1-
जन्मों तक होता नहीं, यात्राओं का अंत।
सभी सफर में हैं यहाँ,सुर नर संत महंत।।
सुर नर संत महंत, जन्म जिसने भी पाया।
पंचतत्व की एक, मिली सबको ही काया।।
मन में ईर्ष्या द्वेष, लिए अवसर जो खोता।
यात्रा में वह जीव, अस्तु जन्मों तक होता।।
2-
यात्रा का वर्णन करूँ, या फिर लिखूँ पड़ाव।
लिख दूँ सभी उतार भी, या फिर सिर्फ चढ़ाव।।
या फिर सिर्फ चढ़ाव, लिखूँगा विवरण पूरे।
कार्य हुए जो पूर्ण, और जो रहे अधूरे।।
हानि-लाभ सुख-दुक्ख, बराबर सबकी…
Added by Hariom Shrivastava on January 25, 2019 at 12:00pm — 1 Comment
बेटी से परिवार है, बेटी से संसार।
बेटी है माता-बहिन, बेटी ही है प्यार।।
बेटी ही है प्यार, यही लछमी कहलाती।
वहीं बनाती स्वर्ग,जहाँ ये जिस घर जाती।।
सदा निभाती फर्ज, न होने देती हेटी।
पीहर सँग ससुराल, सदा महकाती बेटी।।
(मौलिक व आप्रकाशित)
**हरिओम श्रीवास्तव**
Added by Hariom Shrivastava on January 24, 2019 at 8:11pm — 2 Comments
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