(मफ़ाईलुन -मफ़ाईलुन- फ़ऊलन)
मैं क़िस्मत आज़माई कर रहा हूँ |
शुरूए आशनाई कर रहा हूँ |
चुरा कर वो नज़र कहते यही हैं
मैं उनसे बेवफ़ाई कर रहा हूँ |
दिया है सिर्फ़ शीशा एब जू को
मैं कब उसकी बुराई कर रहा हूँ |
जमी जो धूल दिल के आइने पर
उसी की मैं सफ़ाई कर रहा हूँ |
सितमगर सिर्फ़ हक़ माँगा है अपना
मैं कब बेजा लड़ाई कर रहा हूँ |
परख लेना कभी भी वक़्ते मुश्किल
नहीं मैं ख़ुद नुमाई…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on January 31, 2018 at 12:30pm — 13 Comments
ग़ज़ल ( निकल कर तो आओ कभी रोशनी में )
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(फऊलन-फऊलन-फऊलन-फऊलन)
चलाओ न तीरे नज़र तीरगी में |
निकल कर तो आओ कभी रोशनी में |
कमी दर्दे दिल में तो अब भी नहीं है
मज़ा आ रहा है तुम्हें दिल लगी में |
मेरी ही नहीं है यह सबकी ज़ुबा पर
लुटे क़ाफ़िले सब तेरी रहबरी में |
करूँ फ़ख़्र मैं क्यूँ न क़िस्मत पे अपनी
दिवाना हुआ हूँ तुम्हारी गली में |
यूँ…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 18, 2018 at 9:59pm — 10 Comments
ग़ज़ल (शिकायत भला हम करें क्या किसी से )
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(फऊलन- फऊलन-फऊलन-फऊलन)
चुने हैं ग़मे यार अपनी ख़ुशी से |
शिकायत भला हम करें क्या किसी से |
मिले सिर्फ़ धोके ही अपनों से हम को
वफ़ा अब करेंगे किसी अजनबी से |
खिज़ाओं ख़बरदार उनकी है आमद
सदा फूल खिलते हैं जिनकी हँसी से |
मिला कर नज़र से नज़र यह बताएँ
हुआ दिल ये बर्बाद किस की कमी से |
कभी दोस्तों…
ContinueAdded by Tasdiq Ahmed Khan on January 18, 2018 at 9:33pm — 10 Comments
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