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नाथ सोनांचली's Blog – January 2025 Archive (1)

कविता (गीत) : नाथ सोनांचली

जब उमड़ते भाव अविरल अश्रु का संसार लेकर

तब कहीं कविता उपजती शब्द का आकार लेकर

पीर के परिमाप से करके स्वयं का 'नाथ' तर्पण

रात दिन पीड़ा दबाए आत्म का करके समर्पण

दर्द की अभिव्यंजना से कुछ नई गढ़ कल्पनाएँ

चित्र छपते जब हृदय पर कुछ नए किरदार लेकर

तब कहीं कविता उपजती शब्द का आकार लेकर

तप्त धरती बादलों की जिस घड़ी करती प्रतीक्षा

दर्द में  डूबे  हृदय  की  वास्तविक  होती  परीक्षा

याचना करता पपीहा और बिछुड़न के हृदय से

छेड़ती है राग विरहन जब…

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Added by नाथ सोनांचली on January 14, 2025 at 2:14pm — 4 Comments

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