मैं ....
मैं
कल भी
ज़िंदा था
आज भी
ज़िंदा हूँ
और
कल भी
ज़िदा रहूंगा
फ़र्क
सिर्फ़ इतना है
कि
मैं
कल गर्भ था
आज
देह हूँ
कल
अदेह हो जाऊंगा
गर्भ की यात्रा से शुरू
मैं
मैं की केंचुली छोड़
अनंत के गर्भ में
अमर
अदेह हो जाऊंगा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 26, 2018 at 12:00pm — 12 Comments
चाँद से पूछें.....
आखिर
ख़्वाब टूटने का सबब
क्या है
चलो
चाँद से पूछें
करते हैं
जो दिल की मुरादें पूरी
उन तारों का पता
चलो
चाँद से पूछें
मुहब्बत में
अश्कों का निज़ाम
किसने बनाया
चलो
चाँद से पूछें
धड़कनों के पैग़ाम
क्यूँ हुए रुसवा
चलो
चाँद से पूछें
क्यूँ पूनम का अंजाम
बना अमावस
चलो
चाँद से पूछें
पेशानी पे मुहब्बत की…
ContinueAdded by Sushil Sarna on January 18, 2018 at 1:18pm — 4 Comments
3. क्षणिकाएं :.....
1.
मैं
कभी मरता नहीं
जो मरता है
वो
मैं नहीं
... ... ... ... ... ... ...
2.
ज़िस्म बिना
छाया नहीं
और ]
छाया का कोई
जिस्म नहीं
... ... ... ... ... ... ... ...
3.
क्षितिज
तो आभास है
आभास का
कोई छोर नहीं
छोर
तो यथार्थ है
यथार्थ का कोई
क्षितिज नहीं
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 16, 2018 at 5:09pm — 10 Comments
ख़्वाब के साथ ...
न जाने कब
मैं किसी
अजनबी गंध में
समाहित हो गयी
न जाने कब
कोई अजनबी
इक गंध सा
मुझ में समाहित हो गया
न जाने
कितनी कबाओं को उतार
मैं + तू = हम
के पैरहन में
गुम हो गए
और गुम हो गए
सारे
अजनबी मोड़
हकीकत की चुभन को भूल
ख़्वाबों की धुंध में
कभी अलग न होने के
ख़्वाब के साथ
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 15, 2018 at 6:00pm — 6 Comments
स्वप्न धुंध...
असहनीय शीत के बावज़ूद
मैं देर तक
उसे महसूस करती रही
अपने हाथों में बंद
गीले रुमाल को भींचे हुए
धुंध को चीरती हुई
बेरहम ट्रेन आई
मेरे स्वप्न को
साथ लिए
धुंध में खो गई
मैं दूर तक
ट्रेन के साथ साथ
उसका हाथ पकड़े
दौड़ती रही,दौड़ती रही
आंखें
विछोह का भार न सकी
सागर बन छलक पड़ी
बॉय-बॉय करते उसके हाथ से
उसका रुमाल गिर गया
मैं दौड़ी
रुमाल उठाया
चौंकी
उसका…
Added by Sushil Sarna on January 8, 2018 at 6:34pm — 10 Comments
कुछ कहते-कहते ...
विरह निशा के श्यामल कपोलों को चूम
निशब्द प्रीत
अपनी निष्पंद साँसों के साथ
कुछ कहते-कहते
सो गयी
व्यथित हृदय
कब तक बहलता
पल पल
टूटती यादों के खिलौनों से
स्मृति गंध
आहटों के राग की प्रतीक्षा में
नैनों में
वेदना की विपुल जलराशि भरे
पवन से
कुछ कहते-कहते
सो गयी
खामोशियाँ
बोलती रहीं
शृंगार सिसकता रहा
थके लोचन
विफलता के प्रहार
सह न सके…
Added by Sushil Sarna on January 5, 2018 at 5:38pm — 9 Comments
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