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सियासत बिसातें बिछाने लगी है
चुनावी हवा सरसराने लगी है...
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जगा फिर से मुद्दा ये पूजा घरों का
दिलों में ये नफरत बढ़ाने लगी है।
चुनावी हवा.....
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यहाँ बाँट डाला है रंगो में मजहब
बगावत की आंधी सताने लगी है।
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कहीं नाम चंदन कहीं चाँद दिखता
ये लाशें जमीं पर बिछाने लगी है
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नही बात होती है अब एकता की
हमारी उमीदें घटाने लगी है
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क्युँ इन्सां हुआ जानवर से भी…
ContinuePosted on February 3, 2018 at 10:30am — 13 Comments
छन्द- तांटक
जात धरम और ऊँच नीच का, भेद मिटाना होता है
आज़ादी के बाद सभी को, देश बनाना होता है
कैसी ये आज़ादी है औ, क्या हम सब ने पाया है
तहस नहस कर डाला सब कुछ ,दिल में जहर उगाया है
फुटपाथों पर फ़टे कम्बलों, में जब बचपन रोता है
तब प्रगति के आसमान की ,धुँध में सब कुछ खोता है
आज़ादी के बाद सभी को, देश बनाना होता है
क्या किसान औ क्या जवान है, सबकी हालत खस्ता है
टैक्स भरें भूखे मर जाएँ ,क्या ये ही इक रस्ता है
बीमारी…
Posted on January 23, 2018 at 12:54am — 8 Comments
1222 1222 1222 1222
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हमारे सामने सबने कसम गीता की खाई है
जला पुतला सभी ने पाप की कर दी विदाई है
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सभी ये बेटियाँ बहनें सुरक्षित आज से होंगी
अजी रावण की रावण ने यहां कर दी पिटाई है
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बड़ी बातें सभी करते नही है राम कोई भी
कहीं हिन्दू कहीं सिख है यहाँ कोई ईसाई है
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न होती धर्म की सेवा न है संस्कार से नाता
दया बसती नही दिल में दिखावे की भलाई है
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लगाकर हाथ आँचल को वहीं खींसे…
Posted on October 1, 2017 at 1:00pm — 12 Comments
श्राद्ध
" पर....? हर बार तो आनंद ही ..." दूसरी तरफ की कड़क आवाज़ में बात अधूरी ही रह गई
"जी ,जैसा आप ठीक समझें ,पैरी पै..." बात पूरी होने से पहले ही दूसरी तरफ से मोबाइल कट गया ....
रुआंसी सी प्राप्ति सोफे में ही धंस गई , बंद आँखों से अश्क बह निकले
"८ बरसों में जड़ें भी मिटटी पकड़ चुकी थी ......"
"पर आंगन को फूल देना कितना जरूरी है ये एहसास देवरानी के बेटा पैदा होने के बाद हुआ ....."
"नर्म हवाओं ने तूफान बन कर सब रौंदते हुए रुख जब आनंद की ओर किया तो आनंद…
ContinuePosted on September 19, 2017 at 4:51pm — 6 Comments
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सदस्य कार्यकारिणीमिथिलेश वामनकर said…
आपका अभिनन्दन है.
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