दिल ए नादान से हरगिज़ न संभाली जाए
आरजू ऐसी कोई दिल में न पाली जाए
जान मांगी है तो अपनी भी यही कोशिश है
ऐ मेरे दोस्त तेरी बात न खाली जाए
अपने हाथों के करिश्मे पे भरोसा करके
अपनी सोई हुई तक़दीर जगा ली जाए
आज फिर छत पे मेरा चाँद नज़र आया है
क्यूँ न फिर आज चलो ईद मना ली जाए
घर में दीवार उठी है तो कोई बात नहीं
ऐसा करते हैं कि छत अपनी मिला ली जाए
जब किसी और के बस में नहीं है खुश रखना
खुद ही खुश रहने की तरकीब निकाली जाए
जब किसी को भी गुनाहों की सज़ा देनी हो
इक नज़र अपने गुनाहों पे भी डाली जाए
मौलिक एवं अप्रकाशित
सुखद आश्चर्य . ओ बी ओ में आपका स्वागत है . अब आप ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर के सम्मानित सदस्य है . दादा शरदिंदु जी को इस रत्न की प्राप्ति पर बधाई . मेरी रचना के पाठको में एक वृद्धि और हुयी . वाह , अति सुन्दर .
कभी डोली सजाते हैं कभी अर्थी उठाते हैं
हम इक दूजे के सुख दुख मे हमेशा काम आते हैं
मैं जिस बस्ती मे रहता हूँ वो हिन्दुस्तान है मेरा
मुसलमान दोस्त हैं बच्चे मुझे चाचा बुलाते हैं
Posted on July 9, 2018 at 6:54pm — 20 Comments
दिल ए नादान से हरगिज़ न संभाली जाए
आरजू ऐसी कोई दिल में न पाली जाए
जान मांगी है तो अपनी भी यही कोशिश है
ऐ मेरे दोस्त तेरी बात न खाली जाए
अपने हाथों के करिश्मे पे भरोसा करके
अपनी सोई हुई तक़दीर जगा ली जाए
आज फिर छत पे मेरा चाँद नज़र आया है
क्यूँ न फिर आज चलो ईद मना ली जाए
घर में दीवार उठी है तो कोई बात नहीं
ऐसा करते हैं कि छत अपनी मिला ली जाए
जब किसी और के बस में नहीं है खुश रखना
खुद ही…
Posted on November 13, 2017 at 2:30pm — 17 Comments
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