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ग़ज़ल
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कैसा भाईचारा जी
रख दो माल हमारा जी .
दिल का क्या कहना मानें
दिल तो है आवारा जी .
शीशा तोड़ा, क्या तोड़ा ?
तोड़ो तम की कारा जी .
माल अकेले गपक गये
तुम सारे का सारा जी .
जाओ, कूद पड़ो रण में
दुश्मन ने ललकारा जी .
पेट भरेगा किस-किस का
सबका पालनहारा जी .
कोई चिनगारी ढूँढो
गहरा है अंधियारा जी .
मैं होता तो कर देता
कब का वारा-न्यारा जी .
किस पर जान लुटायेंगे
कौन है तुमसे प्यारा जी .
अब अपना क्या परिचय दूँ
मैं बे-घर बनजारा जी
[[[[[[[]]]]]]]
-- 'आकाश'
[मौलिक/अप्रकाशित]
Comment
आदरणीय आकाश भार्इ जी, वाह..! बेहतरीन गजल हुर्इ है। तहेदिल से बधार्इ स्वीकारें। सादर,
मैं अन्तस्तल से आभारी हूँ सभी स्नेहिल मित्रों का, जिन्हें इस रचना में कुछ भी अच्छा लगा. आ० प्राची जी एवं ऐसे ही अन्य सुयोग्य श्रेष्ठ जनों का जितना आभार माना जाए, कम है. आप सभी श्रेष्ठ जनों की हार्दिक कामना रहती है कि रचनाकार अपनी रचना को अच्छी तरह मांज ले, जिससे कोई बाहरवाला ऐसा-वैसा तथाकथित आलोचक ओबीओ के सदस्यों की रचनाओं पर उंगली न उठा सके...... और भाई वीनस जी, आपका तो क्या कहना------ कितना समर्पित कर रखा है आपने स्वयम् को साहित्य के प्रति...... वाह !!! पुनः पुनः सभी का हार्दिक आभार !!!...... सीखना है... सीखते रहना है.... यही जीवन है.... अन्यथा दुनिया में कोई सम्पूर्ण है क्या ?
शीशा तोड़ा, क्या तोड़ा ?
तोड़ो तम की कारा जी .,,, वाह !!
पूरी गज़ल प्रभावशाली है, दिली शुभकामनायें प्रेषित है!!
आदरणीय अजीत आकाश जी, आपकी इस मंच पर संलग्नता हम सभी को अभिभूत करती है. आपकी इस ग़ज़ल ने मोह लिया ! सही कहूँ, तो इस ग़ज़ल के बरअक्स आपे नये अंदाज़ से परिचय हुआ है. यह हमारे लिए उपलब्धि है.
पेट भरेगा किस-किस का
सबका पालनहारा जी .
वाह वाह !
दिल से दाद कुबूल कीजिये, आदरणीय.
शीशा तोड़ा, क्या तोड़ा ?
तोड़ो तम की कारा जी....वाह ..
पूरी की पूरी ग़जल शानदार है आदरणीय .. आनंद आ गया .. बधाई
आदरणीय वीनस जी
यदि मैंने 'ईता' गलत कह दिया है तो कृपया क्षमा कीजियेगा
कृपया यदि मैं गलती कर रही हूँ तो अवश्य ही इता समझने के लिए मार्गदर्शन करें ... सादर
वाह वाह आदरणीय बेहद खूबसूरत लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने सभी के सभी अशआर दिल को छू गए, दिली दाद कुबूल फरमाएं.
वाह वा भाई जी
आपको मंच पर सक्रिय देख कर दिल को सुकून मिलाता है,
ग़ज़ल पर किन शब्दों में कहा जाए .....
एक से बढ़ कर एक धारदार शेर हुए हैं
मगर इन अशआर में तो व्यंग्य की धार ने दिल के टुकड़े टुकडे कर दिए ....
कैसा भाईचारा जी
रख दो माल हमारा जी .
माल अकेले गपक गये
तुम सारे का सारा जी .
मैं होता तो कर देता
कब का वारा-न्यारा जी .
किस पर जान लुटायेंगे
कौन है तुमसे प्यारा जी .
बेहद शानदार ,,,, एक एक शेर पर ढेरो दाद
आदरणीया डॉ. प्राची जी से निवेदन है कि कृपया आप स्पष्ट कर दें कि इस मतले में ईता दोष कैसे हो रहा है ...
सादर
आदरणीय अजीत भाई , बहुत सरल भाषा मे बहुत अच्छी बात कही है आपने बहुत बधाई !!! आदरणीया प्राची जी की प्रतिक्रिया को ज़रूर ध्यान दें !!!!! सुन्दर गज़ल के लिये आपको बहुत बधाई !!
साहित्य-प्रेमी बन्धुओ, ग़ज़ल में अगर ज़रा सा भी कुछ अच्छा लगा, तो ये मेरी हौसला अफज़ाई है. आ० प्राची जी, आप तोग़ज़ल को निर्दोष करके ही मानेँगीं. कितना शुक्रिया अदा करूँ..... अब आगे से ग़ज़ल को अच्छी तरह जाँच -परखकर आगे बढ़ाऊँगा. शिल्प के प्रति लापरवाही वाक़ई उचित नहीं. क्षमा चाहता हूँ. फिलहाल [कोई चिनगारी ढूँढो- संशोधित] कहकर रदीफ़-ऐब से बचने का प्रयास कर रहा हूँ. शेष फिर ...हार्दिक हार्दिक आभार आदरणीय .....
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