बधाई
भाई जुम्मन ख़ाँ.. को कितनी प्रेक्टिकल सीखें दी गयी हैं अपना लें तो वास्तव में काया पलट हो जाए...
//मौक़ा ढूँढो, तड़ से पलटी मारो जुम्मन ख़ाँ //...ये तो सबसे जानदार पंक्ति लगी ...बहुत सुन्दर रचना
सादर
चमकादार रचना है इसको गोष्ठी में आपसे सुनने का अपना ही मजा है
आदरणीय आकाशजी, आपकी इस रचना का आस्वादन व्यक्तिगत गोष्ठियों में भी लिया है हमने. इसे इस मंच पर देख कर और पढ़ कर मजा वाकई दूना हो गया. व्यंग्यात्मक शैली की धार अपनी चमक और धौंक के साथ है.
हृदय से बधाई स्वीकारें, आदरणीय.
शुभ-शुभ
बहुत सुन्दर!
आप सभी सुह्रद जनों का हार्दिक आभार ...... अमूल्य सुझाव के लिए बेहद शुक्रिया ...... भाई अखिलेश जी आप का आदेश सिर माथे ...... फोटो हाज़िर करता हूँ, जल्द ही ...... पुनः आभार !!!
अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!
कोई कविता यदि बेवजह लम्बी कर दी जाये तो अपना मज़ा खो देती है!
सादर!
अजीत शर्मा जी मजा आ गया ये व्यंगात्मक शैली की रचना पढ़ कर बधाई आपको ,बढ़िया सलाह दी हैं अब आप अखिलेश कृष्ण जी की सलाह पर भी गौर फरमाएं
वाह वाह.... इस शानदार व्यंग्य रचना के लिए आपको बधाई आदरणीय अजीत जी.....
अजीत जी ..आदमी को सीधी बात समझ में आती भी नहीं है ..उलटे तरीके से कहो तो वो ये तो सोचता ही है की आखिर ऐसा क्यूँ कहा जा रहा है ..लाजबाब इस रचना पर मेरी तरफ से हार्दिक बधाई
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