कच्ची डोरी सूत की, बल दे तब मजबूत,
अँखियों से ही प्रेम का, हमको मिले सबूत |
हमको मिले सबूत, ह्रदय में कुसुम खिलावें
बिन श्रद्धा के प्रेम, कभी न ह्रदय को भावे
कह लक्ष्मण कविराय, संत ये कहती सच्चीं
बिखरे मनके टूट, अगर हो रेशम कच्ची |
(2)
सर्दी भीषण पड़ रही,थर थर काँपे गात,
सर्द हवा चुभती घुसें, कैसे बीते रात |
कैसे बीते रात, सभी पटरी पर सोते
मन भी रहे अशांत, बिलखतें बच्चें रोते
यही कष्ट की बात, समाज हुआ बेदर्दी
रेन…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 19, 2015 at 6:30pm — 14 Comments
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