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कवि - राज बुन्दॆली's Blog – January 2014 Archive (3)

दॊहा छन्द (श्रंगार-रस)

दॊहा छन्द (श्रंगार-रस)

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उठत गिरत झपकत पलक, दुपहरि साँझ प्रभात !!

चितवत चकित चकॊर-दृग,मुख-मयंक दुति गात !!१!!



नाभि नासिका कर्ण कुच, त्रि-बली उदर लकीर !!

ग्रीवा चिबुक कपॊल कटि,निरखत भयउँ अधीर !!२!!



हँसि हॆरति फॆरति नयन, मन्द मन्द मुस्काति !!

दन्त-पंक्ति ज्यूँ दामिनी, बिन गरजॆ चमकाति !!३!!



चॊटी  मानहुँ  कॊबरा, लटि नागिन  की जात !!

कॆश समुच्चय  कर रहा, नाग लॊक  की बात !!४!!



भरीं भुजा दॊनहुँ  सबल,…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 8, 2014 at 12:00pm — 27 Comments

चौपई छन्द = प्रसंग,,श्री रामचरित मानस ( पुष्प-वाटिका )

चौपई छन्द = प्रसंग,,श्री रामचरित मानस ( पुष्प-वाटिका )

शिल्प = प्रत्यॆक चरण मॆं १५ मात्रायॆं तुकान्त गुरु+लघु कॆ साथ,

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भॊर भयॆ प्रभु लक्ष्मण संग !! उड़त गगन महुँ विविध विहंग !!

कहुँ कहुँ भ्रमर करहिँ गुँन्जार !! नाचहिँ कहुँ कहुँ झूमि पुछार !!



मन्द पवन सुचि शीत बयार !! मानहुँ गावत मंगलचार !!

लॆन प्रसून गयॆ फ़ुलवारि !! बंधु लखन सँग राम खरारि !!



पहुँचॆ पुष्प-वाटिका जाइ !! स्वागत करत सुमन मुस्काइ !!…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 3, 2014 at 7:30pm — 28 Comments

शिव-मंगल (खण्ड-काव्य) सॆ मत्तगयंद सवैया :-

शिव-मंगल (खण्ड-काव्य) सॆ मंगलाचरण कॆ कुछ छन्द

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शिल्प विधान = सात भगण + दॊ गुरु वर्णॊं सहित प्रत्यॆक चरण मॆं कुल २३ वर्ण,,,,,,,,,



मत्तगयंद सवैया छन्द (१)

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पूजत है प्रथमॆ जग जाकहुँ, कीर्ति त्रिलॊकहुँ छाइ रही है !!

सुण्ड-त्रिपुण्ड लुभाइ रही अति,कंठहिं माल सुहाइ रही है !!

रिद्धि बसै दहिनॆ अरु बामहिँ,सिद्धि खड़ी मुसकाइ रही है !!

हॆ इक दन्त कृपा करियॊ अब, मॊरि मती बउराइ रही है…

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Added by कवि - राज बुन्दॆली on January 2, 2014 at 12:30pm — 11 Comments

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