2212 1212 1212 22
तारीक़ी फिर लगी मुझे बढ़ी चढ़ी क्यों है
सूरत में सुब्ह की बसी ये बरहमी क्यों है
क्यूँ रात शर्मशार सी है चुप खड़ी दिखती
ये सुब्ह बेज़ुबान सी , डरी हुई क्यों है
ख़ंज़र की दिल-ज़िगर से, दुश्मनी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 27, 2014 at 5:30pm — 22 Comments
2122 2122 2122
फिर हुई जीने की इच्छा आज मन में
फिर बुलाया आज कोई है सपन में
फड़फड़ाने फिर लगा कोई परों को
फिर उड़ेगा वो किसी नीले गगन में
फिर से पीड़ा मीठी सी कुछ हो रही है…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 20, 2014 at 9:30pm — 31 Comments
1222 1222 1222 1222
बहुत गुमसुम सी लगती है
ज़बाँ खामोश रहती है, निगाहें कुछ नही कहतीं
अगर जज़्बा न हो दिल में, तो बाहें कुछ नही कहतीं
यहाँ के हादसों का सच,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 16, 2014 at 8:30am — 32 Comments
11212 11212 11212 11212
उसे भूल जा तू न याद कर, जो गुज़र गया वो गुज़र गया
जिसे तख़्ते दिल में बिठाया था,वो उतर गया तो उतर गया
यहाँ आंधियों का वो ज़ोर है ,कि उजड़ गया है मेरा चमन
मेरी चाहतें मिली ख़ाक में , मेरा ख़्वाब था जो बिखर गया
…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 9, 2014 at 6:30pm — 47 Comments
बाप के जूते
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जब से
बाप के जूते
बच्चों के पैरों में
आने लगे हैं ,
वो सही ग़लत
बाप को ही
समझाने लगे हैं ।…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 6, 2014 at 8:00am — 42 Comments
॥ नये साल की पहली ग़ज़ल मेरे भगवान को समर्पित ॥
ॐ श्री साई नाथाय नमः
11212 11212
मेरी शायरी का असर है तू
मेरी ज़िन्दगी का हुनर है तू
मै हूँ एक बुझती सी आग बस
मुझे फिर जला दे ,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on January 1, 2014 at 8:30am — 35 Comments
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